राखी की डोर ,आशा विश्वास का बंधन ,खुशी और सम्मान से भीगी आंखें…
आशियाना लखनऊ में एक नई पहल देखने को मिली….. हजारों अनुसूचित जनजाति की महिलाएं राखी, मिठाई और अपने साथ आसपास के चुनकर लाए गए फूलों के साथ माननीय कौशल किशोर आवासन एवं शहरी कार्य राज्यमंत्री की मज़बूत कलाइयों में राखी बांध, गीतों और आशीर्वाद में अपनी बातें दुःख सुख का साक्षी बना गई।
अनुसूचित जनजातियों की कई महिलाओं की आंखों से खुशी विश्वास और प्रेम के आंसू लगातार बह रहे थे।
अनुसूचित जनजाति की महिलाएं और उनका परिवार आजादी के 75 वर्ष बाद भी अन्याय, तिरस्कार, पक्षपात का शिकार है क्योंकि इनके पास स्थाई निवास कम होते हैं यह लोग अपना घर कुछ समय के लिए बांस बन्नी और तंबू से बनाकर गांव और सड़कों के किनारे डेरा बनाकर रहते हैं जो कि अस्थाई होता है जिसके कारण सरकारी योजनाएं और उनका लाभ लेने से वंचित रहते हैं।
अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को किस प्रकार मुख्यधारा से जोड़ा जाए ,किस प्रकार उन्हें स्थाई रहने हेतु जमीन और पक्का घर उपलब्ध कराया जाए, किस प्रकार उनके ऊपर लगने वाले विभिन्न आरोपों से उन्हें मुक्ति दिलाई जाए । सामाजिक तिरस्कार झेल रहीं महिलाओं कोऔर उनके परिवार को समाज में सम्मान के साथ स्थापित किया जाए यह विषय बनी कौशल किशोर जी समय-समय पर उठाते रहे हैं। यह वाकई आज के समय में बहुत ही प्रासंगिक प्रश्न है।
हां आपने सच कहा आज भारत जैसे विशाल देश की राष्ट्रपति अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व करती हैं और कहीं ना कहीं यह सिखाती हैं कि समाज में यदि महिलाएं प्रयास करें ,निरंतर चलती रहे और ईमानदारी से अपने कर्तव्य पथ को चुने तो एक दिन भारत का सर्वोच्च पद भी उनके लिए प्रस्तुत रहता है। इसी सम्मान का एक प्रयास यह रक्षाबंधन के पवित्र धागे भविष्य में जरूर सिद्ध होंगे।
अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं का विकास हो ,वह न्यूनतम बुनियादी सुख सुविधाओं को पा सकें इसी प्रयास में माननीय कौशल किशोर ने लगभग तीन घंटों तक अपनी बहनों के सामने दोनों हाथ को सहजता और सरलता से उनके सम्मानऔर प्रेम में फैला कर बैठे रहे, तब तक जब तक की हजारों की संख्या में आई हुई बहनों ने एक-एक करके कई परतों में अपने रक्षा सूत्र को ना बांध लिया ।बहनों की आंखों में आशाएं थी, प्यार था और यह विश्वास था कि जिस प्रकार कृष्ण ने द्रोपदी की महाभारत में रक्षा की थी उसी प्रकार उनका भाई भी उन्हें समाज में सम्मान और परिवार में आने वाली मुसीबतों तथा कलह से बचा ले जाएगा। इस अनवरत प्रक्रिया में सुरीले स्वरों के साथ कई महिलाओं ने अपनी मांगे गाने के माध्यम से रखी।
