मन को बांध लेती है यहां की नैसर्गिक सुंदरता, अदभूत है यहां के नजारे…
देश के प्रमुख पर्यटन स्थलों में हिमाचल ऐसा स्थान है जहां लोग सर्दियों में हिमपात का आनंद लेने जाते हैं तो गर्मियों में मैदानी भागों की लू से बचने के लिए। चूंकि आतंकवाद के कारण कश्मीर में इन दिनों बर्फानी सुंदरता का आनंद लेना आसान नहीं रह गया है, ऐसे में हिमाचल प्रदेश में आप कश्मीर की सुंदरता का भी कमोबेश आनंद ले सकते हैं। यही कारण है कि हिमाचल में इन दिनों पर्यटकों की भीड़ बढ़ती जा रही है। यहां पहुंचने के लिए सड़क और रेलमार्ग आसान विकल्प हैं। निकटवर्ती हवाईअड्डा जुब्बाहाटी है जो शिमला से 20 कि.मी. दूर है। यहां के लिए दिल्ली से वाया चंडीगढ़ सप्ताह में तीन दिन उड़ानें हैं।
यात्रा का आरंभ
बेहतर होगा आप अपनी यात्रा चंडीगढ़ से आरंभ करें। चंडीगढ़ से रवाना होने पर कुछ किलोमीटर चलने के बाद पिन्जौर में मुगल शैली में बने सात-टैरेस वाले यदविंद्रा बाग में रुक सकते हैं। यहां रात का नजारा देखते ही बनता है। आगे रास्ते में जंगलों और छोटे-छोटे जंगली पौधों से ढंका कांडाघाट और घाटियां दर्शनीय हैं। चमत्कारिक सौंदर्य वाला जार्जियन मैंशन और चहल पैलेस, जो अब एक होटल है, यहीं स्थित है। पटियाला के महाराजा ने गर्मियों से दूर हटकर ऐशो-आराम से रहने के लिए उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में इस पैलेस को बनवाया था। यहां घने देवदार के जंगलों, विभिन्न प्रकार के हिरनों और फीसैंट चिड़ियों से बसी सैंक्चुरी में वन्य जीवन का आनंद लिया जा सकता है। शिमला के रास्ते में आप चारों तरफ फैली बर्फ की पहाड़ियों और हरी-भरी वादियों को निहार सकते हैं, उनकी सुंदरता में खो सकते हैं। ऐसे में आप कब शिमला पहुंच जाएंगे, आपको पता ही नहीं चलेगा।
शिमला हिमाचल प्रदेश की राजधानी है और अंग्रेजों के लिए यह गर्मियों की राजधानी थी। अंग्रेज यहां पर अपनी पहचान स्थायी रूप से छोड़ गए हैं। आज आसानी से मिलने वाली पूर्ण विकसित सुविधाएं और इसके बहुत से आकर्षणों के कारण यह भारत का सबसे ज्यादा लोकप्रिय पर्यटन स्थल बन गया है। शहर के अंदर पैदल यात्रा करने के लिए खूबसूरत मार्ग हैं और आप खरीदारी करने माल पर जा सकते हैं। यहां मशोबरा, बेसालटी रोड, कैम्प साइड, गोल्फ कोर्स, तत्तापानी और शिव-पार्वती की गुफाएं आकर्षक स्थल हैं।
पवित्र चोटियां
शिमला से आप सराहन जा सकते हैं जहां नीचे घाटी में मानसरोवर में अपने स्त्रोत से मीलों दूर सतलज नदी बहती है। दूसरी ओर बर्फ से ढके श्रीखंड और स्वागत करती बर्फ की सफेद चादर से ढंकी हुई चोटियां हैं। इनमें से कुछ तो ऐसी हैं कि आज तक कोई भी उन्हें लांघ नहीं सका इसलिए इन्हें पवित्र माना जाता है। सराहन के चारों ओर खेत, खलिहान, गांव, असाधारण शिल्पकला, जंगल और तेज बहती जलधाराएं हैं। सराहन मंदिर की इमारत की बाहरी सीमाओं में अंदाजन एक एकड़ में बाग, इमारतें और कोर्टयार्ड हैं।
