असम में देखें प्रकृति का सुंदर रूप…

असम में देखें प्रकृति का सुंदर रूप…

विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक संपदा से भरपूर पूर्वोत्तर भारत के हरे-भरे आंचल में बसे असम राज्य का सौंदर्य देखते ही बनता है। चारों ओर हरियाली ही हरियाली, चाय के बेशुमार बागान, घने जंगल और तरह-तरह के बांसों के झुरमुट राज्य की सुंदरता में रंग भरते प्रतीत होते हैं। प्रांत के बीचोबीच बहता विशाल ब्रह्मपुत्र नदी यहां अपने-आप में पर्यटकों के लिए एक विशेष आकर्षण है। अधिकतर भूमि समतल न होने से स्थानीय लोग अपने राज्य को असम कहना पसंद करते हैं। उत्तर और पूर्व में इसकी सीमाएं भूटान और अरुणाचल प्रदेश से लगती हैं। इसके दक्षिण में नगालैंड और मणिपुर हैं तथा सुदूर दक्षिण में मिजोरम। राज्य के दक्षिण पश्चिम में मेघालय है और पश्चिम में पश्चिमी बंगाल तथा बंगलादेश से असम की सीमाएं जुड़ी हैं।

पूर्वोत्तर का मुख्यद्वार

लंबे समय तक आसाम के नाम से जाने जाते रहे राज्य असम में ऐसी कई सांस्कृतिक धरोहरें हैं जो पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। यहां एक ओर दुनिया का सबसे बड़ा नदी द्वीप माजुली है, तो दूसरी ओर वन्य प्राणियों के विश्वप्रसिद्ध अभ्यारण्य। अभ्यारण्यों में मुख्य हैं काजीरंगा नेशनल पार्क और मानस टाइगर रिजर्व। एक सींग वाला विशालकाय गैंडा काजीरंगा का मुख्य आकर्षण है। राज्य के सुआलकुची नामक स्थान में बने दो प्रकार के विशेष रेशमी कपड़े मुगा व पाट तथा चाय और बांस से बनी वस्तुएं यहां आने वाले पर्यटक जरूर ले जाते हैं, जो देश और विदेशों के कोने-कोने में पहुंचती हैं।

प्रकृति ने इसे जितने उपहार दिए हैं, भारतीय संस्कृति ने भी इसे उसी तरह दोनों हाथों से अपनी संपदा लुटाई है। प्रमुख शक्तिपीठ मां कामाख्या मंदिर के अलावा कई अन्य महत्वपूर्ण मंदिर भी यहां हैं। असम का मुख्य शहर गुवाहाटी पूर्वोत्तर राज्यों में जाने का मुख्य द्वार है और राजधानी दिसपुर इसका ही एक हिस्सा है। हवाई, रेल और सड़क इन तीनों रास्तों से असम देश के प्रत्येक बड़े शहर से जुड़ा हुआ है। नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई से गुवाहाटी के लिए इंडियन एयरलाइंस, एयर सहारा और जेट एयरवेज की नियमित सेवाएं उपलब्ध हैं। यहां से जोरहाट, डिब्रूगढ़, तेजपुर, उत्तरी लखीमपुर व सिलचर के लिए भी उड़ानें उपलब्ध हैं। गुवाहाटी में लोकप्रिय गोपीनाथ बोर्दोलोई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से एयर इंडिया कंपनी बैंकॉक तथा बैंकॉक होते हुए अन्य देशों के लिए अपनी उड़ान सेवाएं देती हैं। रेल के जरिये कोलकाता, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, बंगलौर, कोचीन और तिरुवनंतपुरम से असम के विभिन्न स्थानों तक पहुंचा जा सकता है।