राखी बांधने और बंधवाने की प्रक्रिया घंटों चली उसी में कई भावुक पल भी आए । जैसे कई महिलाएं गर्भवती थी और इस तकलीफ में भी रक्षा सूत्र बांधने बड़ी दूर से विश्वास और प्रेम के साथ आई उनकी स्थिति को देखकर मा कौशल किशोर ने तुरंत उन्हें मंच पर पहले आकर राखी बांधने का न्योता दिया। कई महिलाएं अपने नवजात बच्चों के साथ राखी बांधने उपस्थित हुई थी इसी कड़ी में एक महिला खुशबू जिसकी मात्र दो दिन की बेटी थी उत्साह प्रेम और आशा के साथ अपने भाई कौशल किशोर को राखी बांधने आई ।मां खुशबू के आग्रह पर तुरंत बिटिया का नामकरण अपनी गोद में उठाकर कौशल किशोर जी द्वारा किया गया और उसके कोमल हाथों के स्पर्श से राखी छूकर बंधवाई और उसका नाम रक्षा देवी रखा ।………………..उस महिला को आश्वासन दिया कि इस बिटिया रक्षा देवी को शिक्षा जरूर दिलाएं, शिक्षा के क्षेत्र में आने वाली तथा पालन-पोषण में आने वाली सभी सुविधाओं को देने का वादा किया। शायद दो दिन की नवजात बिटिया रक्षा देवी की राखी की वह ताकत जो बिना अपेक्षा, बिना किसी सांसारिक राग द्वेष के बहुत सी आशाओं के साथ बांधी जा रही थी अनोखा और भाव का एहसास करा गई।
एक-एक करके जैसे-जैसे रक्षा सूत्र बंधता जा रहा था जिम्मेदारियां और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को न्याय दिलाने की प्रतिबद्धता मजबूत होती जा रही थी ।महिलाएं राखी बांधने के समय गीत गाती जा रही थी कई महिलाओं की आंखों में आंसू थे इसलिए नहीं कि वह थक गई थी, इसलिए नहीं कि वह बीमार थी बल्कि इसलिए उपेक्षा का जीवन बिताने के बाद आज उन्हें ऐसा भाई मिला जो उनकी सुध लेने को उन्हें सम्मान पूर्ण जीवन देने को हर प्रयास करने को तैयार था महिलाओं ने बहुत सारा आशीर्वाद अक्षत डाल कर दिया।
अनुसूचित जनजाति में वाकई बेरोजगारी की चरम सीमा देखने को मिलती है जमीन ना होने के कारण घुमंतू जनजातियों अक्सर बांस बल्ली और टेंट के तंबू में डेरा बनाकर रहते हैं महिलाएं अपना बनाया हुआ सामान बेचकर अपना गुजारा चलाती हैं कई सपेरा जनजातियां सांपों को पकड़ कर, तो कई तमाशा दिखा कर अपना पेट पालते हैं। आप लोगों ने सड़कों के किनारे टेंट में यूनानी दवा का बैनर लगाकर डेरे देखें होगे ,वह भी ज्यादातर अनुसूचित जनजाति के ही होते हैं। इन अस्थाई डेरो में रोज ही मौसम का, चोरों का और महिलाओं की असुरक्षा का डर बना रहता है।
मदारी और तमाशा दिखाने की परंपरा शायद आज की आपाधापी और भागदौड़ के जीवन में पीछे छूटती जा रही है तो आप कल्पना करें ….जब आप और हम ही तमाशा देखने और इन गरीब अनुसूचित जनजाति की महिलाओं द्वारा बनाए गए सामानों को खरीदने नहीं जाते तो इनका सामान का खरीदार कौन होगा???
