जीएसटी अधिनियम में बदलाव की संसदीय समिति की सिफारिश सरकार ने मानी..
नई दिल्ली, 23 दिसंबर । सरकार वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) अधिनियम और यूपीआई (यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस) जैसे सार्वजनिक मंचों में बदलाव लाने की दिशा में काम कर रही है ताकि कंपनियां आकार में विस्तार के लिए जीएसटी नेटवर्क डेटा का इस्तेमाल कर सकें।
संसद की वित्त पर स्थायी समिति के प्रमुख जयंत सिन्हा ने बृहस्पतिवार को उद्योग मंडल एसोचैम के एक कार्यक्रम में कहा, “यूपीआई और आधार जैसे सार्वजनिक मंच काफी अहम हैं। इसके बावजूद सार्वजनिक मंचों के संदर्भ में अभी काफी कुछ करना बाकी है।”
उन्होंने कहा कि जब फेक्टर विनियमन संशोधन विधेयक को स्थायी समिति के पास लाया गया तो सरकार ‘फेक्टरिंग’ को अधिक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के लिए खोलने और उन्हें इसमें भागीदार बनने के लिए प्रोत्साहन देना चाह रही थी।
सिन्हा ने कहा, “लेकिन ऐसा करते समय भी हम कुछ अहम मंच एवं डेटा संबंधित मुद्दों पर ध्यान नहीं दे रहे थे। इसी वजह से हमने सुझाव दिया कि जीएसटी वाली किसी भी चीज को अपने-आप ट्रेड्स (ट्रेड रिसिएवल डिस्काउंटिंग सिस्टम) मंच को भी भेजा जाना चाहिए। इसका इस्तेमाल प्राप्य राशियों के वित्तपोषण के लिए किया जा सकता है।”
उन्होंने कहा कि संसदीय समिति ने सरकार को इस बारे में जो सुझाव दिया था उसे स्वीकार कर लिया गया है। हालांकि इस बारे में किए जाने वाले किसी बदलाव को कानूनी रूप देना होगा क्योंकि जीएसटी नेटवर्क के डेटा का इस्तेमाल किसी भी अन्य उद्देश्य के लिए करने पर रोक है।
ऐसी स्थिति में केंद्रीय जीएसटी अधिनियम के अलावा राज्य जीएसटी अधिनियमों में भी संशोधन करने होंगे ताकि जीएसटी नेटवर्क की रसीदें अपने-आप ही ट्रेड्स या अन्य मंचों पर चली जाएं। ट्रेड्स मंच छोटी एवं मझोली इकाइयों को कॉर्पोरेट खरीद से जुड़ी रसीदें पर रियायत देने की सुविधा देता है।
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट