पूरब का स्कॉटलैंड कहलाता है शिलांग…

पूरब का स्कॉटलैंड कहलाता है शिलांग…

लांग अब मेघालय की राजधानी है। एक समय था जब पूर्वोत्तर के सातों राज्यों की राजधानी शिलांग हुआ करती थी। तब इसे नेफा प्रांत के नाम से जाना जाता था। पर 1972 में नेफा सात राज्यों में विभाजित हो गया और शिलांग सिर्फ मेघालय की राजधानी बना। भौगोलिक रूप से मेघालय सात जिलों में बंटा हुआ है और यहां तीन जनजाति के लोग पाए जाते है-खासी, गारो और जयंतिया। मेघालय में ईस्ट, वेस्ट और साउथ गारो हिल्स की पहाड़िया तुरा के आसपास हैं जो गारो जनजाति के रूप में पहचानी जाती है। जयंतिया लोग जयंतिया हिल्स में पाए जाते हैं।

ईस्ट खासी हिल्स शिलांग का हिस्सा है और यहां पर खासी जनजाति के लोग बहुतायत में पाए जाते हैं। इन तीनों ही जनजातियों की एक प्रमुख विशेषता है कि ये मातृसत्तात्मक हैं। यानि वंश लड़कियों से चलता है और विरासत का हस्तांतरण भी मां से बेटी को ही होता है। यहां के पुरुष शादी के बाद पत्नी के घर रहते हैं। यहां के लोग अपनी भाषा बोलते हैं और अंग्रेजी भी जानते हैं। इन जनजातियों में ईसाई धर्म का काफी प्रभाव देखने को मिलता है।

प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर 5000 फुट की ऊंचाई वाला पहाड़ी स्थल शिलांग मेघालय के अन्य स्थानों से बिल्कुल अलग हैं। शिलांग में स्काटलैंड की पहाड़ियों से काफी समानता पाई जाती है इसीलिए इस शहर को पूर्व का स्काटलैंड भी कहा जाता है। यह जगह, यहां के लोग, यहां के फूल-पौधे, यहां की वनस्पतियां, यहां की जलवायु सारी चीजें मिलाकर शिलांग को एक आदर्श विश्राम व पर्यटक स्थल बनाती हैं। शिलांग में पर्यटकों के लिए अच्छे होटल, खेल सुविधाएं, मछली पकड़ने, पहाड़ों पर पैदल चलने व हाईकिंग की भी सुविधाएं हैं। शिलांग शहर में और आसपास कई दर्शनीय स्थान हैं। कुछ प्रमुख पर्यटक स्थल इस प्रकार हैं जिन्हें शिलांग जाने पर अवश्य देखना चाहिए…

वाडर्स लेक

शिलांग में एक खूबसूरत सी झील है जिसे वाडर्स लेक के नाम से जाना जाता है। यह शहर के बीचोंबीच है। इस झील का पानी इतना साफ है कि अंदर से तैरती मछलियां नजर आती हैं। यहां पर नौका विहार कर सकते हैं। इससे साथ ही जुड़ा बोटैनिकल गार्डन भी अवश्य देखें। यहां पर रंगबिरंगी चिड़ियों मन को मोह लेती हैं।

लेडी हैदरी पार्क व मिनी जू

यह पार्क भी शिलांग शहर में ही है। इस पार्क का नाम अकबर हैदरी की पत्नी के नाम पर रखा गया है। बच्चों के लिए यहां पर एक मिनी जू भी है साथ ही एक खूबसूरत झरना और स्वीमिंग पूल भी। साथ ही एक रेस्तरां भी है जहां पर्यटकों के लिए शाम को कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

पोलो ग्राउंड

शिलांग में पोलो ग्राउंड अपनी एक अलग ही विशिष्टता के लिए प्रसिद्ध है। यहां पर तीर का खेल खेला जाता है। इस खेल के जरिये खासी जनजाति के लोग आज भी अपनी सांस्कृतिक धरोहर से जुड़े प्रतीत होते हैं। इस खेल के लिए लाटरी की तरह टिकट खरीदे जाते हैं और खासी आरचरी एसोसिएशन के तीरंदाज एक बांस के टार्गेट पर चार मिनट में 1500 तीर छोड़ते हैं जिसके तीर निशाने पर लगते हैं वे गिने जाते हैं और वही नंबर सट्टेबाजी में खोला जाता है। इसका जन्म प्राचीन जनजातीय खेलों से हुआ हैं।

