निकोबार परियोजना की पर्यावरणीय मंजूरी पर पुनर्विचार के लिए समिति बनाने पर कांग्रेस ने केंद्र को घेरा…
नई दिल्ली, 08 अप्रैल । राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) द्वारा ग्रेट निकोबार द्वीप समूह परियोजना को दी गई पर्यावरण मंजूरी पर पुनर्विचार के लिए एक समिति गठित किए जाने को लेकर कांग्रेस ने केंद्र सरकार की आलोचना की है।
पार्टी ने आरोप लगाया है कि प्रधानमंत्री (नरेन्द्र) मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने ‘‘पर्यावरण का विनाश’’ शुरू कर दिया है और जो किया जा रहा है, वह ‘‘पारिस्थितिकीय दु:स्वप्न’’ है।
एनजीटी ने ग्रेट निकोबार द्वीप समूह में विभिन्न घटकों वाली मेगा परियोजना के लिए अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह एकीकृत विकास निगम (एएनआईडीसीओ) को दी गई पर्यावरणीय मंजूरी पर पुनर्विचार के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया है।
एक अंतरराष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल के विकास के साथ इस परियोजना में एक सैन्य-नागरिक दोहरे उपयोग वाले हवाई अड्डे, एक गैस, डीजल और सौर-आधारित बिजली संयंत्र तथा एक बस्ती का विकास भी शामिल है।
समिति के गठन को लेकर एक मीडिया रिपोर्ट को टैग करते हुए कांग्रेस महासचिव एवं पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने शुक्रवार को ट्वीट किया, ‘‘जब हम चिपको आंदोलन और ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के 50 साल पूरे होने तथा ‘साइलेंट वैली’ की रक्षा के 40 साल पुराने ऐतिहासिक फैसले की सराहना कर रहे हैं, तब मोदी सरकार ने ग्रेट निकोबार में ‘पर्यावरण का विनाश’ शुरू कर दिया है।’’
रमेश ने कहा, ‘‘जो हो रहा है, वह पारिस्थितिकीय दु:स्वप्न है।
एनजीटी परियोजना प्रस्तावक (पीपी) एएनआईडीसीओ को प्रदान की गई वन मंजूरी और पर्यावरण मंजूरी के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रहा था। इससे पहले, 11 जनवरी को उसने केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और पीपी से जवाब मांगा था।
न्यायिक सदस्यों-न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल, न्यायमूर्ति बी अमित स्थालेकर और न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी के साथ अधिकरण के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ए के गोयल की पीठ ने कहा कि प्रवाल भित्तियों, मैंग्रोव, कछुओं के अंडा देने के स्थलों, पक्षियों के घोंसले बनाने के स्थलों, अन्य वन्यजीव, कटाव, आपदा प्रबंधन और अन्य संरक्षण और शमन उपायों पर प्रतिकूल प्रभाव को लेकर पर्याप्त अध्ययन किए जाने की आवश्यकता है।
इसके अलावा, द्वीप तटीय विनियमन क्षेत्र (आईसीआरजेड) की 2019 की अधिसूचना का अनुपालन किया जाना था और आदिवासी अधिकारों और पुनर्वास को भी सुनिश्चित करना था।
अधिकरण ने कहा कि कई पहलुओं को लेकर अभी कमियां दिख रही हैं।
एनजीटी ने कहा, ‘‘इन पहलुओं को लेकर एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति द्वारा पर्यावरण मंजूरी पर पुन:विचार की जरूरत हो सकती है। हम समिति का गठन करने का प्रस्ताव देते हैं, जिसकी अध्यक्षता पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सचिव करेंगे।’’
समिति के अन्य सदस्यों में अंडमान एवं निकोबार के मुख्य सचिव, भारतीय प्राणी सर्वेक्षण, भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, भारतीय वन्यजीव संस्थान के निदेशक और नीति आयोग के उपाध्यक्ष द्वारा नामित व्यक्ति तथा जहाजरानी मंत्रालय के सचिव शामिल होंगे।
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…