*बसपा सुप्रीमो मायावती की नसीहत- मिशनरी सोच पर ज्यादा भरोसा करने की जरूरत*
लखनऊ, 24 जुलाई। गुजरात, महाराष्ट्र व कर्नाटक में आगामी विधानसभा चुनाव में मिशनरी सोच वालों पर भरोसा करने की नसीहत देते हुये बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती ने कहा कि देश के विभिन्न राज्यों में सत्ता पलट व राजनीतिक अस्थिरता का माहौल है तथा धनबल का गंदा खेल जारी है। मायावती ने रविवार को गुजरात, महाराष्ट्र कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु मे पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ बैठक में गुजरात, महाराष्ट्र व कर्नाटक राज्य में आगामी विधानसभा आमचुनाव में मिशनरी सोच वालों पर ज्यादातर भरोसा करने की हिदायत दी ताकि घोर स्वार्थी, विश्वासघाती व बिकाऊ सोच रखने वाले लोगों को पार्टी व मूवमेन्ट से थोड़ी मुक्ति मिल सके।
उन्होंने कहा कि वैसे यह समस्या हर पार्टी में पैदा हो गई है जिस कारण ही देश के विभिन्न राज्यों में सत्ता पलट व राजनीतिक अस्थिरता का माहौल है तथा धनबल का गंदा खेल जारी है। उन्होंने कहा कि ऐसे समय में जब राजनीति में घोर स्वार्थी, जातिवादी, साम्प्रदायिक व आपराधिक तत्वों आदि का नकारात्मक बोलबाला काफी बढ़ गया है, लोगों के लिए बस पाके चिर-परिचित आत्म-सम्मान व स्वाभिमान का मूवमेन्ट ही एक मात्र विकल्प बचा है। यूपी, महाराष्ट्र, गुजरात में तो इसकी सबसे ज्यादा व खास जरूरत नजर आती है ताकि संवैधानिक मूल्यों-आदर्शों व कानून के राज की सही से रक्षा हो सके। बसपा अध्यक्ष ने कहा कि पिछले वर्षों के घटनाक्रम इस बात के गवाह हैं कि देश की राजनीति व शासन-प्रशासन में बहुजन समाज में से खासकर दलितों, अति पिछड़ों व धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों की सामूहिक तौर पर जिस प्रकार से हर स्तर पर उपेक्षा व शोषण लगातार हुआ तब उस घोर संकट के दौर में बसपा ही उपेक्षित वर्गों का एकमात्र सहारा बनकर उभरी है।
सुश्री मायावती ने कहा कि बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर के मूवमेन्ट को महाराष्ट्र, गुजरात व यूपी सहित देश के विभिन्न राज्यों में और भी ज्यादा मजबूती प्रदान करने की जरूरत है, क्योंकि देश की बढ़ती महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी, खेती-किसानी संकट तथा अराजकता आदि के अभिशाप का सबसे ज्यादा भुक्तभोगी इन्हीं करोड़ों बहुजन वर्गों के लोगों को ही बनना पड़ रहा है, जबकि सत्ताधारी तत्व अपने स्वार्थ पूर्ति में लगे हैं व देश के बिगड़ते हालात से पूरी तरह से बेपरवाह नजर आते हैं।
उन्होंने कहा कि इस समय वक्त की सबसे बड़ी जरूरत यह है कि दलगत राजनीति से ऊपर उठकर देश की लगभग 130 करोड़ जनता के सामने जीने-मरने जैसी विकट महंगाई, गरीबी व बेरोजगारी आदि से उत्पन्न व बेचैनी की अति-ज्वलन्त समस्याओं पर पूरी तरह से ध्यान केन्द्रित किया जाए। दैनिक उपयोग की खाने-पीने की जरूरी वस्तुओं पर भी जिस प्रकार से ताजा जीएसटी टैक्स थोप दिया गया है वह सरकार की गरीब-विरोधी नीति का ही जीता-जागता प्रमाण है। कुछ मुट्ठीभर धन्नासेठों व अमीरों आदि को छोड़कर देश के अधिकतर लोगों की आमदनी अठन्नी रह गई है जबकि महंगाई के कारण वे रूपया खर्च करने को मजबूर हैं।