टूटी हुई माला के बिखरते मोती! “अनिल मेहता “
एक समय था जब सुप्रसिद्ध कथाकार मुंशी प्रेमचन्द द्वारा लिखित कहानी ईदगाह को पढ़ कर क्या हिन्दू क्या मुस्लिम सबकी आँखों में आँसू आ जाते थे! ईदगाह के दो किरदारों चार,पाँच वर्षीय अनाथ बालक हामिद और उसकी बूढ़ी दादी आमीन को लोग आसपास तलाशते थे! आज कहाँ हैं वे लोग जो ईदगाह की कहानी पढ़ उस कहानी के किरदार हामिद और आमीन को अपने आसपास महसूस करते थे! एक बहुत सुन्दर सी माला भारतवर्ष मे थी जिसमें हिन्दू मुस्लिम नाम के बहुत सुन्दर-सुन्दर मोती के दाने थे! आज उस टूटी हुई माला के मोती न जाने बिखर कर किस ओर चले गये! आश्चर्य की बात यह है कि यह माला क्यों और कैसे टूटी न कोई जानने प्रयास कर रहा और न ही इस टूटी माला को कोई जोड़ने का प्रयास कर रहा है! कितने खेद का विषय है कि आज भारतीय मुस्लिम को चंद फितरती लोगों के चलते अपने देशप्रेमी होने का सबूत देना पड़ रहा है! मैं तमाम मुस्लिम बन्धुओं से मिला सबने बहुत ही व्यथित हृदय से बताया कि हिन्दुस्तान की मिट्टी मे पले बढ़े अपने वतन से बेइन्तहा मुहब्बत की! आज चंद फितरती और गन्दी राजनीतिक की सोच वाले लोगों की करतूतों के चलते हर मुस्लिम को शक की निगाह से देखा जा रहा है! ज़रूरत है इस वक्त टूटी हुई माला के बिखरे मोतियों को समेट कर एक माला में पिरोने की है!
वरिष्ठ पत्रकार अनिल मेहता की कलम से…