आईपीएस डीके ठाकुर के तबादले के बाद चर्चाओं का बाजार गर्म…
आखिर अचानक क्यों हुआ तबादला, क्या है तबादले का कारण…
लखनऊ। विशेष संवाददाता। 1 साल 8 महीने और 16 दिन तक लखनऊ के पुलिस कमिश्नर का कार्यभार संभालने वाले 1994 बैच के आईपीएस अधिकारी डीके ठाकुर के अचानक हुए तबादले से खासकर पुराने लखनऊ के लोग हक्का-बक्का हो गए और उनके तबादले के कारणों की चर्चाएं लगातार जारी। लखनऊ के पुलिस कमिश्नर और कानपुर के पुलिस कमिश्नर के तबादले ऐसे समय में हुए हैं जब मोहर्रम का महीना शुरू हो गया था और मोहर्रम के जुलूस और कार्यक्रमों के दौरान कानून व्यवस्था को संभाले रखने की बड़ी चुनौती पुलिस के सामने थी। लखनऊ के पुलिस कमिश्नर रहे डीके ठाकुर ने पहली मोहर्रम को पुराने लखनऊ में निकाले जाने वाले जुलूस के दौरान खुद अपनी मौजूदगी दर्ज कराई और देर रात उनका तबादला हो गया। सोमवार की सुबह जब लोग सो कर उठे तो लोगों को सोशल मीडिया के जरिए पता चला कि डीके ठाकुर के स्थान पर 1993 बैच के आईपीएस अधिकारी एसबी शिरडकर को लखनऊ का पुलिस कमिश्नर बना दिया गया है । पुलिस विभाग में तबादला प्रक्रिया तो पुरानी प्रक्रिया है लेकिन अक्सर देखा जाता है कि चर्चित अधिकारियों के तबादले से पहले राजनीतिक गलियारों में तबादले को लेकर सुगबुगाहट होती है और चर्चाएं आसमान छूने लगती है लेकिन यहां 1 जुलाई की आधी रात तक डीके ठाकुर के तबादले की कोई चर्चा नहीं थी और सोमवार की सुबह उनके तबादले की चर्चाएं सोशल मीडिया पर होने लगी। अचानक लखनऊ के पुलिस कमिश्नर के पद से हटाकर डीजीपी मुख्यालय से अटैक किए गए डीके ठाकुर के द्वारा 2 साल के अंतराल के बाद मोहर्रम के सभी कार्यक्रमों को शांतिपूर्ण माहौल में संपन्न कराने के लिए कई दिन पहले से ही मशक्कत शुरू कर दी थी और गत सप्ताह में उन्होंने पुराने लखनऊ में सुरक्षा इंतजामों को चाक-चौबंद बनाने के लिए एक अभियान छेड़ दिया था। पुलिस कमिश्नर डीके ठाकुर आम पुलिसकर्मियों की तरह सड़क पर पैदल देखे जा रहे थे और वह लगातार आम जनता और संभ्रांत लोगों से संपर्क कर मोहर्रम के सभी कार्यक्रमों को शांतिपूर्ण माहौल में संपन्न कराए जाने के लिए भी मशक्कत कर रहे थे । 1 साल 8 महीने और 16 दिन तो डीके ठाकुर लखनऊ के पुलिस कमिश्नर के तौर पर कार्यरत रहे लेकिन इससे पहले भी वो लखनऊ जैसे महत्वपूर्ण शहर में डीआईजी / एसएसपी के पद की जिम्मेदारी लंबे समय तक सफलतापूर्वक निभा चुके थे जिसकी वजह से लखनऊ और खासकर पुराने लखनऊ से उनका खास लगाओ था और उनके अचानक हुए तबादले ने लोगों के दिलों में तमाम तरह के सवालों को जन्म दे दिया बाहरहाल अधिकारी कोई भी हो सभी की जिम्मेदारी अपराध की रोकथाम शांति व्यवस्था और अपराधियों की धरपकड़ की होती है और ये जिम्मेदारी नवनियुक्त पुलिस आयुक्त एसबी शिरोडकर भी निभाएंगे लेकिन अचानक डीके ठाकुर के तबादले की बात लखनऊ के बाशिंदों के लिए एक पहेली ज़रूर बन कर ही रह गई है।
डीके ठाकुर के तबादले का कारण अगर यातायात है तो……..