पारंपरिक सुंदरता से युक्त सांगला घाटी तिब्बती सीमा के पास है। 1993 तक भारतीयों के लिए भी यहां प्रवेश वर्जित था। विदेशियों को आज भी अपने आपको रजिस्टर करवाकर जाना पड़ता है। यहां अनेक सुंदर घाटियां हैं जहां पानी की तेज बौछारों के साथ अठखेलियां करती दो बड़ी नदियां सतलज और स्पीति बहती हैं। सांगला घाटी में दो पर्वतीय सीमाएं हैं-जंसकार और ग्रेटर हिमालय। यह स्थान भारत की कुछ पुरानी परंपराओं और काल्पनिक गाथाओं का घर है। कहा जाता है कि पांडवों ने अपने वनवास के कई वर्ष इन रास्तों पर बिताए, जो महाभारत की एक कड़ी है। यहां पर जंगल, विभिन्न प्रकार के जानवर देखने को मिलते हैं। यहीं निछार मंदिर में भी देखने लायक नक्काशी है। घाटी के अंदर जाकर बटसेरी के पास और चितकुल में, गर्मी और बसंत ऋतु में टैंट में रहने का इंतजाम बहुत बढ़िया है। सांगला घाटी से ऊपर एक स्तंभ आकार में कामरू का किला है जो कि शांत संतरी की तरह उसकी सुंदरता की रखवाली करता है। यहां से आप स्पीति और लाहौल घूमने जा सकते हैं जो हमेशा बर्फ से ढंकी रहती हैं।
यहां से कुछ दूर रिकांगपिओ में कैलाश की तरफ 79 फुट ऊंची चट्टान से बनी आकृति है जो शिवलिंग जैसी लगती है। जैसे-जैसे दिन गुजरता है, यह अपना रंग बदलती है। रिकांगपिओ से कुछ सौ मीटर ऊपर और 12 कि.मी. दूर सड़क के रास्ते से पुराने मुख्यालय कलपा के विश्राम गृह ऐसे हैं जैसे कि मौसमी शिविर। पास में ही चारों तरफ खेतों और अंगूर की बेलों से घिरी रिब्बा घाटी शराब बनाने के लिए भी जानी जाती है। राजमार्ग पर चांगो सराहन का अंतिम गांव है और इसकी मानसून रहित बंजर भूमि इलाके के बेहतरीन सेब उगाती है।
सराहन से आगे 996 में स्थापित, ताबो गोम्पा में खुदी सीमेंट की तस्वीरें और मूर्तियां कुछ इस तरह से बनी हैं कि इन्हें हिमालय की अजंता के नाम से जाना जाता है। यह सबसे बड़ा मठ है जिसमें नौ मंदिर हैं। स्पीति के मुख्यालय काजा में जरूरी सुविधाएं और बाजार हैं। काजा से हीकिम, कोमिक और लांगजा गुफाएं घूमी जा सकती हैं। ताबो से निकलकर रास्ते में बनकर गोम्पा देखी जा सकती है जो कला का एक अद्भुत उदाहरण है।
यहां से कुछ आगे कीलौंग और लाहौल है जो पहली नजर में डरावना लगता है, पर जैसे ही आप आगे बढ़ते हैं, लाहौल की नैसर्गिक सुंदरता आपको बांधने लगती है। लाहौल शब्द मूल रूप से देवताओं के देश से लिया गया है। इसके आकर्षणों में मौजूद हैं बुद्ध की गुफाएं, दर्रे, हिमनद, झीलें और नदियां। यहां से आप लाहौल-स्पीति के जिला मुख्यालय कीलौंग के लिए रवाना हो सकते हैं। कीलौंग में आठ मंजिला लकड़ी और पत्थर से बना स्तंभ है। कीलौंग स्थित बुद्ध के गोम्प भी देखने लायक हैं। प्रकृति की अद्भुत सुंदरता भी यहां का आकर्षण है। आगे सरघु पड़ता है जो हिमाचल का आखिरी बिंदु है। यहां पर्यटकों के लिए टैंटों से बनी कालोनी भी है।
यहां से मनाली जाते हुए आप रोहतांग पास दर्रे को पार करते हैं, जहां से पवित्र चोटियां जुड़वां, जिफांग और सोनापति हिंद दिखती हैं। यहां से कुछ ही दूरी पर दशेर (सारकुंड) सरोवर है। यहीं पर बर्फ से ढंकी पहाड़ियों के पीछे हैं तेज रफ्तार से बहती धाराएं, विभिन्न प्रकार के जंगली फूल और घने जंगल जो मन को बांधते हैं। यहां का सारा दृश्य छुट्टियां बिताने के लिए आए लोगों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करता है।
मनाली से 3 किलोमीटर की दूरी पर वशिष्ठ नामक स्थान है जो अपने गर्म झरनों के लिए जाना जाता है। यहां से पास ही में सोलंग घाटी है जो बहुत ही अच्छा स्कीइंग ढलान और पिकनिक स्पॉट है। मनाली के पास ही हिमनद है। सर्दियों में यहां का तापमान बर्फ जमने के तापमान के आसपास पहुंच जाता है पर गर्मियों में बहुत ही सुहाना मौसम रहता है।
