दुनिया भर में है अजमेर शरीफ दरगाह की मान्यता…
राजस्थान में मौजूद अजमेर शरीफ दरगाह की मान्यता दुनिया भर में है। कहने के लिए तो यह मुस्लिम धर्म को मानने वालों का तीर्थ स्थल है मगर यहां आपको हर धर्म के लोग माथा टेकटे दिख जाएंगे। यहां पर ख्वाजा गरीब नवाज की मदार है। इस मदार पर आम आदमी तो माथा टेकने आते ही हैं साथ ही यहां पर बॉलीवुड सेलिब्रिटीज से लेकर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आ चुके हैं। कहते हैं कि इस दरगाह पर जो एक बार अपनी मन्न्त मांगता है वह खाली हाथ नहीं लौटता। यह बात कितनी सही है, आज हम इस पर नहीं बल्कि आपको यह बताएंगे कि अगर आप आने वाले समय में अजमर शरीफ जा रही हैं तो आपको किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
कब जाएं दरगाह
अजमेंर में उर्स पर्व सबसे मुख्य होता है। इस दौरान यहां मेला लगता है और बहुत सारे कार्यक्रम होते हैं। अगर आप को भीड़-भाड़ से परहेज नहीं है तो आप उर्स के दौरान अजमेर जा सकती हैं। यह उर्स इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से रजब माह की पहली से छठवीं तारीख तक मनाया जाता है। आप अगर अजमेर में उर्स के दौरान जा रही हैं तो अपनी टिकट पहले से बुक करवा लीजिए। क्योंकि इस वक्त अजमेर जाने वाली हर ट्रेन और फ्लाइट लगभग फुल रहती है। इतना ही नहीं, अगर आप दिल्ली से अजमेर जा रही हैं तो आपको दिल्ली–अजमेर शताब्दी से बुकिंग करवानी चाहिए क्योंकि यह ट्रेन सुबह 6 बजे चलती हैं और 1 बजे आपको अजमेर उतार देती हैं।
दरगाह के नियम
दरगाह का सबसे पहला नियम है कि यहां पर आप खुले सिर नहीं जा सकती और न ही आप वैस्टर्न कपड़ों में दरगाह के अंदर घुस सकती हैं। इसलिए अगर आप दरगाह जा रही हैं तो आप ध्यान रखें कि साड़ी या सूट पहन कर जाएं क्योंकि दरगाह में आपको सिर ढांकना होगा जिसके लिए आपको कपड़े की आवश्यकता होगी। दरगाह का दूसरा नियम है कि आप बिना हाथ पैर साफ किए दरगाह में प्रवेश नहीं कर सकतीं। इसके लिए आपको दरगाह में मौजूद जहालरा में हाथ पैर साफ करने होते हैं। यह जहालरा ख्वाजा जी के वक्त से है और दरगाह के पवित्र कामों में इसका पानी इस्तेमाल किया जाता है।
दरगाह के अंदर क्या-क्या देखें
अजमेर में निजाम सिक्का नामक एक साधारण पानी भरने वाले ने मुगल बादशाह हुमायुं को एक बार डूबने से बचाया था। उनकी मृत्यु के बाद हुमायुं ने उनका मकबरा भी दरगाह के अंदर ही बनवा दिया था। आप इस मकबरे को जरूर देखें। इतना ही नहीं दरगाह के अंदर दो बड़े-बड़े कढ़ाहे हैं। इन कढ़ाहों में रात के वक्त बिरियान पकाई जाती है और सुबह उसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। यह दोनों कढ़ाहे मुगल बादशाह अकबर और जहांगीर ने बनवाए थे। दरगाह के अंदर शाह जहानी मस्जिद मुगल वास्तुकला का एक अद्भुत नमूना है। इसके गुंबद में अल्ला के 99 पवित्र नामों को 33 खूबसूरत छंदों में लिखा गया है। अजमेर शरीफ दरगाह के अंदर बनी हुई अकबर मस्जिद अकबर ने तब बनवाई थी जब जहाँगीर का जन्म हुआ था आज यहाँ मुस्लिम धर्म के बच्चों को कुरान की तामिल प्रदान की जाती है।
