दशहरा पर विशेष : असली दशहरा तो अपने अंदर की रावण रूपी बुराइयों का अंत करने का है!..
आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि 23 अक्टूबर की शाम को 5:44 मिनट से शुरू होगी और इसका समापन 24 अक्टूबर को दोपहर 3:14 मिनट पर होगा। दशहरा पर्व इस बार 24 अक्टूबर को मनाया जा रहा है।इस दशहरा पर्व पर दो शुभ योग बन रहे हैं।चूंकि इस दिन जगह-जगह रावण दहन किया जाता है और मान्यता है कि रावण के पुतले को जलाकर हर इंसान अपने अंदर के काम, अहंकार, क्रोध, लोभ, मोह का त्याग करता है, हालांकि ऐसा बहुत कम हो पा रहा है।इस दिन मां दुर्गा रूपी सांझी की प्रतिमाओं का विसर्जन भी किया जाता है। रावण का वध करने कुछ दिन पहले भगवान राम ने आदि शक्ति मां दुर्गा की पूजा की थी और फिर उनसे आशीर्वाद मिलने के बाद दशमी को रावण का अंत किया था।
दशमी तिथि को ही मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था।इसलिए इसे विजयादशमी भी कहते है। इस दिन शस्त्रों की पूजा भी की जाती है। दशहरे के दिन नीलकंठ के दर्शन करना अति शुभ माना जाता है।अगर आपको नीलकंठ पक्षी के दर्शन हो जाए तो आपके सारे बिगड़े काम बन जाते हैं। नीलकंठ पक्षी को भगवान का प्रतिनिधि माना गया है।यदि दशहरे के दिन किसी भी समय नीलकंठ दिख जाए तो इससे घर में खुशहाली आती है, ऐसी धारणा है। वहीं, हम जो काम करने जा रहे हैं, उसमें सफलता मिलती है।दशहरे पर हम प्रतिवर्ष रावण जलाते है कि सच यह है कि
ऐसा कौन व्यक्ति है, जिसके अंदर आज भी विकार रूप में रावण न बैठा हो, यदि कोई ऐसा व्यक्ति है तो वह राम के समान है और यदि हमारे अंदर विकार मौजूद है तो हम ही रावण के समान है।इसलिए सबसे पहले हमें अपने अंदर के रावण को भगाने के लिए विकारों को समाप्त करना होगा। विकारी रावण को उसके पुतले के प्रतीक रूप में हर बार की तरह हर बार जलाया जाता है। रावण का पुतला केवल इस बार ही नही बल्कि सदियो से जलाया जाता रहा है। परन्तु फिर भी रावण हमारे सामने आ जाता है। वास्तव में जितना हम रावण को जलाते है उससे ज्यादा पैदा वह पैदा हो जाता है।क्योकि आज के समय में रावण केवल भगवान राम का शत्रु लंकाधिपति राजा रावण ही नही बल्कि हमारे अन्दर का वह रावण है जो हमारी विकारी राक्षसी प्रवृति के कारण हमें इंसान से शैतान बना रहा है। जिससे हम दिशाहीन होकर पथभ्रष्ट हो जाते है। अहंकारी राक्षस राजा रावण द्वारा साधू वेष में सीता माता के हरण के बाद उन्हे मुक्त कराने के लिए हुए राम रावण युद्ध में विभिषण के सहयोग से लंकाधिपति रावण का भगवान राम ने वध कर दिया था। जिसे रावण रूपी बुराई के अन्त पर अच्छाई रूपी राम की जीत के रूप में देखा जाता है। रावण पर भगवान राम की विजय की खुशी राम भक्तों को इतनी अधिक हुई कि तब से आज तक इस विजय की स्मृति में प्रतिवर्ष विजय दशमी पर्व यानि दशहरा मनाया जाने लगा और बुराई के प्रतीक रूप में रावण को जलाया जाने लगा। लेकिन असली विकार रूपी रावण आज तक भी नही जल पाया है। यही कारण है कि हर बार जलने के बाद फिर से रावण हमारे अंदर बुराई रूप में जिंदा हो जाता है।
रावण का तो फिर भी चरित्र था, रावण ने अपनी बहन सूपनखा के अपमान का बदला लेने के लिए भगवान राम की अर्धांगिनी सीता माता का अपहरण किया लेकिन उनकी पवित्रता को आंच नही आने दी और उन्हे अशोक वाटिका में ससम्मान रखा। परन्तु आज के रावणों का कोई चरित्र नही रह गया है। इसलिए आज के रावणों का अन्त होना आज की सबसे बडी चुनौती है।रामलीला मंचन के बाद दशहरे पर भले ही हम हर साल रावण जलाकर बुराई का अन्त करने की पहल करते हो परन्तु यथार्थ में रावण का अन्त पुतलों को जलाने से नही होता। असली रावण तों हम सबके अन्दर विकारों के रूप में विराजमान है। काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार रूपी विकारों को जलाकर हम पवित्र बन जाए तो भगवान राम की पूजा सार्थक हो जाएगी और रावण रूपी विकारों का भी अन्त हो जाएगा।