आध्यात्मिक विरासत

असम में स्थित तमाम मंदिर न केवल हमारी संस्कृति की प्राचीनता, बल्कि आध्यात्मिक विरासत के भी जीवंत प्रतीक हैं। सदियों पुराने यहां के अधिकतर प्रमुख मंदिर विभिन्न पुराणों में वर्णित पूर्वोत्तर भारत की सांस्कृतिक गौरवगाथा का मूर्त रूप प्रस्तुत करते हैं। सुविख्यात शक्तिपीठ मां कामाख्या मंदिर गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से आठ किलोमीटर दूर नीलांचल पहाड़ पर स्थित है। इस शक्तिपीठ का वर्णन समुद्रगुप्त के इलाहाबाद स्तंभ पर भी अंकित है। सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली मां शक्ति यहां कामाख्या के रूप में विद्यमान हैं। सहस्त्राब्दियों पूर्व यहां स्थापित मूल मंदिर 16वीं शताब्दी के आरंभ में ही ध्वस्त हो गया था। इसके बाद 17वीं शताब्दी में कूचबिहार के राजा नरनारायण ने इसे फिर से बनवाया। मंदिर परिसर में खुदे कुछ अभिलेखों से ऐसे संकेत मिलते हैं। इस पर्वत पर ही तारा, भैरवी, भुवनेश्वरी और घंटाकर्ण के मंदिर भी मौजूद हैं।

ब्रह्मपुत्र के बीच मयूरद्वीप में प्राचीन शिवमंदिर उमानंद है। भस्माचल पर्वत पर स्थित इस स्थान का संबंध भगवान शिव द्वारा कामदेव को भस्म किए जाने से है। इस सिद्धस्थल पर मंदिर का निर्माण 17वीं सदी में आहोम शासक गदाधर सिंह ने करवाया था। हालांकि उनका बनवाया हुआ मंदिर एक भूकंप के दौरान ध्वस्त हो गया था। बाद में बीसवीं शताब्दी के आरंभ में यहां फिर से मंदिर का निर्माण करवाया गया। इस द्वीप को उर्वशी द्वीप भी कहते हैं। यहां उर्वशी कुंड भी है। इसके अलावा नवग्रह मंदिर श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र, बालाजी मंदिर, साइंस म्यूजियम, वशिष्ठ आश्रम, राज्य का संग्रहालय, चिड़ियाघर और बोटेनिकल गार्डन, तारामंडल, ब्रह्मपुत्र पर सराईघाट पुल, गुवाहाटी ऑयल रिफाइनरी, ललित बरफुकन पार्क, 40 किलोमीटर दूर मदन कामदेव तथा गुवाहाटी विश्वविद्यालय अन्य देखने योग्य स्थान हैं।

सबसे बड़ा नदी द्वीप

हरियाली के कारण हरा स्वर्ग कहलाने वाले इस राज्य में बहते ब्रह्मपुत्र नद का दूसरा छोर देखने के लिए आंखें खुली ही नहीं, बल्कि फटी की फटी रह जाती हैं। इस पर बने पुल से जब रेलगाड़ी गुजरती है तो यात्रियों को बार-बार ऐसा लगता है जैसे यह पुल पता नहीं कब खत्म होगा। ब्रह्मपुत्र के मध्य में है विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप माजुली जिसे सजाने के लिए स्वयं प्रकृति ने अपनी तमाम कलाएं उड़ेल दी हैं। कई तरह के विदेशी पक्षी प्रतिवर्ष आकर इस द्वीप पर बसेरा डालते हैं। भूमि कटाव व अन्य प्राकृतिक कारणों से माजुली का क्षेत्रफल घटकर अब 880 वर्ग किलोमीटर रह गया है। यहां से सुदूर हिमालय व अन्य पहाड़ियों का मनोहारी दृश्य साफ दिखता है।

आत्मिक शांति और आध्यात्मिक चिंतन के लिए श्रेष्ठ माने जाने वाले इस द्वीप पर ही पंद्रहवीं शताब्दी में वैष्णव संत शंकर देव जी और उनके शिष्य माधवदेव जी का मेल हुआ था। माजुली के पश्चिम स्थित बेलगुड़ी में हुए इस मणिकांचन संयोग के बाद यहां पहले सत्र की स्थापना हुई। इसके बाद वैष्णव धर्म के मूल्यों और सिद्धांतों के प्रचार के लिए 65 अन्य सत्र बने, जिनमें से कई प्राकृतिक आपदाओं के कारण बह और ढह गए। अतः उन्हें अन्य स्थानों पर ले जाना पड़ा। असम की संस्कृति और कला के गढ़ माजुली में अब 22 सत्र हैं। इस संस्कृति के अन्य मुख्य स्थान हैं बारदोव, बारपेट, माधुपुर इत्यादि। माजुली पहंुचने के तीन मुख्य रास्ते हैं-जोरहाट से जोरहाट निमतिघाट, धेमाजी से धोकुआखाना तथा उत्तरी लखीमपुर से लुइ खबलूघाट। उसके अतिरिक्त ब्रह्मपुत्र के दोनों किनारों पर मौजूद कई घाटों से स्टीमर या मशीन से चलने वाली खास किस्म की नावों से पहुंचा जा सकता है। इस द्वीप की जनसंख्या लगभग डेढ़ लाख है।

