पद और अधिकार बड़े पर घमंड से भरे दिल छोटा…
महिलाओं को पैरों की जूतियां समझने वाले राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के महामंत्री भगवती सिंह…
को रीना त्रिपाठी का महिलाओं के सम्मान के लिए लड़ना और शिक्षकों के हित के लिए कैशलेस…
चिकित्सा सुविधा की जोरदार पैरवी रास नहीं आई , संगठन और उसके सभी ग्रुपों से हटाया…
आज देश में एक ओर जहां आदरणीय मोदी जी द्वारा महिला हित सम्मान और आत्मनिर्भरता के लिए विभिन्न योजनाएं बनाई जा रही हैं वहीं उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण हेतु उन्हें पिंक बूथ का सहारा देते हुए शक्ति मिशन से जोड़ा गया घर के गैस सिलेंडर यहां तक कि घरों को भी महिला के नाम रजिस्ट्री किया जा रहा है खाते भी महिलाओं के नाम खोले जा रहे हैं और कम ब्याज पर ऋण भी महिलाओं को उपलब्ध करा रही है। काम करने के स्थल में महिला को समानता का अधिकार और सम्मान मिले इसका केंद्र व राज्य सरकारें पूरी तरह ध्यान रखते हुए महिलाओ की गरिमा और सौहार्दपूर्ण माहौल हेतु प्रयासरत हैं। वहीं राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के प्रांतीय पदाधिकारी कर रहे हैं महिलाओं का शोषण।
एक तरफ हमारा संविधान भी आर्थिक राजनैतिक और सामाजिक स्वतंत्रता , समता के मौलिक अधिकार की बात कहता हैं। वही प्रांतीय पदाधिकारी पदाधिकारी जिलों की बैठकों में बुलाकर महिलाओं को करते हैंअपमान और शोषण।
कर्मचारी और शिक्षकों के लिए काम करने वाले अधिकांश संगठनों में क्या वाकई महिलाओं को समानता का दर्जा दिया जाता है ?आप कहेंगे निश्चित रूप से हां पर हकीकत इससे कोशो दूर है।
बात करती हूं एक बहुत छोटी सी सामान्य से दिखने वाली घटना की जो सिर्फ एक बैग से संबंधित है पर जिसमें महिला समानता सम्मान और गरिमा की धज्जियां उड़ा दी।
और यह बता दिया कि महिला सिर्फ इस्तेमाल करने की चीज है उसे सिर्फ स्वार्थ के लिए संगठनों में जोड़ा जाता है यह दिखाने के लिए कि हम कितने लिबरल हैं।
राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के बेसिक शिक्षा महामंत्री भगवती सिंह जी खुद रायबरेली में शिक्षक है क्या यह बता सकते हैं कि यह कहां के जिला अध्यक्ष और मंत्री हैं। फिलहाल मैं बता दूं इसमें लखनऊ के अध्यक्ष और मंत्री कैसे हो बाकी सब ब्लॉक के लोग हैं।……… इस तस्वीर में लखनऊ के लगभग 9 शिक्षक हैं जो कि सामान्य रूप से कार्यक्रम में उपस्थित हुए थे .
इसी तरह की ना जाने कितनी तस्वीरे मिल जाए पर अफसोस इस बात का होता है कि पुरुषवादी मानसिकता रखने वाले लोग संगठन में कब तक महिलाओं का शोषण और अपमान करने के लिए अपने विशुद्ध मानसिकताओं को लेकर महिलाओं को दबाने के लिए पद का गलत उपयोग करते रहेंगे।
आइए पूरा मामला बताते चले लखनऊ में दो दिवसीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ का शिक्षक सम्मेलनका कार्यक्रम चल रहा था जिसमे 15अप्रैल को साधारण सभा जिसमें जिले के अध्यक्ष महामंत्री मंडल के अध्यक्ष महामंत्री तथा अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे। व्यवस्था के तहत सरस्वती वंदना व स्वागत गीत के लिए लखनऊ महिला प्रकोष्ठ के जिलाध्यक्ष रुचि अरोड़ा व उनके साथियों को विशेष तौर पर बुलाया गया।
सत्र अपने समय अनुसार चल रहा था तभी लंच की घोषणा होती है और मंच से कहा जाता है कि सभी लोग जिन्होंने रजिस्ट्रेशन नहीं कराया है रजिस्ट्रेशन करा कर अपने-अपने बैग ले ले। सभा में उपस्थित महिला शिक्षक भी उस स्थान पर पहुंचे किसी ने महामंत्री भगवती सिंह रजिस्ट्रेशन कर रहे हैं वहां अपना रजिस्ट्रेशन करा ले… हम लोग उनके पास पहुंचे भगवती सिंह ने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा कि यह आपके लिए नहीं है मैंने कहा क्यों? तो उन्होंने कहा कि रजिस्ट्रेशन और बैग अध्यक्ष और मंत्री के लिए हैं। मैंनेऔर सभी उपास्थिक महीला शिक्षिकाओ ने उनका फैसला सहर्ष स्वीकार किया और नियमानुसार वहां मौजूद लखनऊ महिला प्रकोष्ठ जिला अध्यक्ष को रजिस्टर्ड करने का आग्रह किया। इस बात पर महामंत्री भागवती सिंह भड़क गए। सभी महिला शिक्षकों के अपमान के लिए पहले से तैयार महामंत्री भगवती सिंह ने कहा की महिलाओं का सम्मेलन बाद में होगा उन्हें कुछ नहीं मिलेगा यह सिर्फ पुरुषों के लिए है। …….
