पंजाब भाजपा के नए ‘कैप्टन…
कांग्रेस को छोड़ कर जाने का सिलसिला थम नहीं रहा है। पंजाब के पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, सात पूर्व विधायकों और एक पूर्व सांसद तथा उनके समर्थकों समेत, भाजपा में शामिल हो गए हैं। पूर्व मुख्यमंत्रियों के भाजपा में शामिल होने की कड़ी में कैप्टन 10वें ऐसे नेता हैं। उनसे पहले कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एसएम कृष्णा, गोवा के दिगंबर कामत, उत्तराखंड के विजय बहुगुणा, आंध्रप्रदेश के केएन किरण रेड्डी, महाराष्ट्र के नारायण राणे, उप्र के नारायण दत्त तिवारी, झारखंड के बाबूलाल मरांडी भाजपा में आ चुके हैं। सितंबर, 2021 तक कोई सोच भी नहीं सकता था कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के अंतरंग मित्रों में शुमार रहे कैप्टन कांग्रेस का ‘हाथ’ झटक कर भाजपा में शामिल हो सकते हैं, लेकिन सोनिया-राहुल गांधी की कांग्रेस के दौर में कद्दावर नेताओं को अपमानजनक रूप से कांग्रेस छोडऩी पड़ी है। कैप्टन को भी वह संत्रास झेलना पड़ा। गुलाम नबी आज़ाद ने भी वही पीड़ा महसूस की होगी। कैप्टन से पहले पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष रहे सुनील जाखड़ भाजपा में आ चुके हैं। अब मनीष तिवारी, रवनीत बिट्टू आदि सांसदों की प्रतीक्षा है।
इसी जमात में कैप्टन की पत्नी परणीत कौर भी हैं, जो पटियाला से कांग्रेस सांसद हैं। पंजाब के पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री चन्नी का अता-पता ही नहीं है कि वह कहां हैं? बहरहाल पंजाब के संदर्भ में कैप्टन अमरिंदर सिंह का भाजपा में आना और उनकी ‘पंजाब लोक कांग्रेस’ पार्टी का भाजपा में विलय होना उस दौर की एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक घटना है, जब प्रधानमंत्री मोदी ने पंजाब में भाजपा के ताकतवर विस्तार का बीड़ा उठाया है। बीते विधानसभा चुनाव में भाजपा के 73 उम्मीदवारों में से मात्र 2 ही विधायक चुने गए थे। कैप्टन की पार्टी के 28 में से 27 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी। चुनावी हार कोई अंतिम निष्कर्ष नहीं है। कैप्टन एक जनाधारी नेता रहे हैं और वह जटसिख समुदाय से आते हैं, जिसका मालवा क्षेत्र में वर्चस्व है। मालवा से 65 से ज्यादा विधायक चुनकर आते हैं। भाजपा हिंदू, जटसिख और दलितों के एक तबके को लामबंद कर पंजाब में प्रासंगिक और सशक्त बनना चाहती है। उसके मद्देनजर कैप्टन ‘सूत्रधार’ साबित हो सकते हैं। हालांकि उनकी उम्र 80 साल हो चुकी है, लेकिन उनका मस्तिष्क और रणनीति अब भी सक्रिय हैं। पंजाब कांग्रेस में अब भी कई दरारें हैं, लिहाजा आसार हैं कि कुछ और बड़े नेता कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हो सकते हैं। कांग्रेस में कमलनाथ सरीखे कद्दावर नेता समेत ज्यादातर प्रवक्ताओं के बयान सामने आ रहे हैं कि जिन्हें जाना है, वे कांग्रेस छोड़ कर जा सकते हैं। यह एक किस्म का राजनीतिक अहंकार है, क्योंकि पार्टी किसी भी स्तर पर टूटन और बिखराव को रोकने की कोशिश नहीं कर रही है।
बहरहाल पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) को बीते मार्च में ऐतिहासिक और प्रचंड जनादेश मिला था, लेकिन छह माह में ही सुरक्षा, खालिस्तान, नशे की तस्करी, वित्तीय संकट, कानून-व्यवस्था आदि मुद्दों ने भगवंत मान सरकार पर सवालिया निशान जड़ दिया है। मुख्यमंत्री बनने से पहले भगवंत संगरूर लोकसभा सीट से दो बार सांसद चुने गए थे, लेकिन उपचुनाव में ‘आप’ पराजित हो गई। स्पष्ट संकेत हैं कि जनता का ‘आप’ से जुड़ाव टूटा है। हम फिलहाल मोहभंग की बात नहीं कहेंगे, लेकिन पंजाब के लोग सरकार से नाखुश भी दिखाई दे रहे हैं। पंजाब पर 3 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का कजऱ् है, लिहाजा सरकारी कर्मचारियों तक को तनख्वाह समय पर नहीं दी जा रही है। असंतोष और विरोध इससे भी उपजेंगे। कैप्टन के नेतृत्व में भाजपा ऐसे मुद्दों को भुना सकती है। दरअसल कांग्रेस एक ओर ‘भारत जोड़ो’ यात्रा में व्यस्त है, तो दूसरी तरफ पार्टी टूटकर बिखर रही है, लिहाजा कहा जा सकता है कि कांग्रेस ‘दिग्गज-मुक्त’ होती जा रही है। वर्ष 2014-21 के दौरान कांग्रेस के 177 सांसदों और विधायकों ने पार्टी छोड़ी है, जिनमें से 173 भाजपा में शामिल हुए हैं। आंध्रप्रदेश, दिल्ली, बंगाल सरीखी कई विधानसभाओं में कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं है। बहरहाल पंजाब के संदर्भ में कैप्टन की भूमिका पर फिलहाल फोकस रहेगा, क्योंकि 2024 के आम चुनाव में ही भाजपा अपनी ताकत आंकना चाहती है।
हिन्द वतन समाचार” की रिपोर्ट…