रावण रूप में जो देश के गददार है, रावण रूप में जो देश की शान्ति का हरण करने वाले आंतकी है, रावण रूप में जो व्याभिचारी है, रावण रूप में जो भ्रष्टाचारी है, रावण रूपी में जो हिंसावादी है, रावण रूप में जो धोटालेबाज है, रावण रूप में जो साम्प्रदायिकता का जहर समाज में धोल रहे है, रावण रूप में जो विकास के दुश्मन है, रावण रूप में जो इंसानियत के दुश्मन है, उनका खात्मा करने से ही रामराज्य की परिकल्पना साकार हो सकती है। जिसके लिए हमे संकल्पित होना होगा।
मयार्दा पुरूषोतम श्री राम का चरित्र रामायण में एक आदर्श पुरूष का चरित्र दर्शाया गया है।ताकि समाज के लोग राम जैसा चरित्र अपना सके। राम के चरित्र और रामायण के अन्य पात्रों से शिक्षा ले सके, इसीलिए नवरात्रों में जगह जगह रामलीलाओं का मंचन किया जाता है। अयोध्या के राजा दशरथ को एक आदर्श पिता के रूप में, भगवान राम को मयार्दा पुरूषोतम व रधुकुल रीत रूपी वचनों का पालन करने के रूप में, भाई लक्ष्मण को बडे भाई की भक्ति के रूप में, भाई भरत को बडे भाई के प्रति समर्पण के रूप में, उर्मिला को पति विरह के रूप में, कौशल्या को आदर्श मां के रूप में, केकई को अवसर का फायदा उठाने के रूप में जहां हमेशा याद किया जाता है। वही हनुमान की राम भक्ति, विभिषण की सन्मार्ग शक्ति, जटायु की पराक्रम सेवा और सुग्रीव की राम सहायता हमेशा अमर रहेगी। वास्तव में रामायण एक आदर्श जीवन जीने का सन्मार्ग सीखाती है। तभी तो हम बार बार रामायण पढते है और दशहरे से पहले रामलीला का मंचन कर राम काल से प्रेरणा लेकर राम राज्य की कल्पना को साकार करने की कौशिश करते है। भले ही वह आज तक पूरी नही हो पाई।
भगवान राम किसी एक धर्म के नही बल्कि उन सभी के है, जो भगवान राम को अपना आदर्श मानकर उनके आदर्शो पर चलता है। भगवान राम को लेकर भी राजनीति भी की जाने लगी है। कोई राम मन्दिर बनाने के नाम पर वोट की राजनीति कर रहा है तो कोई राम को सिर्फ भगवाधारियों का बताकर उनके आदर्शो के साथ खिलवाड कर रहा है। जबकि भगवान राम अयोध्या के एक ऐसे महान मर्यादित राजा हुए है जिनके राज्य में कोई भी दुखी नही था। चाहे वह किसी भी जाति या धर्म का क्यों न हो, उनके राज्य में सभी सुखी एवं प्रसन्न थे। तभी तो रामराज्य को अब तक का सबसे अच्छा राज्य कहा जाता है। राम राज्य की परिकल्पना साकार करने के लिए हम सबको अपने अपने विकारों को जलाना होगा, ठीक उसी रावण की तरह जिसे बुराई रूप में हम वर्षो से जलाते आ रहे है और जलाते रहेंगे।
कैसे राम के राज्य की परिकल्पना साकार हो इसपर हमे आत्म चिंतन करने की आवश्यकता है। यदि ऐसा चिंतन कर हम उस दिशा में आगे नही बढ़ते तो फिर चाहे कितने ही रावण क्यों न जला ले जब तक धर धर, गली गली गांव गांव, शहर शहर बैठे रावणों का अन्त नही होगा तब तक विजय दशमी के पर्व को सार्थक नही माना जा सकता। तो आइए आज ही विजय दशमी पर्व पर यानि दशहरे पर भगवान राम की शपथ ले कि हम भगवान राम को आत्म सात करेगें और भगवान राम के आदर्शो पर चलकर सारे विकारो को त्यागकर उस रावण का अपने अन्दर से अन्त करेगें जो हमें राम बनने नही दे रहा है और हमे कदम कदम पर विकारग्रस्त कर हमें रावण जैसा बना रहा है।अगर हम खुद ही रावण से राम बन जाये तो हम सबका असली दशहरा मन जाएगा।
आओ राम के पथ चले
मर्यादा में जीवन को ढले
विकारों को पीछे छोड़ते चले
पतित से पावन बनते चले
रावण स्वयं ही जल जाएगा
अहंकार शेष न रह पाएगा
सद्कर्मों की पहल करते चले
राम का राज्य बनाते चले।
(लेखक आध्यात्मिक चिंतक व वरिष्ठ पत्रकार है।)
-डॉ. श्रीगोपाल नारसन-
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…