1994 बैच के आईपीएस अधिकारी डीके ठाकुर के तबादले के बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि डीके ठाकुर का तबादला ध्वस्त यातायात व्यवस्था को लेकर हुआ है तो यहां सवाल ये उठता है कि यातायात व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए लखनऊ कमिश्नरेट में बाकायदा डीसीपी यातायात की नियुक्ति भी है जिनके कंधों पर लखनऊ जैसे बड़े शहर की यातायात व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने की जिम्मेदारी है। पुलिस कमिश्नर डीके ठाकुर के तबादले के बाद चर्चाएं हैं कि लखनऊ कानपुर हाईवे पर लगे कई किलोमीटर लंबे यातायात जाम के बाद ट्विटर पर ध्वस्त यातायात व्यवस्था ट्रेंड करने लगी और डीजीपी को बिगड़ी हुई यातायात व्यवस्था को संभालने के लिए बाकायदा एडीजी ला एंड आर्डर को मौके पर भेजना पड़ा हालांकि लखनऊ कानपुर हाईवे पर लगे लंबे यातायात जाम के बाद इंस्पेक्टर बंथरा को भी हटाया गया लेकिन यातायात से जुड़े किसी भी पुलिसकर्मी पर कोई भी कार्यवाही की बात सामने नहीं आई । बंथरा इंस्पेक्टर को हटाए जाने के बाद सीधे पुलिस कमिश्नर डीके ठाकुर पर कार्यवाही की गाज गिरी और उन्हें लखनऊ के महत्वपूर्ण पुलिस कमिश्नर के पद के बाद कोई भी तैनाती न देते हुए उन्हें सीधे पुलिस हेड क्वार्टर से अटैच कर दिया गया। हालांकि डीके ठाकुर के तबादले के बाद लखनऊ पुलिस कमिश्नर का पदभार संभालने वाले एसबी शिरडकर ने यातायात व्यवस्था सुधारने को अपनी पहली प्राथमिकता बताया और डीके ठाकुर के तबादले के बाद यातायात व्यवस्था को सुधारने के लिए बड़े पैमाने पर कार्यवाही भी शुरू कर दी गई है। बताया ये भी जा रहा है कि नवनियुक्त पुलिस कमिश्नर एसबी शिरडकर की कार्रवाई की जद में आए इंस्पेक्टर पीजीआई पर भी यातायात से खिलवाड़ करने वाले स्टैंड स्टैंड संचालन के लिए कार्यवाही की गई है। ऐसे हालात में डीके ठाकुर के तबादले को लेकर लोगों का अंदाजा सही भी साबित हो तक हो सकता है।
तबादले के पीछे लुलु माल प्रकरण की चर्चाएं भी तेज
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के द्वारा उत्तर प्रदेश को खुशहाली की ओर ले जाने के लिए बड़े उद्योगपतियों से प्रदेश में निवेश करा कर बड़े पैमाने पर प्रदेश को उन्नति की ओर ले जाने के रास्ते पर यूएई के उद्योगपति के द्वारा लखनऊ में दो हजार करोड़ की लागत से बनाए गए लुलु मॉल प्रकरण भी चर्चा में है । कुछ लोग लूलू माल के उद्घाटन के बाद उठे विवाद को पुलिस कमिश्नर डीके ठाकुर के तबादले से जोड़कर देख रहे हैं । 10 तारीख ईदुल अज़हा के दिन लुलु माल का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उद्घाटन किया था दो दिन बाद 12 तारीख को लुलु मॉल परिसर में बिना अनुमति के कुछ लोगों के द्वारा वहां नमाज अदा की गई जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद हंगामा मच गया। सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होने के बाद कई हिंदू संगठन सक्रिय हुए और लुलु माल विवाद का अखाड़ा बन गया । 