अब भोपाल में विश्व विरासत पर होगी बात, यूनेस्को, पर्यटन मंत्रालय, मध्य प्रदेश शासन आए साथ…
कई देशों के विशेषज्ञ होंगे एक मंच पर, मुख्य आयोजन 17 अप्रैल से
भोपाल, 15 अप्रैल। मध्य प्रदेश में अनेक सुरम्य दर्शनीय स्थल और ऐतिहासिक धरोहरों का खजाना है। मगर राजधानी भोपाल और उसके आसपास विश्व विरासत इतनी अधिक है कि कोई भी विदेशी भारत आकर एक बार इन स्थानों पर जरूर घूम लेना चाहता है।
ऐसे में नई पहचान को खोजने, विरासत स्थल के संरक्षण, चुनौतियों एवं आगामी रणनीति को ध्यान में रखते हुए यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन), पर्यटन मंत्रालय भारत सरकार, भारतीय पुरातत्व संरक्षण और पर्यटन विभाग मध्य प्रदेश शासन द्वारा संयुक्त रूप से भोपाल में विश्व विरासत पर उप-क्षेत्रीय सम्मेलन (सब-रीजनल कॉन्फ्रेंस) का आयोजन किया जा रहा है। इसका शुभारंभ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 17 अप्रैल को करेंगे।
दो दिवसीय उप क्षेत्रीय कॉन्फ्रेंस में यूनेस्को, नई दिल्ली के ऑफिस-इन-चार्ज हिचकील देलमिनी और पर्यटन, संस्कृति, धर्मस्व एवं धार्मिक न्यास सुश्री उषा ठाकुर शामिल होंगी। इस संबंध में प्रमुख सचिव पर्यटन एवं संस्कृति एवं प्रबंध संचालक टूरिज्म बोर्ड शिव शेखर शुक्ला का कहना है कि इस आयोजन के लिए कई देशों के विषय विशेषज्ञ भोपाल पहुंच चुके हैं। यह लोग 16 अप्रैल को यूनेस्को के विश्व धरोहर सांची का भ्रमण करेंगे। 17 एवं 18 अप्रैल को आयोजित सत्र में भाग लेंगे।
उन्होंने बताया कि इसमें भारत, भूटान, बांग्लादेश, नेपाल, मालदीव, श्रीलंका एवं देश के विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधि भाग लेंगे। इसके अलावा सभी राज्यों के संस्कृति और पर्यटन के प्रमुख सचिव, पर्यटन मंत्रालय और संस्कृति मंत्रालय के प्रतिनिधि, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के प्रतिनिधि, राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय सिविल सोसायटी, गैर सरकारी संगठन, देश की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए कार्यरत सीएसआर फाउंडेशन, शिक्षण संस्थान एवं कई शासकीय संगठन भी इस कॉन्फ्रेंस में भाग लेंगे।
शुक्ला का कहना है कॉन्फ्रेंस में पिछले 50 वर्षों की उपलब्धियों पर चर्चा और अगले 50 वर्षों के संबंध में मंथन होगा। उल्लेखनीय है कि नवंबर 2022 में यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज कन्वेंशन की 50वीं वर्षगांठ मनाई जा चुकी है। गत 50 वर्षों में सांस्कृतिक विरासत का अर्थ ”स्मारक केन्द्रित” से परिवर्तित होकर लोक केंद्रित एवं समग्र दृष्टिकोण पर केन्द्रित हो चुका है। ऐतिहासिक नगर, औद्योगिक विरासत, ऐतिहासिक मार्ग, ऐतिहासिक परिदृश्य इत्यादि नए आयाम जुड़ चुके हैं। मध्य प्रदेश ने यूनेस्को के साथ मिलकर इस दिशा में अनेक प्रयास किये हैं जिनमें एचयूएल (ग्वालियर एवं ओरछा) प्रोजेक्ट, 4 ऐतिहासिक/पर्यटन स्थलों का यूनेस्को विश्व धरोहरों की संभावित सूची में चयन इत्यादि मुख्य है।
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…