लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों से प्रधान न्यायाधीश के मिलने संबंधी झूठे ट्वीट से न्यायालय अप्रसन्न
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने एक मीडिया संगठन द्वारा किए एक ट्वीट पर शुक्रवार को अप्रसन्नता जतायी जिसमें गलत दावा किया गया था कि प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण ने लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों के परिजनों से मुलाकात की थी। इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि वह मीडिया और उनकी स्वतंत्रता का सम्मान करता है लेकिन ऐसा करना
“ बिल्कुल उचित नहीं है।’’ न्यायालय लखीमपुर खीरी हिंसा मामले की सुनवाई कर रहा था और उसने ट्वीट को “बहुत दुर्भाग्यपूर्ण” करार देते हुए कहा कि मीडिया को तथ्यों की जांच करनी चाहिए। प्रधान न्यायाधीश रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा, ‘‘हमें यह देखकर अफसोस है कि कोई व्यक्ति अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की हद को पार कर रहा है। उन्हें तथ्यों की जांच करनी चाहिए। ये सभी गलत प्रस्तुतियां हैं जो की जा रही हैं।’’ यह मुद्दा तब सामने आया जब एक वकील ने पीठ से कहा कि बृहस्पतिवार को एक मीडिया संगठन ने एक ट्वीट किया था जिसमें कहा गया था कि प्रधान
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न्यायाधीश ने लखीमपुर खीरी घटना के पीड़ितों के परिजनों से मुलाकात की थी। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा, ‘‘ हम सभी गैर-जिम्मेदार ट्वीट में निशाने पर हैं। मैंने कुछ ट्वीट अपने बारे में भी देखा है।’’ प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “उन्हें कुछ समझ होनी चाहिए क्योंकि मैं अदालत में था। ऐसे में मैं लखनऊ कैसे जा सकता हूं और परिवार से मिल सकता हूं.. इसे वहीं छोड़ दें। हमें इन बातों से परेशान नहीं होना चाहिए। सार्वजनिक जीवन में। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि अदालत को उम्मीद है कि उन्हें यह बताने के लिए एक प्रामाणिक और स्वैच्छिक रिपोर्ट पेश करनी चाहिए कि “हमने
यही किया है।’’ न्यायमूर्ति कोहली ने कहा, ‘‘हम मीडिया और उनकी स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं लेकिन यह इसे पार करने का तरीका नहीं है। यह बिल्कुल उचित नहीं है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘यह सार्वजनिक जीवन का हिस्सा है। इसे रहने दें।’’ पीठ ने कहा कि लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से वह संतुष्ट नहीं है। लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में तीन अक्टूबर को आठ लोगों की मौत हो गई थी। पीठ ने साल्वे से कहा कि वह शीर्षतम पुलिस अधिकारी को सूचित करें कि मामले से जुड़े सबूत और अन्य प्रासंगिक सामग्री नष्ट नहीं की जाए।
मामले में अगली सुनवाई 20 अक्टूबर को होगी।
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