यह कैसी सेवा है…
आज सभी मनुष्य अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर रहा है। और अपने दिनचर्या के कार्यों में लगा हुआ है। वह चाहे व्यापारी हो, सामाजिक आदमी हो, न्यायिक हो, राजनीतिक हो, सभी अपने – अपने कार्य में, अपने कर्तव्यों में लीन है। हम सभी अपने आने वाली पीढ़ी को अच्छी शिक्षा दे रहे हैं। बहुत ही खुशी की बात है। फिर भी हम सभी अपने पिता होने का, अपने मां होने का, अपने बड़े भाई होने का, बहन होने का, कर्तव्य नहीं निभाते। आज अपने बेटे बेटी को अच्छे से पढ़ाकर अच्छी सी जॉब दिला देते हैं। लेकिन जैसे ही बेटा उस कुर्सी पर बैठता है। अपने कर्तव्यों को भूल जाता है। उसे लगता है कि, पूरी दुनिया सोने की खान है। और इसमें से जितना चाहे उतना सोना खनकर निकाला जा सकता है। और लगातार अपने कर्तव्यों को भूलकर, अपने दिशा को मोड़ देता है। जिसका परिणाम यह होता है कि, जीवन का अंतिम क्षण बड़ा ही दुखदाई होता है। और जीवन के अंत में सोचता है कि, मैंने गलत किया है। हमें ऐसा नहीं करना चाहिए था। सोचकर दुःखी मन से बैठा है। फिर भी कुछ नहीं कर पा रहा है। उसे अपने किए गए पर पश्चाताप है। फिर भी एक पिता ने अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए। वैचारिक शिक्षा नहीं दिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना ही भूल गया। बड़ों का सम्मान करना भूल गया। हम जैसे हैं उसी तरह समाज की, देश की सेवा कर सकते हैं। अगर हम अनपढ़ हैं, तब पर भी कर सकते हैं। लेकिन हमारे अंदर अच्छी भावनाएं होनी चाहिए। समाज की, राष्ट्र की, भलाई की भावनाएं होनी चाहिए। पुत्र गलत करता है तो पिता का यह प्रथम धर्म है कि अपने पुत्र एवं पुत्री को समझाएं। यह तरीका गलत है पिता का प्रथम कर्तव्य है, बच्चों को सही राह दिखाएं। लेकिन जैसे ही पिता बच्चों को गलत राह दिखाने लगता है। जिसका परिणाम अंततः बड़ा ही दुखदाई होता है। सरकारी विभागों में जितने भी पोस्ट हैं। ऊपर से नीचे तक, वह अधिकारी किसी का भाई, किसी का बेटा किसी की मां, किसी की पत्नी, किसी की बहन है। इसमें सदैव बड़ों का कर्तव्य होना चाहिए कि, वह अच्छी सीख दे। जब एक पुलिस वाला रिश्वत लेता है। तो सोचता है, कि चलो आज कमाई हो गई। लेकिन वह यह नहीं सोचता कि, सामने वाले व्यक्ति ने इस कागज की पुड़िया में अपने दुःख, दर्द, कष्ट के आंसुओं को समेट कर दिया है। जो हमारे लिए घातक है। जिसको मैं घर में ला कर रखूंगा। तो वह मेरे पूरे जीवन को नाश कर देगा। वह इस बात को सोचता नहीं है। समझता नहीं है। जब देश या राज्य के बड़े से बड़े राजनेता आते हैं। जिस जगह से गुजरते हैं। उस जगह की सड़कें रातों-रात बनने लगती है। रातो रात बनकर तैयार हो जाती है। वहां से कोई राजनेता गुजरता है। तो उसे लगता है कि, रोड तो बहुत ही अच्छी हैं। लेकिन वह तो रात बनाई गई। प्रोटोकॉल का मतलब यह होता है क्या। वाह रे इंसान कितना बदल गया इंसान रातों रात सड़क तैयार करने लगता है। रातो – रात, पेड़ – पौधे लगाने लगता है। रातों – रात मरम्मत करने लगता है। यह इंसान का कर्म है क्या। लेकिन उस मनुष्य को ऊपर वाले से भी डर नहीं है। ऊपर वाले से भी नहीं डर रहा है कि, मैं क्या कर रहा हूं। मैं क्या गलत कर रहा हूं। मैं इतना दिन कहां था। मैं इतना दिन कहां सोया था। लेकिन जब जीवन का अंत आता हैं, तो वह अपने किए गए गलतियों का पश्चाताप करता है। और लेकिन कुछ नहीं कर पाता। क्योंकि उसके गलतियों का दंड ईश्वर अवश्य प्रदान करता है। इसलिए हर एक मनुष्य समाज को जितना हो सके अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना चाहिए। और समाज को सुंदर एवं संगठित बनाने का प्रयत्न करना चाहिए।
लेखनी
शशि शंकर पटेल
( यू.एस.एस.फाउंडेशन सचिव )
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…