शिलांग गोल्फ कोर्स

यह भी शिलांग शहर में है और भारत का तीसरा सबसे बड़ा और सबसे पुराना 18 होल का गोल्फ कोर्स है। इसको पूर्व का ग्लैनईगल कहा जाता है।

मेघालय स्टेट म्यूजियम

शिलांग जाने पर स्टेट म्यूजियम अवश्य देखना चाहिए क्योंकि यहां पर मेघालय राज्य के लोगों के सांस्कृतिक जीवन और मानवजातीय अध्ययन से जुड़ी वस्तुएं रखी हुई है। इस संग्रहालय के ठीक सामने सबसे पुराना सेंट कैथोलिक चर्च भी है।

शिलांग से कुछ दूरी वाले दर्शनीय स्थान

स्वीट फाल

शिलांग से आठ किलोमीटर दूर हैप्पी वैली के पास यह स्थित है। इसको देख कर ऐसा आभास होता है कि पेंसिल के आकार के एक मोटे वाटर पाईप से 200 फुट नीचे पानी गिर रहा है। यह दिनभर की आउटिंग और पिकनिक के लिए अच्छी जगह है।

शिलांग पीक

अपने नाम के अनुकूल यह पीक शिलांग से दस किलोमीटर दूर है और 1960 मीटर ऊंची है। यह चोटी एक पर्यटन स्थल भी है और हर साल बसंत के समय यहां के निवासी शिलांग के देवता की पूजा करते हैं। शाम के समय शहर की रोशनी यहां से देखने पर ऐसी लगता है मानो जमीन पर ही तारा मंडल आ गया है। साफ मौसम में इस चोटी से हिमालय की श्रंखलाएं और बांग्लादेश के मैदानी इलाके भी साफ दिखाई देते हैं।

चेरापूंजी और एलीफेंटा फाल

शिलांग जाकर अगर चेरापूंजी नहीं गए तो आपने कुछ नहीं देखा। पूरी दुनिया में सबसे अधिक बारिश यही पर होती है। यह शिलांग से 56 किलोमीटर दूर पर है। यहां जाने के लिए शिलांग से सवेरे निकलकर शाम तक घूमकर लौटा जा सकता है।

चेरापूंजी जाने वाले रास्ते में ही एलीफेंटा फाल पड़ता है। इस तरह एक दिन में यह दोनों जगह देखी जा सकती हैं। एलीफेंटा फाल शिलांग से बारह किलोमीटर दूर है। इस झरने को पास से देखने के लिए एक लकड़ी के पुल से होकर सीढियों से नीचे तक जाना होता है।

चेरापूंजी में जब आप पहुंचेंगे तो आपको वहां झरनों का शोर सुनाई देगा। इस झरने को सेवन सिस्टर फाल के नाम से जाना जाता है। चेरापूंजी में ही एक व्यू प्वाइंट है जहां से खुले मौसम में बांग्लादेश का हरा-भरा मैदानी इलाका दूर-दूर तक साफ दिखाई देता है। एक तरफ मेघालय राज्य की पहाड़ी इलाका और दूसरी तरफ बांग्ला देश का मैदानी भाग दोनों मिलाना एक मनोरम दृश्य उत्पन्न करते हैं। लेकिन यह दृश्य बेहद दुर्लभ है क्योंकि ज्यादातर यह बादलों से इतना घिरा रहता है कि आप अपने पास खड़े व्यक्ति को भी नहीं देख पाएंगें। यहां पर संतरे के बाग हैं और शुद्ध शहद भी मिलता है।

रानीकोर

यदि आप मछली पकड़ने की इच्छा रखते हैं तो रानीकोर जाएं। यह दर्शनीय स्थल शिलांग से 140 किलोमीटर दूर है।