निश्चित रूप से खरीदारों की संख्या नगण्य होती है। ऐसी स्थिति में कई रातें पानी पीकर गुजारने को मजबूर भुखमरी के कगार में खड़ी अनुसूचित जनजातियां और इनकी महिलाएं यदि आशा भरी निगाह से केंद्रीय आवासन एवं शहरी कार्य राज्य मंत्री कौशल किशोर की तरफ देख रही हैं तो इसमें किसी को कोई गुरेज नहीं होना चाहिए उन्हें अपने उत्थान का एक मार्ग शायद इसी रूप में दिखा। रक्षा सूत्र के बहाने उन्हें अपने जीवन की प्रगति की एक आशा और मार्गदर्शक मिलने की खुशी साफ दिखी।
अनुसूचित जनजाति समाज में आज भी कच्ची शराब तथा नशे का व्यापार अवैध रूप से करने और देखने को मिल जाता है ।रक्षाबंधन के पवित्र त्योहार के अवसर पर कौशल किशोर ने उपस्थित हजारों बहनों से कहा कि वह अगली रक्षाबंधन में जब मिले तो उनके दांत मोतियों की तरह चमकने चाहिए क्योंकि यदि आप गुटका पान मसाला खाना छोड़ देती है तो कई बीमारियों से दूर हो जाती हैं ।जब शरीर स्वस्थ रहेगा मन प्रफुल्लित रहेगा तो निश्चित रूप से देश के विकास में आपका योगदान गिना जाएगा ।अपने परिवार में बेटे और बेटियों को पढ़ाने उन्हें अच्छे संस्कार देने अनुशासित भाषा बोलने की शिक्षा मां के द्वारा दी जाती है यदि सभी माताएं और बहनें नशे से दूर रहें तथा अपने डेरो में भी नशे को आने से रोकने की मुहिम चलाएंगी तो निश्चित रूप से वह दिन दूर नहीं जब देश से नशा भाग जाएगा। अनुसूचित जनजाति समाज में रहने वाले पुरुषों को कौशल किशोर जी ने मंच से ललकारा कि मेरी इन हजारों बहनों के ऊपर अब कोई घरेलू हिंसा न करें क्योंकि अब उनका भाई उनकी सुरक्षा के लिए वचनबद्ध है।
अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं के साथ शारीरिक प्रताड़ना होने का मुख्य कारण उनके पतियों उनके समाज के पुरुषों के द्वारा नशे से ग्रस्त होना और उस नशे की हालत में अपनी पत्नी , अपनी बहनों और बेटियों के ऊपर हाथ छोड़ना उन्हें बुरी तरह पीटना आम बात है यहां आकर भी प्रताड़ना का स्तर रुकता नहीं कभी-कभी पैसों के लिए अपनी घर की महिलाओ को बेच देना और गलत तरीके से पैसे कमाने को भेजना आम बात देखने को मिलती है। इसका जीता जागता उदाहरण राखी लेकर आई मोहनी के रूप में देखने को मिला उसका कुर्ता खून से लथपथ था 7 महीने की गर्भवती मोहिनी का हाथ पांच जगह से टूटा था। उसके परिवार वालों ने किसी छोटी सी बात को लेकर उसे इतना पीटा कि उसका हाथ अपने बच्चे को बचाने के लिए पेट के सामने आ गया और बुरी तरह टूट गया खून इतना बहा कीपूरा कुर्ता खून से सना लगभग दिख रहा था वाकई इस प्रकार का शोषण देखकर आंखें भर आई ।
खून से लतपथ सने कपड़ो में आई इस बहन को देखकर माननीय कौशल किशोर ने तुरंत एफ आई आर दर्ज करने तथा पीड़िता को न्याय देने का फोन पर ही आदेश संबंधित थाने को दिया।
रक्षाबंधन के इस पवित्र पर्व में कई अनुसूचित जनजाति की महिलाएं और बेटियां उपस्थित हुए जिनकी कुछ दर्जे तक पढ़ाई हुई थी और वह आगे पढ़ने के लिए स्थाई निवास तथा इंटर और उसके बाद की शिक्षा के लिए स्कूलों की मांग अपने भाई से सहजता और पूरे विश्वास के साथ कर रही थी। उनकी मांग जायज थी क्योंकि यदि अनुसूचित जनजाति की महिलाएं शिक्षित होंगी तो उनका शोषण का स्तर खुद ब खुद कम हो जाएगा आरक्षित सीटों में उन्हें नौकरी मिल सकेगी और वह अपने परिवार का पालन पोषण सही तरीके से कर पाएगी।
