उड़ीसा का नगीना है चिल्का झील…

उड़ीसा का नगीना है चिल्का झील…

ऐतिहासिक एवं धार्मिक पर्यटन स्थलों की भूमि उड़ीसा में एक प्राकृतिक नगीना चिल्का झील है। राज्य के समुद्रतटीय हिस्से में पसरी यह झील अपने अवर्णनीय सौंदर्य एवं पक्षी जीवन के लिए विश्वप्रसिद्ध है। बंगाल की खाड़ी से सटी चिल्का भारत में खारे पानी की सबसे बड़ी झील है। बालू के ढेर से बनी लंबी दीवार इसे समुद्र से अलग करती है। यह दीवार एक स्थल डमरूमध्य है। झील के एक ओर संकरा सा मुखद्वार है, जहां से ज्वार के समय समुद्री जल इसमें आ समाता है। इस तरह इस सुंदर लैगून की रचना होती है।

मीठे जल का संगम:- चिल्का झील में महानदी की भार्गवी, दया, कुसुमी, सालिया, कुशभद्रा जैसी धाराएं भी समाहित होती हैं। इससे इसमें मीठे जल का संगम होता है। इस मिश्रित जल में ऐसे कई गुण हैं जो यहां के जलीय पौधों व जंतुओं के लिए लाभप्रद होते हैं। इसीलिए यहां पक्षियों की लगभग 158 प्रजातियां देखी जाती हैं। इनमें 95 प्रकार के प्रवासी पक्षी होते हैं, जो हजारों मील दूर साइबेरिया, बेकाल, मनचूरिया आदि से आकर यहां डेरा डालते हैं।

बतख, नन्हें स्टिनर, सेंडरलिंग, क्रेन, गोल्डन प्लोवर, फ्लेमिंगो, स्टोर्क गल्स, सैड पाइपर्स और ग्रे पेलिकन यहां पाए जाने वाले प्रमुख पक्षी हैं। अक्टूबर-नवंबर में पक्षियों का आना शुरू होता है और दिसंबर-जनवरी में तो जगह-जगह पक्षियों के झुंड ऐसे दिखते हैं, जैसे उनकी अलग-अलग कॉलोनियां बसी हों। इसीलिए इसे बर्ड वॉचर्स का स्वर्ग कहा जाता है। अफ्रीका की विक्टोरिया झील के बाद यह दूसरी झील है, जहां पक्षियों का इतना बड़ा जमघट लगता है। इस झील को 1973 में वाइल्ड लाइफ सेंचुरी घोषित किया गया था।

फिशिंग के शौकीन लोगों को भी चिल्का बहुत पसंद है। इसके जल में मछली, झींगे व केकड़ों आदि की 150 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। इसके मुखद्वार के निकट आपको डॉलफिन देखने का सौभाग्य भी मिल सकता है। उड़ीसावासियों के लिए चिल्का झील प्रकृति की ऐसी देन है जिससे करीब एक लाख लोगों का जीवन जुड़ा है। इस झील से प्रतिवर्ष 6000 टन सी फूड प्राप्त होता है।

जगन्नाथ पुरी के दक्षिण-पश्चिम में स्थित चिल्का झील एक ऐसी सैरगाह है, जिसे देखे बिना उड़ीसा की यात्रा पूरी नहीं हो सकती। सूर्य की स्थिति एवं झील के ऊपर मंडराते बादलों में परिवर्तन के साथ यह नयनाभिराम झील दिन के हर प्रहर में अलग रंग और अलग रूप में नजर आती है। साड़ी के आंचल की तरह फैले इसके विस्तार पर जगह-जगह डॉट के डिजाइन से नजर आते हैं। ये वास्तव में इस झील में जलीय वनस्पतियों से बने छोटे-छोटे द्वीपखंड हैं।

ये द्वीपखंड चिल्का के सौंदर्य में चार चांद लगाते हैं। कुछ बड़े द्वीप भी इसकी खूबसूरती को बढ़ाते हैं। इनमें कालीजय द्वीप, बर्ड आइलैंड, ब्रेकफास्ट आइलैंड, हनीमून आइलैंड, परीकुंड तथा नालाबन प्रमुख हैं। इनमें परीकुंड द्वीप सबसे सुंदर है। कालीजय द्वीप पर बना कालीजय मंदिर भी आकर्षक है। यह झील तटीय उड़ीसा के निवासियों की संस्कृति का भी खास हिस्सा है। झील के तट पर हर वर्ष तारतारिणी मेला लगता है। पर्यटन विभाग द्वारा प्रतिवर्ष झील में एक बोट रेस का आयोजन भी किया जाता है।

झील की सैर:- चिल्का की प्रचुर जलराशि के सौंदर्य को किसी एक जगह से देख पाना संभव नहीं है। नाशपाती के आकार में 1100 वर्ग किमी दायरे में फैली यह झील लगभग 70 किमी लंबी और 15 किमी चैड़ी है। इसकी औसत गहराई तीन मीटर है। झील के एक ओर नीला सागर है और दूसरी ओर राष्ट्रीय राजमार्ग व रेलवे लाइन से आगे हरी-भरी पहाड़ियां हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग पर बालुगांव, बरकुल व रंभा और कोलकाता-चेन्नई रेलमार्ग पर चिल्का, खल्लीकोट, रंभा व बालुगांव आदि स्थानों से इस झील की सैर की जा सकती है। बरकुल तथा रंभा में क्रूज बोट भी मिलती है। यहां पर्यटक कयाकिंग का आनंद भी ले सकते हैं। बरकुल में एक वाटर स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स भी है।

चिल्का भ्रमण के लिए पुरी व भुवनेश्वर से कंडक्टड टूर भी चलते हैं। कटक, भुवनेश्वर, पुरी व बेरहमपुर से बस या टैक्सी से भी पहुंचा जा सकता है। पर्यटकों के ठहरने के लिए रंभा व बरकुल में उड़ीसा पर्यटन विभाग का पंथ निवास होटल तथा अन्य होटल हैं। परीकुंड द्वीप पर परीकुंड पैलेस भी एक अच्छा स्थान है। वायुगांव में अशोका होटल तथा सतपाड़ा में यात्री निवास में ठहरा जा सकता है।

हिन्द वतन समाचार” की रिपोर्ट…