गुमनामी के अंधेरे में विलुप्त होता महाकवि शिशुपाल सिंह ‘शिशु’ जी का नाम…

गुमनामी के अंधेरे में विलुप्त होता महाकवि शिशुपाल सिंह ‘शिशु’ जी का नाम…

इटावा/उत्तर प्रदेश-: आज महाकवि शीशपाल सिंह ‘शिशु’ जी की पुण्यतिथि है उदी के क्षत्रिय परिवार श्री बिहारी सिंह भदौरिया के पुत्र के रूप में 9 सितंबर 1911 में जन्मे इस कालजयी रचनाकार और शिक्षक ने कवि सम्मेलनों को लोकप्रिय स्वरूप प्रदान करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे काव्य मंचों के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि रहे।
हिंदी मंचों पर कविता को स्थापित करने वालों में शिशुपाल सिंह ‘शिशु’ का नाम लिया जाता है शिशु जी जन कवि थे। वे इटावा के पहले ऐसे कवि थे जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली। उनकी कविताओं की लगभग 10 पुस्तकें दक्षिण भारत से प्रकाशित हुई। इटावा जनपद में पहली बार राष्ट्रपति पुरस्कार उन्हें 1962 में मिला विशेष बात यह है कि यह सम्मान इसी वर्ष से शुरू हुआ था। यह दुर्भाग्यपूर्ण है। कि कविता को बाजार मानकर व्यवसाय करने निकले लोगों में बहुत ऐसे भी हैं जो अपने इन नींव के प्रस्तरखण्डों से बिल्कुल अपरिचित हैं। यह भी पीड़ादायक सच है कि हमारे जनपद ने भी शिशुजी के नाम पर एक मार्ग अथवा विद्यालय का नाम भी न जुड़ सका। शिशुजी के समृद्ध रचना संसार से कोई अंश किसी पाठयक्रम का अंग न बन सका इतने के बाबजूद शिशुजी की कविताएं आज भी लोगों के स्मृतिकोष में सुरक्षित हैं। उनकी मरघट औऱ पनघट कविता ने तो लोकप्रियता के उच्चातउच्च सोपानों को स्पर्श किया। उनकी लगभग दर्जन भर कृतियां हैदराबाद से प्रकाशित हुईं। 27 अगस्त1964 को सर्पदंश से शिशुजी इस असार संसार को त्याग गये।

पत्रकार नितेश प्रताप सिंह की रिपोर्ट…