नए मंत्रिमंडल में शिवराज और सिंधिया को लगा झटका…

नए मंत्रिमंडल में शिवराज और सिंधिया को लगा झटका…

-प्रमोद भार्गव-

जातीय और क्षेत्रीय संतुलन के साथ मुख्यमंत्री डाॅ मोहन यादव की सत्ता की जमात बिठा दी गई। अखिल भारतीय स्तर पर कांग्रेस एवं विपक्ष की जातीय जनगणना की मांग को कु्रंद करने के नजरिए से इस मंत्रिमंडल में हर तीसरा मंत्री पिछड़े वर्ग से है। 13 ओबीसी, पांच दलित, पांच आदिवासी, 8 सवर्ण हैं। एक समय प्रदेष राजनीति की धुरी माने जाने वाले ब्राह्मण मंत्रियों की संख्या महज दो रह गई है।

राजेंद्र षुक्ला उप-मुख्यमंत्री हैं, वहीं राकेष षुक्ला को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। इस परिशद् में पूर्व मुख्यमंत्री षिवराज सिंह चैहान और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को बड़ा झटका लगा है। षिवराज सरकार के दस मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया है। हालांकि इसके बावजूद जितने भी पुराने चेहरे हैं, उनसे षिवराज की निकटता है। दूसरा बड़ा झटका 2018 का चुनाव हारने के बावजूद कमलनाथ सरकार का तख्ता पलट कर 2020 में षिवराज की सरकार बनाने वाले सिंधिया को लगा है। इस परिषद में सिंधिया के सिर्फ तीन विधायक मंत्री बनाए गए हैं।

2020 में षिवराज सरकार में सिंधिया समर्थक 11 मंत्रियों को जगह मिली थी। इनमें प्रद्युम्न सिंह तोमर, गोविंद सिंह राजपूत, महेंद्र सिंह सिसोदिया, तुलसी सिलावट, डाॅ प्रभुराम चैधरी, राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव, हरदीप सिंह डंग, बिसाहूलाल सिंह, ओपीएस भदौरिया, सुरेष धाकड़ और ब्रजेंद्र सिंह यादव षामिल थे। कमलनाथ सरकार में मंत्री रहीं सिंधिया समर्थक इमरती देवी चुनाव हार गईं। 2023 में वे फिर चुनाव हार गईं। इसके बाद हुए उपचुनाव में सिंधिया समर्थक मंत्रियों की संख्या 6 रह गई थीं। इनमें प्रद्युम्न सिंह तोमर, तुलसी सिलावट, बृजेंद्र सिंह यादव, हरदीप सिंह डंग और बिसाहूलाल चुनाव जीते थे। लेकिन अब मंत्रिमंडल में प्रद्युम्न सिंह तोमर, गोविंद सिंह राजपूत और तुलसी सिलावट को जगह मिल पाई हैं। चुनाव जीतने के बावजूद प्रभुराम चैधरी, हरदीप सिंह डंग, बृजेंद्र सिंह यादव और बिसाहूलाल सिंह को मंत्री बनाने के योग्य मोहन यादव सरकार ने नहीं समझा। चूंकि सिंधिया अपने मंत्रियों की कमजोरियों से वाकिफ थे, इसलिए उन्होंने संघ और संगठन के समक्ष मजबूत पैरवी भी नहीं की। सिंधिया का प्रभाव क्षेत्र माने जाने वाले ग्वालियर-चंबल अंचल की 34 में से 18 सीटें भाजपा जीती है। लेकिन चार विधायकों को ही मंत्री बनने का अवसर मिला है। मंत्री एंदल सिंह कंसाना और लहार विधायक राजेश शुक्ला ही बन पाए हैं। राकेष षुक्ला को कांग्रेस के दिग्गज नेता गोविंद सिंह को हराने का पुरस्कार मिला है। इसी अंचल से सांसदी छोड़ विधायक का चुनाव लड़कर जीतने वाले नरेंद्र सिंह तोमर को विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया है। इस अंचल के दतिया, षिवपुरी, गुना और अषोकनगर जिलों को कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। जबकि गुना-शिवपुरी लोकसभा क्षेत्र से ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रतिनिधित्व करते रहे हैं। हालांकि 2019 में वे यहीं से चुनाव हारे भी थे।

