सुकून के लम्हे जाम में फंसे…
साल का अंतिम पहर और नए वर्ष के आगमन का सफर, इस समय हिमाचल में पर्यटन को भी माप रहा है। वर्षांत पर्यटन की चहलकदमी में पूरा प्रदेश और सैलानियों के उत्साह में निरंतर बढ़ोतरी का आलम यह कि अटल टनल एक ही दिन में एक लाख के करीब पर्यटकों की चरागाह बन जाती है। शिमला की पहाडिय़ां हों या कांगड़ा घाटी की गुनगुनी धूप, पर्यटकों से आच्छादित राहें बता रही हैं कि साल का यह नजारा होटल व्यवसायियों को सहारा दे रहा है। क्रिसमस को त्योहार तथा पर्यटन को उपहार बना देने की क्षमता में निजी क्षेत्र के होटल-रेस्तरां ने भी इस बार कुछ हट के प्रयास किए, तो बाजार में बेकरी से लेकर बेकार हो चुके उत्पादों को फिर से जिंदा होने का अवसर मिला। साल का अंतिम सप्ताह डेस्टिनेशन बन गया, तो सडक़ों पर आया वाहनों का रेला जाम में बदल गया।
गाडिय़ों का रेंगना शिमला की फोरलेन परियोजना को भी गच्चा दे गया, तो कुल्लू-मनाली का सफर इत्मीनान से अपनी व्यथा कहता रह गया। बेशक पर्यटन के सन्नाटे टूटे, लेकिन हमने सैलानियों को जगह-जगह फंसाया जरूर। यह दीगर है कि निजी वाहनों के अलावा वोल्वो व डीलक्स बसों के किरदार ने आफत मचा दी। सामान्य दरों से दो या तीन गुना अधिक वसूल रही बसें यात्रियों की कोफ्त बढ़ा रहीं, लेकिन एचआरटीसी इस लूट में खुद के सबूत पूरी तरह नहीं ढूंढ पाई। ‘काफिलों के कदम जमीन पर बदल गए, तुमने तो आकाश में उडऩा था यहां। ’ जाहिर है पर्यटन की ऐसी महफिलें हमारे इंतजाम की समीक्षा भी करती हैं। यह प्रदेश अब पर्यटन का मक्का नहीं, पर्यटन की अटल टनल क्यों हो रहा है, इस पर विचार करना होगा। नववर्ष के आगमन को रेखांकित करते हुए मंदिर पर्यटन को आवाज दें, तो चिंतपूर्णी, ज्वालाजी, दियोटसिद्ध, कांगड़ा, चामुंडा, नयनादेवी और बाला सुंदरी जैसे धार्मिक स्थल इस आगमन की बरसात को आर्थिक क्षमता में बदल पाएंगे। यह इसलिए भी कि वर्ष के अंत में एक पूरे सप्ताह को हम यादगार बना सकते हैं।
अगर क्रिसमस से हिमाचल के गिरजाघर पर्यटन की मंजिल बन जाते हैं, तो नए साल के उगते सूरज को पूजने के लिए मंदिर परिसर तैयार किए जा सकते हैं। लोक कला तथा संगीत व नाट्य उत्सव स्थानीय कलाकार को पहचान व पारिश्रमिक दिला सकते हैं। प्रदेश के धरोहर शहर यानी चंबा, सुजानपुर, पुराना कांगड़ा, मसरूर, नाहन, रामपुर बुशहर व गरली-परागपुर, पर्यटन की प्रक्रियाओं से गुजर कर सांस्कृतिक त्योहार बनकर उभर सकते हैं। प्रदेश के बड़े मैदानों पर इस दौरान व्यापारिक मेले, फूड बाजार व हिमाचल के क्राफ्ट की प्रदर्शनियां लगा सकते हैं। वर्षांत पर्यटन को क्रिसमस-नववर्ष आगमन से आगे लोहड़ी-मकर संक्रांति और घृत मंडप उत्सव तक ले जा सकते हैं, तो हिमाचल में ग्रीष्मकालीन पर्यटन की तरह शीतकालीन पर्यटन भी क्षमतावान बनने की तमाम खूबियां लिए हुए है। कोशिश यह होनी चाहिए कि हर साल हिमाचल केवल पारंपरिक पर्यटक स्थलों पर न दिखाई दे, बल्कि प्रवेश के साथ ही नई दिशाएं निर्धारित हो जाएं। वर्षांत पर्यटन की उपलब्धि में केवल अटल टनल नगीना न बने, इसके लिए तमाम फोरलेन परियोजनाओं के तहत नए गंतव्य स्थल विकसित करने होंगे। एक या कुछ दिन की भीड़ को पंद्रह या एक महीने की यात्राओं में बांटने के लिए विविध आकर्षण, कार्यक्रम तथा रोचकता व रोमांस का नेटवर्क बनाना होगा। विडंबना यह है कि बढ़ते सैलानियों की तादाद में अब वाहन गिने जाने लगे हैं। अगर एक ही दिन में 12336 वाहन अटल टनल से आरपार होंगे, तो सुकून के लम्हे जाम में फंस जाएंगे। अगर जाम में यात्रा करने की मजबूरी चंडीगढ़-शिमला के सफर को आठ घंटे की तपस्या में बदल दें, तो नए विकल्प-नए समाधान खोजने होंगे। पांच करोड़ सैलानियों के लक्ष्य की अनुभूति में सोचें, तो वर्तमान स्थिति को ही हम पूरा नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में कल अगर तीन गुना वाहन बढ़ते हैं, तो सडक़ों पर नए सिरे से मनोरंजन खोजना होगा।
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…