*एक पैर के बूते बल्लेबाजी में दम दिखाएंगे राजा बाबू*

*एक पैर के बूते बल्लेबाजी में दम दिखाएंगे राजा बाबू*

 

*गाजियाबाद।* नोएडा में आयोजित होने वाले विश्व दिव्यांग टी-10 क्रिकेट टूर्नामेंट में गाजियाबाद के राजा बाबू को एसए स्पो‌र्ट्स क्लब उत्तर प्रदेश की टीम में चुना गया है। वह यूपी दिव्यांग क्रिकेट टीम के कप्तान रह चुके हैं। सात साल की उम्र में रेल हादसे में उनका एक पैर कट गया था। एक पैर के बूते मजबूत इरादे के साथ दिव्यांग क्रिकेट टीम में शानदार बल्लेबाजी कर खुद को स्थापित कर चुके हैं।

नोएडा क्रिकेट स्टेडियम में 11 से 18 मार्च तक दुनिया का पहला दिव्यांग व‌र्ल्ड टी-10 क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजित होगा। इसमें 28 राज्यों की दिव्यांग क्रिकेट टीमें शामिल होंगी। टूर्नामेंट में गाजियाबाद के राजा बाबू भी बल्लेबाजी का दम दिखाएंगे। वह उत्तर प्रदेश की एसए स्पो‌र्ट्स क्लब की ओर से बतौर उप कप्तान शामिल होंगे। उन्होंने बताया कि झारखंड की टीम के साथ उनके क्लब का मैच 15 मार्च को होगा।

जालौन निवासी राजाबाबू के पिता रेलवे में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे। वर्ष 1997 में ट्रेन की चपेट में आने से एक पैर कट गया। हमउम्र दोस्तों के साथ एक पैर से ही क्रिकेट खेलना शुरू किया। क्रिकेट के लिए उनका जुनून बढ़ा, लेकिन स्वजन व अन्य लोगों ने दिव्यांग होने का हवाला देते हुए क्रिकेट न खेलने की सलाह दी। शुरू में वह सामान्य क्रिकेट खेले। बिजनौर में एक टूर्नामेंट के दौरान उनकी मुलाकात यूपी दिव्यांग स्पो‌र्ट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अमित शर्मा से हुई, जो खुद भी दिव्यांग हैं। उन्होंने राजा बाबू को दिव्यांग श्रेणी क्रिकेट में खेलने के लिए कहा। इसके बाद उन्होंने दिव्यांग क्रिकेट में पदार्पण किया। वह यूपी टीम के कप्तान रह चुके हैं और इंडियन डिसेबल्ड प्रीमियर लीग में खेल चुके हैं।

दिव्यांग क्रिकेटर राजा बाबू ने खेलने के लिए काफी संघर्ष किया। कानपुर में अखबार बेचकर गुजारा किया। नोएडा की एक जूता कंपनी में दैनिक भत्ते के रूप में 200 रुपये पर काम किया। रोजगार और खेल के लिए वह कानपुर छोड़ गाजियाबाद आ गए, लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद हालात जस के तस रहे। क्रिकेट में उनके प्रदर्शन ने मशहूर तो किया, लेकिन आजीविका के लिए कोई स्थायी काम नहीं। उत्तर प्रदेश सरकार ने विश्व दिव्यांग दिवस पर सम्मानित किया, बिहार सरकार ने अजातशत्रु पुरस्कार से नवाजा। राजा बाबू ने बताया कि सर्टिफिकेट और मेडल के अलावा उन्हें कोई आर्थिक मदद नहीं मिली। वह सम्मान समारोह में अपने खर्च पर जाते हैं और प्रमाण पत्र लेकर लौट आते हैं। उनका कहना है कि दिव्यांग क्रिकेट को के साथ ही खिलाड़ियों को बढ़ावा मिले।