14 तारीख को लुलु मॉल में बिना अनुमति के नमाज अदा किए जाने के मामले में लूलू माल के पीआरओ के द्वारा गंभीर धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज कराया क्या जिसके बाद यह भी चर्चा रही है कि लुलु माल प्रशासन के कुछ लोगों ने हिंदू संगठनों के पास जाकर मान मनोबल भी की हालांकि लूलू माल में बिना अनुमति के नमाज अदा किए जाने के प्रकरण के बाद उत्पन्न हुए विवाद को समाप्त करने के लिए योगी आदित्यनाथ ने साफ शब्दों में कहा था कि लुलु माल को लेकर राजनीति न की जाए हालांकि लुलु मॉल में बिना अनुमति के नमाज अदा किए जाने के बाद दर्ज किए गए मुकदमे के आधार पर पुलिस ने बिना अनुमति नमाज अदा किए जाने वाले कई लोगों की गिरफ्तारी भी की लेकिन लुलु माल को लेकर उठे विवाद के बाद दूसरे निदेशकों में यह संदेश भी जरूर गया होगा कि उत्तर प्रदेश में बड़ा निवेश करना बड़े झंझट का काम है। लुलु मॉल प्रकरण में मुख्यमंत्री ने तो सख्त तेवर दिखाए और लखनऊ पुलिस ने भी त्वरित कार्रवाई की लेकिन राजनीतिक गलियारों में ये भी चर्चा है कि मुख्यमंत्री के द्वारा उत्तर प्रदेश में निवेशकों को आमंत्रित किया गया और निवेशकों ने मुख्यमंत्री पर भरोसा जताते हुए बड़े निवेश करना प्रारंभ किए लेकिन लुलु माल के उद्घाटन के बाद जिस तरह से लुलु मॉल राजनीति और विवाद का अखाड़ा बन गया उससे प्रदेश में निवेश करने वाले भड़क सकते है और लूलू माल में ये स्थिति उतपन्न ही क्यों हुई ये भी बड़ा सवाल है लूलू प्रकरण के बाद पुलिस कमिश्नर डीके ठाकुर की सक्रियता सवालों के घेरे में जरूर आई थी । कुछ लोग पुलिस कमिश्नर डीके ठाकुर के तबादले को लुलु माल प्रकरण से भी जोड़कर देख रहे हैं।
डीके ठाकुर के कार्यकाल में बड़े अपराध हुए तो खुलासे भी कम नही हुए
1994 बैच के आईपीएस अधिकारी डीके ठाकुर के लखनऊ में 1 साल 8 महीने और 16 दिन के लंबे कार्यकाल में अगर लखनऊ में अपराध की बड़ी घटनाएं घटित हुई तो बड़े अपराध की घटनाओं का खुलासा भी हुआ और बड़े अपराधी बड़ी संख्या में गिरफ्तार भी किए गए । पुलिस कमिश्नर डीके ठाकुर के कार्यकाल में बंथरा इलाके में 7 लोगों की हत्या की बड़ी घटना हुई और हत्या और लूट जैसी अनेक घटनाएं देखने को मिली 17 अप्रैल को गुडम्बा थाना क्षेत्र में एकत किलो मीटर सड़क पर दौड़ती हुई कार पर दबंग गोलियां और हथ गोले बरसाते रहे इस सनसनीखेज घटना का मुख्यमंत्री को संज्ञान लेना पड़ा और उनके निर्देश के बाद इंस्पेक्टर गुडम्बा सहित 6 पुलिस कर्मी निलंबित किये गए मुख्यमंत्री की नाराजगी के बाद इस घटना से जुड़े 8 अपराधी गिरफ्तार हुए और 15 हज़ार का इनामी 108 दिन बाद गिरफ्तार हुए। अभी पिछले महीने ही कैंट थाना क्षेत्र में रेलवे के ठेकेदार वीरेंद्र ठाकुर की घर में घुस के दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या की घटना हुई जिसके बाद पुलिस ने हत्यारों