हम जो इंसानों की तहज़ीब लिए फिरते हैं हमसा वहशी कोई जंगल के दरिंदों में नहीं…
राइटर अंजुम क़ादरी✍🏻
लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं
रुह भी होती है उस में ये कहाँ सोचते हैं
रुह क्या होती है इससे उन्हें मतलब ही नहीं
वो तो बस तन के तक़ाज़ों का कहा मानते हैं
रुह मर जाती है तो ये जिस्म है चलती हुई लाश
इस हक़ीक़त को न समझते हैं न पहचानते हैं
कितनी सदियों से ये वहशत का चलन जारी है
कितनी सदियों से है क़ाएम,ये गुनाहों का रिवाज
लोग औरत की हर इक चीख़ को नग़्मा समझे
वो क़बीलों का ज़माना हो कि शहरों का रिवाज
जब्र से नस्ल बढ़े ज़ुल्म से तन मेल करें
ये अमल हम में है बे-इल्म परिन्दों में नहीं
हम जो इनसानों की तहज़ीब लिए फिरते हैं
हमसा वहशी कोई जंगल के दरिन्दों में नहीं
इक बुझी रुह लुटे जिस्म के ढाँचे में लिए
सोचती हूँ मैं कहाँ जा के मुक़द्दर फोड़ूँ
मैं न ज़िन्दा हूँ कि मरने का सहारा ढूंढू
और न मुर्दा हूँ कि जीने के ग़मों से छूटूँ
कौन बतलाएगा मुझ को किसे जा कर पूछूँ
ज़िन्दगी क़हर के साँचों में ढलेगी कब तक
कब तलक आँख न खोलेगा ज़माने का ज़मीर
ज़ुल्म और जब्र की ये रीत चलेगी कब तक।
आज महिला दिवस के उपलक्ष्य पर मैं अपने शब्दों में आवाम से कह रही हूं आखिर कब तक औरत के साथ खिलवाड़ होता रहेगा। कभी हिजाब को लेकर कभी जींस टॉप को लेकर कभी एजुकेशन को लेकर हर एक विषय पर आखिर फीमेल को ही क्यों उछाला जाता है जबकि पूरे भारत में कोई भी ऐसा घर नहीं है जिस घर में फीमेल ना हो दुनिया का कोई भी ऐसा मर्द नहीं जो बिना मां के पैदा हुआ हो या जिसके आगे मां बेटी बहन बहू ना हो हर मर्द को औरत का साथ जरूर मिला है चाहे उसकी बहन के रूप में चाहे बीवी चाहे मां या फिर बेटी फिर भी पुरुष प्रधान क्यों नहीं समझते कब तक चलेगा यह सब आखिर यह क्या है? हम यह नहीं कहते कि दुनिया के सारे मर्द एक जैसे होते हैं दुनिया में बहुत सारे मर्द बहुत अच्छे हैं इसीलिए दुनिया अभी तक आबाद है अल्लाह ताला की भेजी हुई किताब कुरान पाक सब कुछ बताता है इसी तरह से *बाइबिल ,गीता, रामायण, ग्रंथ भी सभी आस्था के लोगों को यही संदेश देतीं हैं।हर एक किताब में यही उपदेश दिया गया है इंसान हो इंसान बन के रहो जानवर मत बनो साफ-साफ लिखा है आप दुनिया पर सिर्फ आपके लिए ही उतारे गए हो स्वयं का मूल्यांकन करो सामने वाले पर उंगली मत उठाओ अपना कार्य करने आए हो कार्य करो फल का इंतजार मत करो फल अल्लाह ईश्वर देगा लेकिन फिर भी आए दिन हमारे भारत देश में महिलाओं की इज्ज़त घटती जा रही है साल के 12 महीने होते हैं पूरे साल महिलाओं पर अत्याचार होते हैं बात कड़वी है क्योंकि सच है और सच कड़वा ही होता है मेरी तरह आप भी सर्च कीजिए आपको भी सच देख कर बड़ी घिन लगेगी बड़ी शर्म आएगी क्योंकि इतना गंदा समाज कर दिया है सिर्फ और सिर्फ पुरुष प्रधान ने महिलाएं पुरुषों के हैंडओवर हैं आप उनसे देह व्यापार करवाते हैं मज़ारों पर मंदिरों पर शादी पार्टी में उनको दिलजोई के लिए बुलवाते हैं होटलों में जगह जगह चमड़ी का व्यापार करवाते हैं कभी आपने किसी औरत को झांक कर देखा है क्या वह इतना बड़ा कदम खुद से उठा सकती हैं? मर्द की बिना इजाज़त औरत घर से भी नहीं निकलती इसीलिए हम यह भी देखते आ रहे हैं रेपिस्ट भारत में बढ़ते जा रहे हैं 5 महीने की बच्ची से लेकर 80 साल की बूढ़ी औरत तक यहां तक की मरने के बाद कब्र तक में उनका रेप किया जाता है क्या यही इंसानियत है क्या हमारे कुरान में ग्रंथ में बाइबिल में गीता में रामायण में यही लिखा है आखिर यह कब तक चलेगा कब तक पुरुष प्रधान खुद का मूल्यांकन नहीं करेंगे कब तक औरत पुरुष की कठपुतली रहेगी। पुरुष हो पुरुष का फर्ज निभाओ जिस तरह अपने परिवार में महिलाओं की इज्ज़त करते हो इसी तरह बाज़ार में भी महिलाओं की इज्ज़त करो हर एक महिला को अपनी मां बहन बेटी जैसा समझो तभी तो यह दुनिया जन्नत जैसी होगी वरना यह दुनिया तो इंसान के रूप में कोरोना वायरस बनती जा रही है।
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…