डावकी

बोटिंग का शौक हो और प्रकृति को बिल्कुल नए अंदाज में देखना चाहते हैं तो शिलांग से 56 किमी. दूर डावकी जाएं। यह उमगोट नदी के पास स्थित है। यहां पर एक झूले वाला पुल है जिसके नीचे से डावकी नदी बहती है। यहां पर हर साल बोटिंग प्रतियोगिता भी आयोजित की जाती है।

जाकरेम के गर्म पानी के सोते

शिलांग से 64 किलोमीटर दूर जाकरेम एक ऐसी जगह है जो हेल्थ रिसांर्ट के तौर पर भी लोकप्रिय है। यहां पर गंघक के पानी का सोता है जो कई बीमारियों को दूर करने वाला माना जाता है। यह चट्टानों से घिरा एक सुंदर स्थान है।

उनियाम (बारापानी)

शिलांग से 17 किमी. दूर बहुत विशाल पानी का भंडार हैं जो एक वाटर स्पोर्ट्स कांप्लेक्स व पर्यटक केंद्र के रूप में विकसित किया गया है। यहां पर सुंदर लेक और नेहरू पार्क है। बोटिंग की भी सुविधा है। यहां पर तैरता हुआ एक रेस्तरां भी है। यहां पर वाटर स्पोर्टस जैसे रोइंग बोट, पैडल बोट, पानी का स्कूटर, स्पीड बोट जैसी विशेष सुविधाएं पर्यटकों का मन लुभाती हैं।

उपरोक्त स्थानों के अलावा घूमने के और भी कई स्थान है जैसे मावाफ्लांग सेक्रेड ग्रोव, मैरंग, आदि। शिलांग शहर में आप पोलिस बाजार, बड़ा बाजार आदि घूम सकते हैं और यहीं खरीदारी करना भी उपयुक्त होगा। बड़ा बाजार में आपको शुद्ध शहद, हाथ के बुने शाल, तीर कमान, कुछ स्थानीय मसाले, बांस से बनी वस्तुएं आदि मिल जाएंगे।

कैसे पहुंचे

कोलकाता से सप्ताह में छह दिन एलायंस एयर की उड़ान उमरोई एयरपोर्ट जाती है जो शिलांग से 35 किलोमीटर दूर है। देश के अन्य क्षेत्रों से गुवाहाटी एयरपोर्ट आया जा सकता है। यहां से शिलांग सौ किलोमीटर दूर है। गुवाहाटी तक रेलमार्ग द्वारा देश के मुख्य शहरों से यहां आया जा सकता हैं। गुवाहाटी से शिलांग जाने के लिए बस, टैक्सी और हेलीकाप्टर की सुविधा उपलब्ध है।

मौसम

यहां का मौसम साल के बारह महीनों खुशनुमा रहता है। अधिकतम तापमान अप्रैल-मई के महीने में 28 डिग्री सेल्शियस और न्यूनतम दिसंबर महीने में 2 डिग्री सेल्शियस तक पहुंच जाता है।

त्योहार

यहां के काफी लोगों ने ईसाई धर्म को स्वीकार कर लिया है इसलिए क्रिसमस बड़े जोर-शोर से मनाया जाता है। इसके अलावा दो प्रमुख जनजातीय त्योहार हैं-एक शाद सुक माइनसीम यानि खुशी का डांस जो अप्रैल महीने में बाइकिंग ग्राउंड शिलांग में तीन दिन तक मनाया जाता है। इस त्योहार में कोई धार्मिक रस्म नहीं होती और न ही कोई बलि चढ़ाई जाती है। दूसरा है नोंगक्रेम डांस जो खासी जनजाति का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। पांच दिन तक चलने वाले इस त्योहार में बकरे की बलि चढ़ाई जाती है। यह शिलांग से पंद्रह किलोमीटर दूर मनाया जाता है। इसके अलावा मेघालय टूरिज्म की ओर से पर्यटकों के लिए शिलांग ऑटम फेस्टिवल नवंबर माह में हर साल आयोजित किया जाता है। शिलांग व उसके आस-पास की जगहों को देखने के लिए टैक्सी, पैकेज दूर आदि उपलब्ध हैं।

हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…