राज्यों को बिजली संयंत्रों के लिए धान अपशिष्ट की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करने का निर्देश
नई दिल्ली, 02 अगस्त । वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से ताप बिजली संयंत्रों में कोयले के साथ ईंधन के रूप में और बाह्य स्थान (एक्स-सीटू) इस्तेमाल के लिए धान के अपशिष्ट की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करने को कहा है।
धान के अपशिष्ट का ताप बिजली संयंत्रों में (10 प्रतिशत तक) इस्तेमाल एक महत्वपूर्ण बाह्य पराली प्रबंधन रणनीति है।
धान के अपशिष्ट का इस्तेमाल कचरे-से-ऊर्जा संयंत्रों, ईंट के भट्ठों और अंतिम उत्पाद मसलन पेलेट, जैव-ईंधन (बायो-एथनॉल) और पैकेजिंग सामग्री के रूप में किया जाता है।
राष्ट्रीय राजधानी में अक्टूबर और नवंबर में वायु प्रदूषण चिंताजनक स्तर तक बढ़ जाता है। इसकी प्रमुख वजह यह है कि पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों द्वारा पराली जलाई जाती है।
किसान गेहूं और आलू की बुवाई के लिए अपने खेतों को साफ करने के लिए फसल के अपशिष्ट को आग लगाकर खत्म करते हैं।
पंजाब में हर साल दो करोड़ टन, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के आठ एनसीआर जिलों में क्रमश: 75 लाख टन और 7.5 लाख टन पराली निकलती है।
एनटीपीसी अपने ताप बिजली संयंत्रों में धान के अपशिष्ट का इस्तेमाल करती है। कंपनी ने पूर्व में आयोग को बताया था कि धान अपशिष्ट आधारित पेलेट का बिजली संयंत्रों में कोयले के साथ ईंधन के रूप में पांच से 10 प्रतिशत तक इस्तेमाल करना (को-फायरिंग) तकनीकी रूप से व्यावहारिक है।
बताया जाता है कि 17 बिजली संयंत्रों में 50 लाख टन बायोमास पेलेट के इस्तेमाल के प्रयास किए जा रहे हैं।
सीएक्यूएम ने राज्यों से बिजली संयंत्रों को धान फसल के अपशिष्ट का इस्तेमाल करते हुए कच्चे माल की निश्चित और सतत आपूर्ति सुनिश्चित करने को नीतिगत रूपरेखा बनाने को कहा है।
राज्यों से कहा गया है कि अपने खुद के ताप बिजली संयंत्रों में धान के अपशिष्ट के पेलेट का इस्तेमाल करें।
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…