गीता, शीला, मोहिनी, महक, आराध्या जैसी हजारों उपस्थित बहनों ने धैर्य, मन में उत्साह और कृष्ण जैसे रक्षा करने वाले भाई की अपेक्षा में गीत ही नहीं गए बल्कि उसी भाव और भंगिमाओं के साथ घंटों इंतजार करके अपनी बारी आने पर माननीय कौशल किशोर के माथे पर तिलक लगाकर रेशम के रक्षा सूत्र में उन्हें वचनबद्ध करके फूलों की खुशबू और चावल के अक्षर से उन्हें आशीर्वाद दिया ताकि उन्हें और मजबूत ताकत मिले जिससे वह सारी सुविधाएं, सरकारी योजनाओं को इन अनुसूचित महिलाओं के दरवाजे तक पहुंचा सके वाकई वह नजारा अद्भुत था क्योंकि जिन महिलाओं के खाने का ठिकाना नहीं था उनकी नजरों में आशा विश्वास और खुद के उत्थान की जो ललक अनोखी थी। सभी बहनों ने एक साथ बैठकर मा कौशल किशोर जी के साथ भोजन और मिस्ठान ग्रहण किया।
सभी के आशा और विश्वास में खरे उतरने का आश्वासन माननीय कौशल किशोर जी ने दिया और इसी शुभ अवसर पर दूर केंद्र में आदरणीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने सभी को पक्का आवास उपलब्ध कराने की अवधि 2022 से बढ़ाकर 24 कर दी यह खबर सुनकर सभी महिलाओं में खुशी की लहर दौड़ पड़ी और सभी अपने लिए अस्थाई डेरे की जगह पक्के मकान की आशा और अपेक्षा भरी निगाहें कौशल किशोर की तरफ देखने लगी।
भाई ने भी महिलाओं से वादा किया सभी को पक्का मकान ,सभी के दरवाजे में पीने का स्वच्छ जल, कमरों में बल्ब की रोशनी और रसोई में गैस सिलेंडर और धुए से मुक्ति, सभी के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं और बच्चियों और बेटा को तमाशा से निकालकर स्कूल की दहलीज तक पहुंचाने का कार्य मैं जरूर करूंगा।
भाई के भाव से ओतप्रोत और जिम्मेदारियों के एहसास से गौरवान्वित कौशल किशोर जी ने भरे मंच से आश्वासन दिया मेरी बहनो ने जो अपेक्षा मुझसे की है वह सभी सरकारी योजनाएं सभी प्रकार के आरक्षण और सब्सिडी मेरी बहनों के दरवाजे तक मैं जरूर पहुंचाऊंगा और इस घोषणा के साथ ही अनुसूचित जनजातियों के महिलाओं के हृदय में और आंखों में खुशी का गुबार सभी ने देखा तालियों की गड़गड़ाहट से कुछ समय के लिए पूरा माहौल डूब गया।
आजादी की हीरक जयंती का अमृत उत्सव मना रहे हम वाकई यदि अनुसूचित जनजाति समाज की महिलाओं को सम्मान और सरकारी योजनाओं के सही आवंटन के क्रम में जोड़ लेते हैं तो भारत की तस्वीर कुछ और ही होगी । मा कौशल किशोर जी द्वारा अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के सामने प्रस्तुत किए गए अपने मजबूत हाथ और मजबूत इरादे समाज में प्रेरणा और नई दिशा जरूर प्रस्तुत करेंगे। पूरे देश से लाखों अनुसूचित जनजाति की महिलाएं इस आशा से अपने भाई और केंद्र सरकार की ओर देखते हुए।
… वादे जल्द पूरे होंगे आशा और विश्वास…
@देश की महिलाओं की पुकार के सम्मान में रीना त्रिपाठी
हिन्द वतन समाचार” की रिपोर्ट…