क्योंकि मैं वर्तमान में कार्यकारी मंडल अध्यक्ष लखनऊ के रूप में कार्यरत हूं व्यवस्था में पूरी तरह सहयोगरत थी। वहां उपस्थित सभी महिलाएं जो कि दो दिन से कार्यक्रम के आयोजन को सफल करने में लगी हुई थी इस अपमान से काफी आहत हुई और सब ने आपत्ति दर्ज करते हुए यह कहा कि यदि महिलाओं का सम्मेलन नहीं था तो हमारे जो छुट्टी के दिन थे जो हम अपने बच्चों और परिवार को देते क्यों खराब कराएं?एक बैग इसका मूल्य तो कुछ ना था पर शायद भरी सभा में सम्मान का सूचक जरूर था के लिए महिलाओं का भरी सभा में अपमान ही करना थातो बुलाया क्यों?
यदि वहां मौजूद लगभग 160 लोगों को बैग मिल सकते हैं तो एक महिला जोकि नियमानुसार अध्यक्ष थी उसका अपमान क्यों किया जा रहा था??? क्या सिर्फ इसलिए कि राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ ,आर एस एस का अनुषांगिक संगठन होने के बावजूद महिला समानता महिलाओं के हक और सम्मान की बात तो करता है पर अक्सर अपने पद के गम में चूर बड़े आधिकारी अपने से कनिष्ठ पद में नियुक्त पदाधिकारियों का अपमान करते हैं।……….. और यदि आप महिला होने के बावजूद इनके हर गलत सही फैसले को नहीं मानती है तो आप को संगठन से निकाल दिया जाता है.
क्या वाकई संगठनों में महिला की गरिमा और सम्मान की भावना खत्म होती जा रही है? बहुत बड़े-बड़े पदों को धारण करने वाले महामंत्री भगवती सिंह ने कहा कि तुम कार्यकारी अध्यक्ष ज्यादा कानून मत बताओ मुझे जिसे देना होगा दूंगा और यह कहते हुए वहां से चले गए। निश्चित रूप से मैं जानती हूं, कार्यकारी मंडल अध्यक्ष लखनऊ के पद से मुझे हटाना अखिल भारतीय पदाधिकारी और उत्तर प्रदेश के महामंत्री के लिए एक मिनट का काम है पर पद छोटा है इसके लिए मेरी बेइज्जती करना यह अधिकार महामंत्री महोदय को किसने दिया????? सिर्फ एक बैग के लिए महिलाओं को इतना कुछ सुना दिया गया , वाकई महिलाओं को इस संगठन को छोड़ देना चाहिए क्योंकि यहां सिर्फ महिलाओं का शोषण होता है।
क्योंकि इस समय खाने की छुट्टी चल रही थी इस पूरे प्रकरण की जानकारी कार्यक्रम में मौजूद राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्मला यादव जी व महामंत्री ऋषिदेव जी को दी गई।
परंतु उन्होंने महिला सम्मान से जुड़े हुए इस मुद्दे को मजाक में उड़ा दिया और कहा एक बैग के लिए क्या विरोध करना, इस पूरे प्रकरण की कोई सुनवाई न होते देख प्रकरण अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के पास रखा जा रहा था तभी भगवती सिंह मंच में चढ़कर माइक से घोषणा करते हैं कि आप लोग विरोध ना दर्ज कराएं बैग खत्म हो गए हैं यह सिर्फ अध्यक्ष और मंत्री के लिए थे अगले कार्यक्रम में जो कम पड़ गए हैं बैग दिए जाएंगे ……… सार्वजनिक घोषणा माइक से की जाती है कि यहां सिर्फ अध्यक्ष और मंत्री को ही रजिस्टर्ड करना था और यह सम्मेलन उनका था। पीछे बैनर पीछे बैनर आम सभा का लगा हुआ साफ दिख रहा है……यानी की जो मामला बात करके और बैठकर सुलझ सकता था वह माइक के द्वारा सभा में उपस्थित सभी शिक्षकों तक पहुंचा दिया गया ।