भारत, बांग्लादेश ने चीन में एक साथ टैगोर, नजरुल की जयंती मनाई…
बीजिंग, 12 जून। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित रवींद्रनाथ टैगोर और बांग्लादेश के राष्ट्रीय कवि काजी नजरूल इस्लाम की कविता और संगीत की गूंज यहां भारतीय दूतावास में सुनाई दी। दोनों देशों के दूतावासों ने इसके लिए एक संयुक्त कार्यक्रम का आयोजन किया।
राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी छाप छोड़ने वाले दो सबसे बहुमुखी महान बांग्ला कवि-टैगोर की 161वीं जयंती और नजरुल की 123वीं जयंती मनाने के लिए शनिवार को आयोजित ‘‘रवींद्र-नजरुल जयंती’’ कार्यक्रम में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। राजनयिकों, दोनों देशों के प्रवासी सदस्यों के साथ-साथ टैगोर के चीनी प्रशंसकों ने दोनों कवियों की प्रेरणादायक कविताओं का पाठ किया, जबकि कथक और भरतनाट्यम की नृत्यांगनाओं ने विशेष नृत्य प्रस्तुतियां दीं।
चीन में भारत के राजदूत प्रदीप कुमार रावत ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘भारत और बांग्लादेश के बीच के बंधन समृद्ध हैं और इतिहास से जुड़े हुए हैं। कुछ ही ऐसी चीजें हैं जो हमें अलग करती हैं। बहुत कुछ ऐसा है जो हमें एकजुट करता है।’’
उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच संबंध मानव जीवन के हर पहलू तक फैले हुए हैं, चाहे वह सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक हो राजनीतिक और आध्यात्मिक हो। उन्होंने कहा कि उत्कृष्ट द्विपक्षीय संबंध समानता, विश्वास और समझ के आधार पर एक व्यापक साझेदारी को दर्शाते हैं जो एक रणनीतिक साझेदारी से कहीं आगे जाती है।
रावत ने कहा, ‘‘गुरुदेव टैगोर और काजी नजरुल इस्लाम बांग्ला साहित्य के पांच महान ‘पंचोकोबी’ में से हैं, जिन्होंने न केवल बांग्ला साहित्य और संस्कृति को आकार देने में बल्कि हमारी राष्ट्रीय पहचान को भी आकार देने में बहुत प्रभावशाली भूमिका निभाई। यह इस तथ्य से भी परिलक्षित होता है कि गुरुदेव टैगोर ने हमारे दोनों देशों के लिए राष्ट्रगान (जन गण मन और आमार सोनार बांग्ला) लिखा था।’’
अपने संबोधन में, चीन में बांग्लादेश के राजदूत महबूब उज जमां ने कहा कि दूतावासों द्वारा आयोजित संयुक्त कार्यक्रम ने दोनों पड़ोसी देशों के बीच दोस्ती और घनिष्ठ संबंधों को उजागर किया है। उन्होंने कहा, ‘‘हम 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता के गौरवशाली युद्ध से बंधे हैं।’’
जमां ने कहा, ‘‘टैगोर और नजरुल के बीच 38 साल के अंतराल के बावजूद, उन्होंने सम्मान और प्यार के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखा। उनके साहित्यिक कार्यों में सामाजिक न्याय, गैर-सांप्रदायिकता और मानवता के एक समान सूत्र को दर्शाया गया है।’’
उन्होंने कहा कि भारत और बांग्लादेश के राष्ट्रगान लिखने वाले टैगोर श्रीलंका के राष्ट्रगान के भी प्रेरणास्रोत थे, क्योंकि इसे आनंद स्मारकून ने लिखा था जिन्होंने शांतिनिकेतन में विश्वभारती विश्वविद्यालय में अध्ययन किया था।
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…