स्मृतियां मध्यकाल की

असम ने प्राचीनकाल ही नहीं, मध्यकाल की स्मृतियों को भी बड़े जतन से सहेज रखा है। यहां मौजूद अधिकतर प्रमुख इमारतें पुरातत्व की दृष्टि से मध्यकाल की हैं। प्राचीन समय में कामरूप के नाम से जाना जाने वाला असम कभी आहोम वंश द्वारा शासित था। इसीलिए यहां मौजूद पुरानी इमारतों को कोच, कचारी और आहोम जातियों से जोड़ा जाता है। इनमें खासपुर खंडहर, मेलबोंग स्टोन मंदिर, सिबसागर के आसपास शिवडोल, विष्णुडोल, देवीडोल, शाही महल आदि को मुख्य रूप से शामिल किया जाता है। नृत्यप्रेमी असमवासी बिहू, बोडो, मिसिंग नृत्यों तथा भक्ति गान के साथ नृत्यों में विशेष रुचि रखते हैं।

पहाड़ों से खेलते बादल

गुवाहाटी से 353 किलोमीटर दूर असम का एक मात्र पहाड़ी स्थान हिलस्टेशन हाफ लौंग है। अत्यंत रमणीक और हरे-भरे इस क्षेत्र में पहाड़ों से खेलते हुए बादल आपके पैरों के बीचोबीच आ जाते हैं। इसके पास ही नौ किलोमीटर दूर जटिंगा नामक स्थान है। हर साल अगस्त से नवंबर के बीच यहां बहुत से प्रवासी पक्षी आकर डेरा डालते हैं। यहां पक्षियों की रहस्यमय मृत्यु होने के कारण जटिंगा विशेष रूप से जाना जाता है। प्राकृतिक सौंदर्य और बौद्धमठों के लिए प्रसिद्ध बोमडिला व तवांग जाने के लिए हाफलौंग को प्रवेशद्वार माना जाता है।

गैंडे का घर काजीरंगा

संसार के पर्यटन मानचित्र पर काजीरंगा नेशनल पार्क का नाम प्रमुख रूप से अंकित है, जो विशालकाय गैंडे के लिए प्रसिद्ध है। इसके अलावा वन्यप्राणी प्रेमियों के लिए मानस टाइगर रिजर्व तथा नमेरी टाइगर रिजर्व भी महत्वपूर्ण जगहें हैं। काजीरंगा और यहां का गैंडा बहुत उपयुक्त समय पर संरक्षण में ले लिए गए थे। यदि ऐसा न हुआ होता तो शायद इस प्राकृतिक धरोहर को आज हम न देख पाते। भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के वाइसराय लॉर्ड कर्जन की पत्नी ने चाय बागान के मालिक एक मित्र से असम के जंगलों में गैंडे के पाए जाने की बात सुनी तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ। सन 1904 में वह स्वयं गैंडे को देखने काजीरंगा गई। उस समय उन्हें गैंडा तो कहीं नहीं दिखा, पर उन्होंने उसके भारी-भरकम पांवों के निशान देखे। इस आधार पर उन्होंने माना कि ऐसा जानवर काजीरंगा में है।

यह जानवर कहीं लुप्त न हो जाए इस दृष्टि से लेडी कर्जन ने अपने पति को मनाया और वायसरॉय ने हुक्म जारी किया कि काजीरंगा में शिकार न किया जाए तथा उसे सुरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया। सन् 1913 में काजीरंगा सुरक्षित वन को गेम सैंक्चुअरी का दर्जा दिया गया। गैंडे के अतिरिक्त सभी जानवरों की खाल व अन्य अंगों के गैरकानूनी व्यापार को बंद करवा दिया गया तथा जंगल को पर्यटकों के लिए खोल दिया गया। सन् 1974 में काजीरंगा को राष्ट्रीय पार्क का दर्जा मिला।