वह भी एक गलत संदेश के साथ की महिलाएं बैग के लिए लड़ रही है। महामंत्री द्वारा मामले को घी डालकर बार-बार बढ़ाना पहले मंच से नीचे और बाद में मंच से घोषणा कर सभी महिलाओं का अपमान और सब हंसी का पात्र बनाना क्या उचित था।
जबकि भागवती सिंह जी एक बैग लखनऊ की महिला प्रकोष्ठ के अध्यक्ष को देकर मामला खत्म कर सकते थे… जबकि वह सम्मानजनक तरीके से यह कह सकते थे कि बहन मैं व्यवस्था करता हूं और इस मामले को खत्म कर सकते थे तो फिर खत्म क्यों नहीं किया गया???? क्या संगठन में एक विशेष वर्ग का प्रभुत्व हो रहा है क्या यहां महिलाओं को सिर्फ पैर की जूती समझ आ जाता है और आप यकीन नहीं करेंगे कि विरोध करने के बाद लगभग 60 बैग और बांटे गए. पर उसमें उन महिलाओं के लिए नहीं थे।
उस दिन से मैं सोच रही हूं कि मंच में चढ़कर भगवती सिंह क्या दिखाना चाहते थे कि लखनऊ की महिला शिक्षिकाये एक बैग के लिए अपना विरोध दर्ज कराती है???? या लड़ रही है यह कृत्य अराजक और अनुशासनहीनता का प्रतीक है। निश्चित रूप से उन्हें महिला सम्मान रत्ती भर फिक्र नहीं थी। पहली बार किसी महिला ने महिला हक और अधिकार के लिए विरोध दर्ज कराया।
क्या लखनऊ की शिक्षिकाओं की गरिमा की भावना मर चुकी है क्या उन्हें सम्मान से जीने का अधिकार नहीं, जहां सब का सम्मान हो रहा है वहां क्या आत्मसम्मान की भावना को उन्हें अपने घर में रख कर अपमानित होने के लिए ऐसी सभा में जाना चाहिए। जिस प्रकार ₹20 का माला गले में पहनाने पर सम्मान बढ़ा देता है उसी प्रकार भरी सभा में जब कोई वस्तु सभी को वितरित की जा रही है तो एक को न देकर अनादर , अपमान और असमानता को दर्शाना ही तो है।
मै सोच रही थी महाभारत में हमने पढ़ा और नाटकों में हमने देखा है कि जब द्रोपदी का चीर हरण हो रहा था तो कैसे पूरी सभा वहां के वरिष्ठ लोग खामोश होकर तमाशा देख रहे थे या माखौल उड़ा रहे थे।
निश्चित रूप वहां उपस्थित बड़े पदाधिकारियों को क्या इस बात का संज्ञान नहीं लेना चाहिए?? चुकी सम्मान हक और अधिकार की इस लड़ाई में महिलाओं का साथ देते हुए विरोध मैंने किया था अतः सभी को यह बात खराब लगी कि आपने बात क्यों उठाई। तभी अचानक वहां 11 बैग लाई जाते हैं और कहा जाता है कि तुम लोग बैक के लिए लड़ रही हो यह लोग आएगा और बिल्कुल उसी तरह जैसे कुत्ते को रोटी दुत्कार कर फेंकी जाती है सभी महिलाओं ने इस अपमानजनक और सम्मान से इधर बैग लेने से मना कर दिया और इस प्रश्न चिन्ह के साथ बात को यहीं छोड़ दिया कि अभी एक बैग नहीं था अब 11 बैग कहां से आ गए?????