मनाली के साथ ही हिमाचल में कुल्लू घाटी अपनी सुंदरता और खूबसूरती के लिए विख्यात है। यह 80 किलोमीटर लंबी और पतली घाटी है जो दोनों ओर से पर्वतों की ऊंची-ऊंची श्रृंखलाओं से घिरी हुई है। घाटी में नागर एक आकर्षक स्थल है जहां आप गर्मी से निजात पाते हैं और साथ ही पाते हैं दूर-दूर तक फैली हरियाली जिसकी सुंदरता को शब्दों में नहीं समेटा जा सकता है।
हिमाचल की घाटियों में शायद चंबा घाटी सबसे रमणीय है। यह अपने प्राकृतिक सौंदर्य, बहते झरनों, झीलों, चरागाहों तथा देवदार के घने जंगलों के लिए प्रसिद्ध है। उच्च पहाड़ी श्रृंखलाओं का स्थान चंबा वन्य जीवन से परिपूर्ण तथा जंगली पशुओं का पसंदीदा निवास स्थल है जिसमें दुर्लभ किस्म के बर्फीले तेंदुए, सार्कन, भूरे भालू, तेंदुए तथा कस्तूरी मृग आदि हैं। चंबा की प्राकृतिक सुंदरता ही इसे छुट्टी बिताने के लिए उत्तम स्थान बनाती है।
चंबा घाटी में ही डलहौजी की स्थापना 1854 में लॉर्ड डलहौजी ने की जो समुद्र तल से 2039 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह एक छोटा-सा हिल स्टेशन है जो आज भी अपना आकर्षण बनाए हुए है। डलहौजी के भवन निर्माण तथा वहां के मकानों में आज भी उपनिवेश काल की झलक दिखाई देती है। पांच पहाड़ों के इर्द-गिर्द बसी चंबा घाटी देवदार व ओक के वृक्षों से घिरी है। इसके जंगल, यहां के पहाड़ों के दृश्य, गिरते पानी के झरने व नदियां मनोहारी हैं। चंबा घाटी के शानदार दृश्य तथा शक्तिशाली धौलाधर की बर्फाच्छादित पर्वत श्रृंखला संपूर्ण क्षितिज को मनोहारी बनाती है।
डलहौजी के आसपास सुभाष बाओली (2085 मीटर) से ऊपर बर्फ से ढंके पर्वतों के विहंगम दृश्य सहज ही आपके मानस पटल पर अंकित हो जाते हैं। शहर से नजदीक पंजपुल्ला के रास्ते में सातधार के सात झरने पड़ते हैं जो कि माइका तथा अपनी औषधीय विशेषताओं के कारण प्रसिद्ध है। इसे सप्तधारा के नाम से जाना जाता है। बकरोला पहाड़ियां (2085 मी.) शहर के नजदीक ही हैं। बकरोला माल की प्रसिद्ध पदयात्रा मनोहारी पर्वतों से घिरी है। चंबा के आसपास कटसन देवी मंदिर है जो तीर्थाटन के लिए प्रसिद्ध है।
डायन कुंड एक ऊंचा शिखर है। यदि मौसम साफ हो तो पर्वतों, खूबसूरत घाटी, नदियां जिनमें व्यास, रावी व चिनाब शामिल हैं, का मैदानों की ओर कल-कल बहता नीर अद्भुत दृश्य उपस्थित करता है। यहां से कुछ दूरी पर खच्चर स्थित है जो अपने घने देवदार के तश्तरीनुमा जंगलों के बीच बसे चरागाह, एक सुनहरी झील व गोल्फकोर्स के माध्यम से पूरे स्थान को एक अलग ही रूप प्रदान करता हैं। पास में ही घने जंगल के बीच बसा झांवर अपने सेब के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। अन्य दर्शनीय स्थल में सलूनी मंत्रमुग्ध कर देने वाले हिमाच्छादित पर्वतमाला का दृश्य दिखाने वाला एक अन्य स्थल है।
चंबा घाटी की ही तरह हिमाचल में पांगी घाटी है, जो चंबा से 137 कि.मी. उत्तर पूर्व फैली है। पांगी घाटी खूबसूरत लोगों तथा लोक नृत्य के लिए प्रसिद्ध है। एक अन्य स्थल भरमौर के आसपास मणिमहेश 34 कि.मी. की दूरी पर तीर्थाटन के लिए महत्वपूर्ण स्थल है। मणिमहेश की चोटी छोटी-सी झील में प्रतिबिंबित होती है, जो अति सुंदर लगती है।
