लाँकडाउन ने बदली बच्चों की दिनचर्या और परंपरागत खेल खेलकर बिता रहे हैं लाँकडाउन का समय…

लाँकडाउन ने बदली बच्चों की दिनचर्या और परंपरागत खेल खेलकर बिता रहे हैं लाँकडाउन का समय…

बच्चों के मन में बैठा डर बाहर निकले तो खा जाएगा कोरोनावायरस…

हर बार अकेले गुजारते हैं गर्मी की छुट्टी इस बार पूरा परिवार है साथ…

गांव के पाव
ग्राउंड जीरो रिपोर्ट
गांव नानाखेड़ी अहीर
गांव की आबादी 1526
ग्राम पंचायत नानूखेड़ी मीणा

कानड़ :- छोटे-छोटे बच्चों को स्कूल से छुट्टी मिल जाए तो उनके चेहरों पर मासूमियत भरी एक मुस्कान छा जाती है और बच्चे अपने अध्ययन सामग्री को अलग रखकर खेलने में मशगूल हो जाते हैं यह शायद पहली बार ही यहां एक ऐसा अवसर आया है कि बच्चों की छुट्टियां तो है लेकिन मैदान एवं गलियों में खेलने वाले बच्चे अपने-अपने घर में कैद है वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से निर्मित हुई हालातों ने बच्चों की दिनचर्या को ही बदल दिया घर में रहना और वहां भी एक लंबे समय तक रहना बच्चों के लिए किसी के जैसे कम नहीं है शहरों में तो बच्चों के लिए मनोरंजन के कई साधन है लेकिन गांव की तस्वीर शहर से भी भिन्न है लाँकडाउन का पालन करते हुए शहरी क्षेत्र एवं नगर क्षेत्र में जहां बच्चे तक मोबाइल पर अपना समय व्यतीत कर रहे हैं वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में तो बच्चे परंपरागत खेलों के माध्यम से मनोरंजन कर रहे हैं जैसे टीवी मोबाइल से दूर ग्रामीण क्षेत्र में बच्चे आसपास के दोस्तों के साथ अष्ट जंग कैरम चोर पुलिस सिपाही लुका छुपी जैसे अन्य खेल खेलते हुए गांव की गलियां तथा अपने अपने खेत खलियानो में देखा जा रहा है कहीं ना कहीं बच्चों के मन में कोरोना का खौफ घर कर गया है जिसकी वजह से बच्चे यहां तो अपने घर के आंगन में या फिर घर के सामने खेलते कूदते दिखाई देते हैं कुछ इसी तरह की तस्वीरें कानड़ नगर के समीपस्थ ग्राम नानाखेड़ी अहीर मैं दिखाई देती है महिला एवं पुरुष वं बच्चे सहित इस गांव की आबादी करीब 1526 से अधिक आबादी वाले इस गांव में छोटे-छोटे सैकड़ों बच्चे हैं जो इन दिनों पुरानी परंपरागत खेल खेलते हुए अपनी दिनचर्या संपन्न कर रहे हैं कोरोना वायरस का प्रकोप से जनजीवन बुरी तरह बेहाल है इसके संक्रमण को रोकने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का तरीका अपनाया जा रहा है जिसके लिए पूरे देश में लाँकडाउन जैसी प्रक्रिया को अपनाया गया है पिछले एक माह के दौरान कामकाजी लोगों के साथ-साथ छोटे-छोटे बच्चे भी कहां से परेशान हो चुके हैं

छोटे बच्चों की पूरी दिनचर्या ही बदल चुकी है हर पल गांव की गलियो मैं चहकहाने वाले बच्चों की चिल्कारिया बंद हो चुकी है कोरोना के डर से बच्चे घरों में दुबके हुए हैं और परम पारिख पुराने खेलों के माध्यम से जैसे-तैसे मनोरंजन कर दिन
बिता रहे हैं
शहरी क्षेत्र के बच्चों को मनोरंजन एवं पढ़ाई के अन्य ऑनलाइन साधन भी आसानी से मिल जाते हैं लेकिन ग्रामीण बच्चों के सामने इस समय विकट परिस्थितियां निर्मित हो गई है स्कूल की छुट्टियां लगने के बाद बच्चे नए शैक्षणिक सत्र की तैयारी कर रहे हैं थे लेकिन कोरोनावायरस पैर पसारना आरंभ कर दिया था हालात या रहे की ग्रीष्मकालीन छुट्टियां खत्म ही नहीं हुई और उनकी अनिश्चितकालीन छुट्टियां आरंभ हो गई पुराने सत्र के परीक्षा परिणाम नहीं आए और नया सत्र आ गया स्कूल की लगातार छुट्टियां चलने से बच्चों की शैक्षणिक व्यवस्था बुरी तरह लड़खड़ा चुकी है
बाहर निकले तो कोरोना खा जाएगा
बच्चे तो बच्चे होते हैं और उनके सवाल जवाब भी मासूमियत भरे होते हैं जब इस संबंध मे बच्चों से चर्चा की गई तो बच्चों का कहना है कि कोरोना नाम का एक राक्षस से से जो बच्चा घर से बाहर घूमेगा उसे कोरोना खा जाएगा इसलिए हम घर से बाहर नहीं निकलते हैं हमारे घर के सामने खेलते रहते हैं घर से बाहर कोई भी हो उनसे दूरी बना कर चले उनके पास ना आने दे अपने हाथों को बार-बार साबुन से दोहे और सेनीटाइज हो तो सैनिटाइज से धोएं और नरेंद्र मोदी जी की आज्ञा का पालन करें घर में रहे
घर के आंगन में या घर की छत पर खुले आसमान के नीचे रात को कब नींद आ जाती है पता ही नहीं चलता फिर सुबह से वही दिनचर्या शुरू हो जाती है

ग्राउंड जीरो रिपोर्ट जिला आगर मालवा कानड़ से

संवाददाता गोवर्धन कुम्भकार की रिपोर्ट…