इन पांच टिप्स के जरिए बचाएं हैकर्स से अपना अकाउंट…
इंटरनेट अब हमारी जिन्दगी का एक बहुत बड़ा हिस्सा बन चुका है। इसका इस्तेमाल हम कम्युनिकेशन के लिए, जानकारी ढूंढने के लिए और पेमेंट करने के लिए करते हैं। लेकिन, इंटरनेट एक ऐसा पहलू है, जहां मौजूद आपकी सेंसिटिव जानकारी का फायदा उठा कर आपको नुकसान पहुंचा सकते हैं। हाल ही में मुंबई के एक व्यापारी के ई-मेल अकाउंट पर हैकर्स ने हमला कर दिया, जिसमें उसे 23 लाख का घाटा उठाना पड़ा। आपके साथ ऐसा न हो और हैकर्स आपको निशाना न बना पाएं, उसके लिए इन 5 टिप्स को फॉलो करें…
स्पैम ईमेल
सभी इंटरनेट यूजर्स ई-मेल को काम और पर्सनल चीजों के लिए इस्तेमाल करते हैं। इसलिए किसी व्यक्ति से सम्पर्क साधने और लुभावने स्कीम्स देने के लिए यह सबसे आसान तरीका है। सबसे ज्यादा फ्रॉड ई-मेल लॉटरी जीतने या किसी पैसे वाले राजकुमार के होते हैं जो आपके जरिये पैसा इस्तेमाल करना चाहते हैं। या फिर ऐसे अनजान लोग जो आपके नाम जायदाद छोड़ गए हों भी आपको फंसा सकते हैं। इस तरह के किसी भी ई-मेल को न खोलें। इसके अलावा अनजान या जान-पहचान के किसी व्यक्ति की तरफ से आए ई-मेल के अटैचमेंट में स्पाईवेयर या वाइरस भी हो सकते हैं। इस तरह का कोई भी संदेहास्पद ईमेल न खोलें और न ही अटैचमेंट डाउनलोड करें। किसी अनजान सेंडर को अपनी जानकारी भी न भेजें।
नकली वेबसाइट/ऐप्स
नकली वेबसाइट्स और संदिग्ध स्मार्टफोन/टैबलेट ऐप्स भी आपको फंसा सकती हैं। कई बैंकों की वेबसाइट्स की हूबहू नकल तैयार कर लोगों को बेवकूफ बनाया जाता है। लोग इसमें उलझ जाते हैं और अपना लॉग इन आईडी और पासवर्ड दे बैठते हैं। अगर आप अपनी ये जानकारी वहां दे देते हैं तो यह नकली वेबसाइट बनाने वाला आसानी से आपका अकाउंट ऐक्सेस कर लेता है। ऐसी नकली वेबसाइट पहचानने का सबसे आसान तरीका है ब्राउजर अड्रेस बार देखने का। सुनिश्चित करें कि वेबसाइट के अड्रेस से पहले एचटीटीपीएसः लगा हो। ऐप्स के मामले में, सबसे पहले डिवेलपर का नाम चेक करें (आमतौर पर ऐप स्टोर में यह ऐप के नाम के नीचे लिखा होता है) और किसी भी बैंकिंग ऐप को इन्स्टॉल करने से पहले उसके रिव्यू पढ़ें। सिर्फ ऑफिशल ऐप स्टोर्स से ही बैंकिंग ऐप डाउनलोड करें। इसका मतलब है कि यह वेबसाइट सिक्यॉर सर्टिफिकेट का इस्तेमाल करती है। सभी बैंकों की वेबसाइट ऐसा ही सर्टिफिकेट इस्तेमाल करती हैं।
ज्यादा ही लुभावने ऐड
अगर आप किसी प्रॉडक्ट को बेहद कम कीमत पर बिकते देखें, तो हो सकता है कि यह कोई स्कैम हो। ऑनलाइन आपको डिस्काउंट मिलते हैं, लेकिन अगर किसी चीज की कीमत रीटेल प्राइस से 80 प्रतिशत से 90 प्रतिशत तक कम नजर आए तो सावधान हो जाएं। आमतौर पर इस तरह के डील्स डालने वाले लोग आगे से पैसा मांगते हैं। ध्यान रखें कि ये प्रॉडक्ट चुराए हुए या इम्पोर्टेड भी हो सकते हैं। अगर आपको कोई जेनुइन प्रॉडक्ट मिल भी जाए तो विक्रेता के आईडी प्रूफ की कॉपी जरूर लें।
की लॉगर
की लॉगर एक कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर है जिसे इन्स्टॉल करने से आप कीबोर्ड पर दबाए जाने वाले हर बटन को रिकॉर्ड कर सकते हैं। एक फ्रॉड अलग-अलग वेबसाइट्स पर आपके लॉगइन डीटेल्स इन की प्रेस के लॉग से हासिल कर सकता है। पब्लिक इंटरनेट कैफे इस तरह के की लॉगर इन्स्टॉल करने के लिए एक आसान टारगेट हैं जहां भोले-भाले यूजर फंस जाते हैं। यह जानने का कोई तरीका नहीं है, कि किसी पब्लिक सिस्टम पर की लॉगर है या नहीं। इसलिए सार्वजनिक कम्प्यूटरों पर लॉग इन डीटेल डालने के लिए वर्चुअल की-बोर्ड्स का इस्तेमाल करें। विंडोज 8 में ऑन-स्क्रीन की बोर्ड्स भी इस तरह के फ्रॉड से बचने का एक तरीका हो सकते हैं। स्टार्ट मेन्यु-ऑल प्रोग्राम्स-अक्सेसरीज-ईज ऑफ ऐक्सेस-ऑन-स्क्रीन कीबोर्ड का इस्तेमाल किया जा सकता है।
फोन पर क्रेडिट कार्ड डीटेल्स
बैंक्स द्वारा इस तरह की धोखाधड़ी से बचाने के लिए कई विज्ञापन निकाले जाते हैं। आपके बैंक से कभी भी कोई आपको फोन कर आपके क्रेडिट कार्ड डीटेल्स नहीं पूछेगा। बैंक के नाम पर आने वाला कोई भी कोई भी कॉल जो बैंक डीटेल्स मांगे, खतरे की घंटी है। क्रेडिट कार्ड या नेटबैंकिंग से संबंधित जानकारी फोन पर किसी से भी कभी शेयर न करें। चाहे कॉलर आपके बारे में सबकुछ जानता ही क्यों न हो।
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…