की गिरफ्तारी के लिए कमर कसी और मुठभेड़ के दौरान इस हत्याकांड से जुड़े तीन बदमाशों के पैर में गोली लगी और उन्हें गिरफ्तार किया गया यही नहीं डीके ठाकुर के कार्यकाल में ठाकुरगंज थाना क्षेत्र में 25 तारीख की शाम कपड़ा व्यापारी महेंद्र मौर्या की गोली मारकर हत्या की गई जिसका खुलासा पुलिस ने कर दिया। इसके अलावा कई ऐसी घटनाएं हैं जिनका खुलासा नहीं हुआ लेकिन तमाम ऐसी घटनाएं हैं जिनका खुलासा पुलिस ने सफलतापूर्वक कर दिया। पुलिस कमिश्नर डीके ठाकुर के तबादले का कारण अपराध की बढ़ी हुई घटनाओं को तो नहीं माना जा रहा है लेकिन तबादले के पीछे लोग अपने-अपने कयास जरूर लगा रहे हैं। बहरहाल तबादले के पीछे वजह जो भी हो लेकिन इन तबादलों के पीछे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा साफ नजर आ रही है कि वह किसी भी तरह की लापरवाही कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे।
डीके ठाकुर के कार्यकाल में कुछ थानेदारों की बेअंदाज़ी भी रही चर्चा में
1 साल 8 महीने और 16 दिन के कार्यकाल के बाद अचानक लखनऊ पुलिस कमिश्नर के पद से हटाए गए डीके ठाकुर के कार्यकाल में कुछ थानेदारों कि बेअंदाज़ी सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनी रहे । सरल स्वभाव और आम जनता से आसानी से मुलाकात के लिए पहचाने जाने वाले आईपीएस अधिकारी डीके ठाकुर ने तमाम ऐसे इंस्पेक्टरों और उपनिरीक्षकों को पर निलंबन और तबादले की कार्रवाई भी की जिनके क्षेत्र में अपराध की घटनाएं हुई और जनता से उनका व्यवहार गलत रहा लेकिन इस बीच सोशल मीडिया पर यह भी चर्चा रही थी डीके ठाकुर के कार्यकाल में कुछ इंस्पेक्टर बेअंदाज हो गए हैं और इन बेअन्दाज़ पावरफुल इंस्पेक्टरों के सामने पुलिस कमिश्नर डीके ठाकुर भी कार्यवाही करने से कतरा रहे हैं हालाकी लखनऊ जैसे शहर में शायद ही कोई ऐसा थाना हो जिसमें तैनात इंस्पेक्टरों के सामने ये चुनौती न हो कि वह किसी भी अपराध की घटना के बाद घटना के खुलासे या आरोपी बनाए गए पावरफुल व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए कहीं न कहीं से दबाव में रहते हो लेकिन सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय कुछ थानेदार ऐसे रहे जो अपराध नियंत्रण और अपराधियों की धरपकड़ में तो तेजतर्रार साबित हुए लेकिन कहीं न कहीं उनके क्षेत्र की जनता से उनके व्यवहार में और क्षेत्र में फैले नशे और सट्टे के कारोबार को रोकने में या तो वो असफल साबित हुए या फिर ऐसे लोगों के खिलाफ कार्यवाही न करते हुए पैसे के लिए उन्हें नजरअंदाज करते हो हालांकि सोशल मीडिया पर वायरल होने वाली सभी घटनाए फ़ोटो वीडियो संदेश सच से भरपूर नही होते है लेकिन सोशल मीडिया पर वायरल होने वाले सभी सन्देश, फ़ोटो, वीडियो को पूरी तरह से झूठा भी नही कहा जा सकता है। बाहरहाल पुलिस कमिश्नर डीके ठाकुर का तबादला आम लोगों के लिए सस्पेंस का विषय बना हुआ है।
हिन्द वतन समाचार” की रिपोर्ट…