गुवाहाटी से लगभग 225 किलोमीटर तथा जोरहाट हवाई अड्डे से 97 किलोमीटर की दूरी पर स्थित काजीरंगा तक गुवाहाटी से बस, जीप या अपनी कार से भी पहंुचा जा सकता है। पार्क के अंदर हाथी पर चढ़कर या जीप में बैठकर घूमा जा सकता है। काजीरंगा के जंगलों में हाथी पर जाना बेहतर होता है। गैंडा हाथी को पहचान कर भागता नहीं है। कैमरा लिए हर व्यक्ति को यहां भरपूर मौका मिलता है और गैंडे को आसानी से कैमरे में कैद किया जा सकता है। साधारणतया गैंडा शांत रहता है, लेकिन बचे के साथ हों तो जरा दूर रहना ही उचित होता है। गैंडे के अलावा यहां आपको हाथी, भारतीय जंगली भैंसे, सांभर, विभिन्न प्रकार के हिरन, शेर, तेंदुआ, जंगली बिल्ली आदि देखने को मिल सकते हैं। जंगल में कई छोटे-बड़े तालाब हैं जिनकी गहराई कम है। कई तरह के पक्षी भी यहां रहते हैं। हंस, धनेश, जलकाग, सुरखिया रंग के व साधारण बगुले खूब दिखते हैं। ऊंची-ऊंची घास, जिसे एलीफेंट ग्रास कहते हैं, तथा दलदल की अफ्रीका के जंगलों की परिस्थितियों से तुलना की जा सकती है।

काजीरंगा से कुछ दूरी पर पनबेरी रिजर्व में हॉलॉक गिब्बन नामक दुर्लभ लंगूर देखा जा सकता है। मानस टाइगर रिजर्व भूटान की तलहटी में स्थित है,?जहां बंगाल टाइगर देखा जा सकता है। इसी प्रकार लुप्तप्राय प्राणियों में शामिल बादलों जैसे निशान वाला तेंदुआ नमेरी टाइगर रिजर्व में देखा जा सकता है। सुंदर जिया भोरोली नदी के किनारे बसे नमेरी में महसीर नाम की मछली को पकड़ने की अनुमति तो है, पर मारने की नहीं। गोल्डन महसीर को पकड़ने के बाद छोड़ना भी होता है। असम में न अधिक गर्मी होती है और न अधिक ठंड अतः सूती तथा हलके गर्म कपड़े पहने जाते हैं। यहां की चार मुख्य ऋतुएं हैं। गर्मी, वर्षा, सर्दी और बसंत। पर्यटन की दृष्टि से अक्टूबर से लेकर अप्रैल या मई मास तक का समय सबसे उपयुक्त है।

कैसे पहुंचें…

हवाई जहाज से: नई दिल्ली, कोलकाता, मुंबई व चेन्नई से गुवाहाटी के लिए इंडियन एयर लाइंस, एयर सहारा और जेट एयरवेज की नियमित उड़ानें उपलब्ध। जोरहाट, डिब्रूगढ़, तेजपुर, उत्तरी लखीमपुर तथा सिलचर के लिए भी इंडियन एयर लाइंस की हवाई सेवाएं उपलब्ध।

रेलगाड़ी से: कोलकाता, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, बैंगलूर, कोचीन और थिरूवनन्तपुरम से गुवाहाटी तथा आगे डिब्रूगढ़ तथा ब्रॉडगेज रेलगाड़ियां उपलब्ध। हॉफलोंग और सिलचर तक मीटर गेज गाड़ियां उपलब्ध।

बस से: राष्ट्रीय राजमार्गो तथा अन्य मार्गो से राज्य के सभी मुख्य स्थान भलीभांति जुड़े है। असम राज्य परिवहन निगम तथा अन्य टूरिस्ट बस सेवाएं उपलब्ध।

हिन्द वतन समाचार” की रिपोर्ट…