सत्ता की इस जमावट की रूपरेखा में संघ और संगठन की अहम् भूमिका रही है। चूंकि भाजपा नया खून लाने के लिए पीढ़ीगत परिवर्तन करने को उतावली थी। इसलिए उसने दो दषक बाद मोहन यादव को 18 ऐसे चेहरे दिए हैं, जिन्हें पहली बार मंत्रीमंडल में षामिल होने का अवसर मिला है। सात विधायक तो ऐसे हैं, जिन्होंने पहली बार जीतने के साथ ही मंत्री पद की शपथ भी ले ली। जातीय और क्षेत्रीय समीकरण साधने की दृष्टि से 12 ओबीसी, 3 ठाकुर, 2 ब्राह्मण, 5 अनुसूचित जाति, 5 अनुसूचित जनजाति और 8 अन्य वर्गों से मंत्री बनाए गए हैं। इन्हीं में 5 महिलाओं को जगह मिली है। रचनाकारों ने प्रहलाद पटेल, कैलाष विजयवर्गीय और उदय प्रताप सिंह जैसे वरिश्ठों को जगह दी, वहीं पूर्व में विधानसभा के अध्यक्ष रहे सीताषरण षर्मा और डाॅक्टर गिरिष गौतम को घर बिठाल दिया। जैन समाज के बड़े उद्योगपति चैतन्य कष्यप को पहली बार केंद्रीय मंत्री बनाया गया है। जबकि वे तीसरी बार विधायक बने हैं। चैतन्य देश के लिए एक आदर्श विधायक हैं। वे वेतन और भत्ते नहीं लेते हैं। साथ ही कोरोना काल में हजारों लोगों को वे प्रतिदिन भोजन कराते थे। हालांकि वे 31 मुख्यमंत्री समेत 31 मंत्रियों में सबसे ज्यादा पैसे वाले हैं। 102.17 करोड़ की संपत्ति उन्होंने नामांकन दाखिल करते समए दिए षपथ पत्र में दी है। गोविंद सिंह राजपूत के पास 14 करोड़ और मंत्री बनीं कृश्णा गौर के पास 10 करोड़ की संपत्ति है। इस मंत्रिमंडल में राज्य मंत्री बनाए गए अनुसूचित जाति के गौतम टेटवाल सबसे गरीब मंत्री हैं, उन्होंने 89 लाख की संपत्ति घोषित की है।

इस परिशद् के रचनाकार संघ के क्षेत्रीय प्रचारक दीपक विस्पुते, संगठन के महामंत्री हितानंद और प्रदेष अध्यक्ष विश्णु दत्त षर्मा के साथ मुख्यमंत्री मोहन यादव ने सरकार गठन के मानक तय किए थे। इसीलिए बड़ी संख्या में नए चेहरों का मंत्री परिशद् में आना संभव हुआ। हालांकि केंद्रीय नेतृत्व के मुखिया नरेंद्र मोदी, अमित षाह और जेपी नड्डा के निर्देष पीढ़ीगत परिवर्तन के थे। जिस पर बहुत अच्छे ढंग से संतुलन बनाने की कोषिष की गई। न केवल भौगोलिक संतुलन बिठाया गया, बल्कि इंडिया गठबंधन को भी जवाब दे दिया गया कि आप तो केवल जातीय कटुता फैलाने की रचना करते हैं, हमने तो जातीय आधार पर वंचितों को सत्ता की चाबी भी सौंप दी। दरअसल मालवा-निवाड़ में सबसे ज्यादा 66 में से 48 सीटें भाजपा ने जींती। इनमें से आठ को मंत्री बना दिया गया। इसी तरह मध्य-क्षेत्र में 31 में से 8, महाकौषल में 31 में से 3, विंध्य में 25 में से 4, बुंदेलखंड में 21 में से 4 और ग्वालियर-चंबल में 18 में से 4 विधायकों को मंत्री पद से विभूशित कर दिया। साफ है, समीकरण लोकसभा चुनाव में भाजपा को मध्यप्रदेष में तो लाभ देगा ही, इसकी मार छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तरप्रदेष, बिहार और झारखंड में भी दिखाई देगी।

हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…