कैसे बनें चुनाव विश्लेषक, जानें सभी जरूरी बातें…

कैसे बनें चुनाव विश्लेषक, जानें सभी जरूरी बातें…

भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहां पर बड़ी आबादी चुनाव एवं उसके नतीजों में अपनी दिलचस्पी रखती है। पिछले दिनों हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के दौरान एग्जिट पोल और रिजल्ट को लेकर मची सरगर्मी इस बात की तसदीक भी करती है। हालांकि एग्जिट पोल अथवा प्री पोल सर्वे का काम इतना आसान भी नहीं होता। यह एक खास लोगों की लगातार कई दिनों तक की मेहनत का परिणाम होता है। ऐसे लोग चुनाव विश्लेषक या सेफोलॉजिस्ट कहलाते हैं। इस पूरे क्षेत्र का अध्ययन जिस शाखा के अंतर्गत किया जाता है, उसे सेफोलॉजी कहते हैं। जिस तेजी से लोगों की चुनाव में दिलचस्पी बढ़ रही है, उसी तेजी से देश में चुनाव विश्लेषकों की मांग भी बढ़ रही है।.

क्या काम है चुनाव विश्लेषकों का

इस क्षेत्र में आंकड़ों और लोगों के नजरिए को परखना होता है। बतौर चुनाव विश्लेषक इसमें जानकारियों एवं तथ्यों का जमकर दोहन किया जाता है। चुनाव के पहले से ही पूर्व के आंकड़ों को परखने, चुनाव के दौरान मत-प्रतिशत और फिर उसके बाद नफा-नुकसान, गठबंधन से फायदा आदि का विधिवत अध्ययन किया जाता है। काम के सिलसिले में प्रोफेशनल्स को चुनावी क्षेत्रों का दौरा भी करना पड़ता है। एक तरह से देखा जाए तो इनका काम एक धुंधली तस्वीर को झाड़-पोंछकर किसी खास निष्कर्ष तक ले जाना है। एग्जिट पोल के नतीजों की सार्थकता को देखते हुए इनके काम की हर जगह पूछ है तथा लगभग सभी पार्टियां इनकी सेवाएं लेने में दिलचस्पी दर्शा रही हैं।.

कब कर सकेंगे कोर्स

चुनाव विश्लेषक बनने के लिए किसी खास कोर्स का संचालन नहीं किया जाता। लेकिन पोस्ट ग्रेजुएशन में राजनीति शास्त्र, समाजशास्त्र अथवा सांख्यिकी की डिग्री रखने वाले छात्र इसके लिए उपयुक्त समझे जाते हैं। इस क्षेत्र की कार्यशैली व गंभीरता को देखते हुए इसमें पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स को ही मुफीद माना जाता है। यदि छात्र के पास राजनीति शास्त्र व समाजशास्त्र अथवा सांख्यिकी में से किसी एक में डॉक्टरेट की डिग्री है तो उन्हें वरीयता दी जाती है। हालिया एक-दो वर्षों में कुछ विश्वविद्यालयों ने सेफोलॉजी में सर्टिफिकेट कोर्स शुरू किए हैं, जिनके जरिए वे विश्लेषकों की टीम तैयार कर रहे हैं।.

ये कोर्स देंगे काम को रफ्तार

– बीए इन पॉलिटिकल साइंस.

– बीए इन सोशियोलॉजी.

– बीए इन स्टैटिस्टिक्स.

– एमए इन पॉलिटिकल साइंस.

– एमए इन सोशियोलॉजी.

– एमए इन स्टैटिस्टिक्स.

– पीएचडी इन पॉलिटिकल साइंस.

राजनीतिक हलचलों से अपडेट रहें

इसमें राजनीतिक आंकड़ों का ताना-बाना बुनने के साथ ही जनसांख्यिकी पैटर्न को गहराई से समझना जरूरी होता है। साथ ही उन्हें जातिगत समीकरणों व राजनीतिक हलचलों से खुद को अपडेट रखना पड़ता है।

एक अच्छा चुनाव विश्लेषक बनने के लिए यह आवश्यक है कि प्रोफेशनल्स जातिगत एवं मतों के धु्रवीकरण को बखूबी समझे, अन्यथा वह एक स्वस्थ व निर्विवाद निष्कर्ष पर कभी नहीं पहुंच सकता। इन प्रमुख गुणों के साथ-साथ उसे परिश्रमी व धैर्यवान भी बनना होगा। उसके पास पिछले कुछ चुनावों के आंकड़े भी होने चाहिए। कंप्यूटर व इंटरनेट की जानकारी उसे कई तरह से लाभ पहुंचा सकती है।

रोजगार के असीम अवसर

इसमें प्रोफेशनल्स को सरकारी व प्राइवेट दोनों जगह पर्याप्त अवसर मिलते हैं। यदि छात्र ने सफलतापूर्वक कोर्स किया है तो उसे रोजगार के लिए भटकना नहीं पड़ेगा। चुनावी सर्वे या रिसर्च कराने वाली एजेंसियों, टेलीविजन चैनल, समाचार पत्र-पत्रिकाओं, प्रमुख राजनीतिक दलों व एनजीओ आदि को पर्याप्त संख्या में इनकी जरूरत होती है। इसके अलावा पॉलिटिकल एडवाइजर, टीचिंग, संसदीय कार्य तथा पॉलिटिकल रिपोर्टिंग में इन लोगों की बेहद मांग है।

यदि प्रोफेशनल किसी संस्था अथवा बैनर से जुड़कर काम नहीं करना चाहता तो वह स्वतंत्र रूप से बतौर कंसल्टेंट अथवा अपनी एजेंसी खोलकर भी कार्य कर सकता है। .

आकर्षक वेतन

इसमें सैलरी की कोई निश्चित रूपरेखा नहीं होती। चुनावी दिनों में वे एक मोटे पैकेज पर एक प्रोजेक्ट विशेष के लिए अपनी सेवा देते हैं। जबकि प्रोफेसर व एनालिस्ट के रूप में वे 35-40 हजार रुपए प्रतिमाह आसानी से कमा सकते हैं। यदि वे विश्लेषक के तौर पर काम कर रहे हैं तो उनके लिए आमदनी के कई रास्ते होते हैं। अच्छी शुरुआत कर आपकी आमदनी भी अच्छी हो सकती है।

हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…