इन बातों का रखें ध्यान
जैसे हिंदू धर्म के तीर्थ स्थानों पर धर्म के नाम पर जगह-जगह पैसे वसूले जाते हैं वैसा ही अजमेर शरीफ में भी होता है। अगर आपको कोई यह कहे कि वह आपको दरगाह के दर्शन आसानी से करवा देगा और आपको भीड़ का सामना नहीं करना पड़ेगा तो उसकी बातों में न आएं क्योंकि दरगाह में अगर थर्सडे और फ्राइडे छोड़ कर कभी भी जाया जाए तो उस वक्त बहुत भीड़ नहीं होती है। हो सके तो आप संडे के दिन दरगाह जाएं इस दिन भी यहां बहुत कम भीड़ होती है। दरगाह जाने के दो रास्ते हैं। एक गेट नंबर 4 और दूसरा गेट नंबर 2। गेट नंबर 2 से दरगा में एंट्रे थोड़ी आसान है क्योंकि गेट नंबर 2 तक लोकल कनवेंस जाते हैं और इसलिए यहां पर भीड़ नहीं लगती। वहीं अगर आप गेट नंबर 4 से जाएंगी तो आपको भीड़ भी मिलेगी और काफी चलना भी होगा। गेट नंबर 4 पर दरगाह का मुख्य प्रवेश द्वार है।
अजमेर शरीफ दरगाह से जुड़ी कुछ खास बातें, जरूर जानें
निजाम गेट
अजमेर शहर ऊंची-ऊंची पहाड़ियों के बीच बसा है और यह दरगाह इस शहर के मध्य में स्थित है। ख्वाजा पीर की इस दरगाह के प्रवेश में चारों तरफ दरवाजें हैं जिनमें से सबसे ज्यादा सुंदर और आकर्षक दरवाजा मुख्य बाजार की और है जो निजाम गेट के नाम से मशहूर है। यह दरवाजा साल 1912 में बनना शुरू हुआ और इसे बनने में 3 साल लगे। इसकी ऊंचाई 70 फुट और चौड़ाई 24 फुट है।
दरवाजा नक्कारखाना
यह दरवाजा काफी पुराने तरीके से बना है और इसके ऊपर शाही जमाने का नक्कारखाना है। इस दरवाजे को शाहजहां ने साल 1047 में बनवाया था। इसी कारण यह नक्करखाना शाहजहानी के नाम से प्रसिद्ध है।
चार यार की मजार
जामा मस्जिद के दक्षिण दीवार के साथ ही एक छोटा-सा दरवाजा है जो पश्चिम की ओर खुलता है। इस दरवाजे के बाहर काफी बड़ा कब्रिस्तान है जहां बड़े-बड़े आलिमों, फाजिलों और सूफियों-फकीरों की मजार(कब्र) है। इस कब्रिस्तान में उन चार बुजुर्गों की भी कब्रें हैं जो हजूर गरीब नवाज के साथ आए थे जिस कारण इसे चार यार भी कहते हैं। यहां हर साल मेला लगता है जहां लोग दूर-दूर से आते हैं।
अकबरी मस्जिद
अकबरी मस्जिद अकबर के जमाने की यादगार है। शाहजहां सलीमा के जन्म पर बादशाह अकबर के साथ अजमेर आए थे और उन्होंने उस समय इस मस्जिद के निर्माण का आदेश दिया था।
सेहन का चिराग
बुलंद दरवाजे के आगे बढऩे पर सामने एक गुम्बद की तरह सुंदर सी छतरी है। इसमें एक बहुत पुराने प्रकार का पीतल का चिराग रखा है। इसको सेहन का चिराग कहते हैं।
बड़ी देग
बादशाह अकबर ने यह प्रतिज्ञा की थी कि चितौड़गढ़ से युद्ध जीतने के बाद वे अजमेर दरगाह में एक बड़ी देग दान करेंगे। इस देग में एक बार में सवा सौ मन चावल पक सकते हैं।
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…