हिमाचल के खूबसूरत शहरों में से एक धर्मशाला बरबस ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह चीड़ के जंगलों के बीच बसा बहुत ही सुंदर शहर है। यहां आने के लिए रेल से पठानकोट आना पड़ता है जो धर्मशाला के निकट ही है। यह विविधताओं से भरा हिल स्टेशन है। नीचे का शहर का हिस्सा व्यावसायिक रूप से व्यस्त हिस्सा है तथा 1250 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस भाग को फॉरेस्टगंज तथा मैकलाडगंज नाम से जाना जाता है। गगनचुंबी धौलधार की चोटियां शहर के पृष्ठपट में अति सुंदर लगती हैं।
ऊपर मैकलाडगंज में जहां तिब्बती लोग बसे हैं, वहां पर बाजारों में तिब्बती कार्पेट, हस्तशिल्प तथा लजीज तिब्बती व्यंजन मिलते हैं। यहां एक विशाल पूजा चक्र भी है तथा बौद्ध विहार में भगवान बुद्ध की प्रतिमा भी। साथ ही मंत्रोचारण करते बौद्ध भिक्षु भी यहां रहते हैं। मैकलाडगंज में ही दलाई लामा का निवास है। इस कारण यह जगह तिब्बती सांस्कृतिक क्रियाकलापों का केन्द्र भी है। इसमें दुर्लभ पांडुलिपियों तथा प्राचीन लेखों के साथ तिब्बती पाठशाला भी है तथा तिब्बती कला तथा हस्तकला संस्थान भी है।
धर्मशाला के नजदीक त्रिऊंड, मैकलाडगंज के ऊपर एक खड़ी चढ़ाई पर है। यहां से आप अद्भुत बर्फीले नजारे देख सकते हैं। यहां पास में ही डल झील है। देवदार के वन से घिरी यह झील अत्यंत रमणीय व मनोहारी दृश्यों से सुसज्जित है। यहां पर्यटकों के लिए आराम की अच्छी जगह है। पास में ही स्थित धर्मकोट की पहाड़ियों से समस्त कांगड़ा घाटी और धौलाधार शिखरों के दर्शन किए जा सकते हैं। मैकलाडगंज के अंतिम छोर पर भगसुनाथ में एक खूबसूरत झरना तथा मंदिर है। रास्ते में मच्छरियाल का एक आकर्षक जलप्रपात पड़ता है जो अपने गर्म पानी के झरनों के लिए प्रसिद्ध है। साथ ही करेरी में ठंडे देवदार के पेड़ों के बीच आरामगाह है तथा झील है। यह झील हरे चारागाह, ओक तथा देवदार में जंगल के बीच 3250 की ऊंचाई पर है। शहर से कुछ ही दूरी पर चामंुडा देवी मंदिर स्थित है। यह अत्यंत लुभावना स्थल है। अपनी अद्भुत छटा के साथ ही यहां पर पर्वतों व वन की खूबसूरती देखते ही बनती है। इसी घाटी में मसरकर में पंद्रह अत्यंत सुंदर काटे गए पाषाण मंदिर हैं। इनका निर्माण एलोरा के कैलाश मंदिर की शैली में 8वीं शताब्दी में किया गया था। यह कांगड़ा से सिर्फ 15 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।
हिमाचल की सुंदर घाटियों में कांगड़ा का अपना अहम स्थान है। खूबसूरत धौलाधार पर्वत श्रृंखला के दक्षिणी किनारे पर चीड़, देवदार के वन, चाय बागान तथा सीढ़ीनुमा खेतों से यह घाटी घिरी है। धौलाधार की खेत श्रेणियां 1400 फुट तक ऊंची हैं। किसी समय सबसे शक्तिशाली पहाड़ी राज्य की राजधानी रही कांगड़ा घाटी अपने मंदिरों तथा कला केंद्र के रूप में प्रसिद्ध है। कांगड़ा के आसपास के दर्शनीय स्थलों में ज्वालामुखी प्रसिद्ध है। यहां एक अद्भुत मंदिर भारतीय सिख शैली में बना है। यहां पर प्राकृतिक रूप से एक लौ जलती है जिसे देवी मां का अद्भुत प्रताप माना जाता है।
हिमाचल में सुजानपुर, हमीरपुर से 22 कि.मी. की दूरी पर व्यास नदी के किनारे पड़ता है। यह अत्यंत मनोरम दृश्य से सुसज्जित स्थान है। यहां ग्लाइडिंग तथा पैराग्लाइडिंग आदि की आकर्षक सुविधाएं हैं। विश्व का सबसे सुंदर ऐरोस्पोर्ट विलिंग वीस भी यहीं स्थित है।
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…