कबाड़ से कमाई करने में उत्तर रेलवे सबसे आगे…
624.36 करोड़ रुपये का मिला राजस्व…
नई दिल्ली, 06 अप्रैल। रेलवे लाइन के किनारे, यार्ड में और रेल परिसरों में पड़े हुए कबाड़ को हटाकर रेलवे राजस्व अर्जित कर रहा है। इसके लिए विशेष अभियान चलाया जा रहा है। इस काम में उत्तर रेलवे ने अन्य क्षेत्रीय रेलवे को पीछे छोड़ दिया है। पिछले वित्त वर्ष में उत्तर रेलवे ने 624.36 करोड़ रुपये का कबाड़ बेचा है। यह पिछले वर्ष की तुलना में 40 प्रतिशत ज्यादा है। इसके साथ ही कबाड़ रहित क्षेत्रीय रेलवे का दर्जा मिल गया है। निर्माण कार्य, रेलवे लाइन की मरम्मत, पुराने व दुर्घटनाग्रस्त कोच, प्रयोग में नहीं आने वाले कर्मचारियों के क्वार्टर, शेड, केबिन, पानी की टंकी, कंप्यूटर, प्रिंटर आदि से बड़े पैमाने पर कबाड़ एकत्र हो जाता है। नियमित रूप से इनके निस्तारण का काम चलता है। बावजूद इसके जगह-जगह कबाड़ के ढेर लगे रहते हैं। इस समस्या के समाधान के लिए रेलवे ने विशेष अभियान शुरू किया है। प्रत्येक क्षेत्रीय रेलवे के लिए लक्ष्य निर्धारित किया गया था। उत्तर रेलवे के महाप्रबंधक आशुतोष गंगल के अनुसार वित्त वर्ष 2021-22 में 370 करोड़ रुपये का कबाड़ बेचने का लक्ष्य दिया गया था। इस लक्ष्य को पिछले वर्ष नवंबर में ही हासिल कर लिया गया था। पूरे वित्त वर्ष में लक्ष्य से 69 प्रतिशत ज्यादा राजस्व प्राप्त किया गया। वित्त वर्ष 2020-21 में कुल 443 करोड़ रुपये का राजस्व मिला था। कबाड़ बेचने के लिए ई नीलामी का सहारा लिया गया। पूरे उत्तर रेलवे में आठ स्थानों पर 592 ई नीलामी की गई। इससे 70 हजार टन रेल कबाड़, साढ़े आठ सौ टन अलोह कबाड़, 1930 टन बैटरी, 201 टन ई-कचरा और1.55 लाख कंक्रीट वाले स्लीपर की बिक्री की गई। रेलवे लाइन के नजदीक पड़े हुए पटरी के टुकड़े, पुराने स्लीपर आदि से सुरक्षित रेल परिचालन में बाधा उत्पन्न होती है। दुर्घटना का खतरा बना रहता है। इसी प्रकार उपयोग में नहीं आने वाले इमारतों के दुरुपयोग की संभावना रहती है। रेलवे परिसर में गंदगी भी फैलती है। भारतीय रेलवे में कबाड़ से बिक्री में 16.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पिछले वित्त वर्ष में 5,316.1 करोड़ रुपये का कबाड़ बेचा गया है। यह अबतक का रिकार्ड है।
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…