अकसर भीड़ चुपचाप आंख बंद करके मुख दर्शक की तरह तमाशा देखती रहती हैं जैसे कि हम सब देख रहे हैं। बताते चलें जिस संस्थान में यह कार्यक्रम चल रहा था वहां के मालिक ने पूरी व्यवस्था की थी जितनी संख्या उपस्थित लोगों से एक तिहाई बैग ज्यादा बनवाए गए थे क्योंकि सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में मैं भी इस संस्थान से जुड़ी हूं इसलिए मुझे पूरी व्यवस्था की जानकारी थी।
अन्याय और अपमान के इन छड़ो को महिलाओं ने अपनी आपत्ति के रूप में दर्ज़ करवा दिया परंतु स्थिति हास्यास्पद तब देखी जब वहां मौजूद हर पुरुष के कंधे में एक लालबाग टंगा था या फिर नीला। वाकई हास्यास्पद स्थिति है राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के महामंत्री को क्या यह पता नहीं था कि किसका रजिस्ट्रेशन कराना है और जिसको बैग देने हैं और यदि पता था तो फिर हर व्यक्ति के कंधे पर यह क्यों दिखा वहां कई ब्लॉक के पदाधिकारी कई मंडल के अध्यक्ष और महामंत्री को छोड़कर पदाधिकारी तथा कई अन्य सहयोगी शिक्षक उपस्थित थे।
सभी महिलाओ ने सभी से कहा कि अपनी गलती और महिला शिक्षकों का अपमान की सार्वजनिक रूप से महामत्री माफी मांगे और एकमात्र महीला अध्यक्ष का सम्मान किया जाए। वैसे बता दूं एकमात्र महिला अध्यक्ष जिले की थी जबकि पूरे प्रांत की महिला अध्यक्ष और सभी प्रकोष्ठ ओं की महिला अध्यक्ष वहां उपस्थित थी इसके बाद भी महिलाओं के साथ यह खिलवाड़ होता रहा परंतु वहां मौजूद बड़े-बड़े पदाधिकारियों ने भी इस बात को सिर्फ माखौल में उड़ा दिया।
मेरे व्यक्तिगत प्रयास से महिलाओं को सम्मानजनक तरीके से आदरणीय संगठन के संस्थापक महोदय द्वारा बैग देकर सम्मानित तो मैंने करा दिया पर संगठन के पदाधिकारियों द्वारा किया गया यह अपमान क्या महिलाएं कभी भूल पाएगी??? क्या खुद्दार महिलाएं संगठन की सदस्यता लेने के लिए लालायित होगी??
अब जब पूरे प्रदेश में तस्वीरें आ रही हैं तो वाकई यह प्रश्न मन में उठता है कि क्या नियम और कानून सिर्फ महिलाओं के लिए हैं ??वह भी अपनी इच्छा अनुसार मनगढ़ंत कुछ बड़े और ताकतवर पदाधिकारियों द्वारा बना दिए जाते हैं?? महिलाओं को दबाने के लिए उनका अपमान करने के लिए और उन्हें यह कहा जा वह बिना बुलाए आ गई हैं और किसी भी प्रकार के सम्मान पर उनका कोई अधिकार नहीं क्या वाकई चिंताजनक विषय नहीं है क्या वाकई उन पुरुष पदाधिकारियों और महिला सर्वोच्च पद में बैठी हुई पदाधिकारियों को यह सोचना नहीं चाहिए कि संगठन में अनुशासन सम्मान और गरिमा की लड़ाई में हमने एक संग बनाया है हम संगठित होकर उन शिक्षकों की आवाज बनने का प्रयास कर रहे हैं जो कहीं न कहीं शोषण के शिकार होते हैं या होने वाले हैं परंतु जब संगठनों में महिलाओं का ही अपमान अवशोषण होगा तो यह अपेक्षा की जा सकती है कि वहां किसी को भी न्याय मिलेगा???????
यह तस्वीर एक बानगी मात्र है क्या भगवती सिंह बताएंगे कि इसमें कितने अध्यक्ष और मंत्री हैं ?????
यह तस्वीर बताती है कि बैग की उपलब्धता की कोई कमी नहीं थी । महिलाओं का अपमान सोची समझी साजिश के तहत किया गया……….
कार्यक्रम में उपस्थित महिलाओं को मेरे पर्सनल प्रयास से संस्था के माननीय पवन सिंह चौहान जी द द्वारा पूरी बैक टिकट देकर सम्मानित किया गया।
कृपया विचार करें और सम्मान,हक और अधिकार की इस लड़ाई में न्याय की आस किस्से की जाएं।
इसके बाद एक घटना और हुई कि कैशलेस चिकित्सा सुविधा जो की बेसिक शिक्षकों की प्रमुख मांग थी कि जनवरी में जोरदार तरीके से पैरवी मेरे द्वारा की गई और यह चुनाव के बाद मुख्यमंत्री जी द्वारा स्वीकार भी कर लिया गया। एक महिला द्वारा इतना बड़ा काम करा ले जाना प्रांतीय नेतृत्व को पसंद नहीं आया और उन्होंने सभी संगठनों के ग्रुप से लखनऊ मंडल की कार्यकारी अध्यक्ष को रिमूव कर दिया।
निश्चित रूप से उन्हें गोल्डन डॉल की आवश्यकता रहेगी।
काम करने वाली महिला प्रतिनिधियों की इस संगठनको आवश्यकता नहीं। महिलाओं केऔर शिक्षकों हक और अधिकार के लिए लड़ाई में हमेशा आपके साथ
🙏🙏🙏🙏
@रीना त्रिपाठी
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…