*न घर है और न घराना मैं क्या करुँ बाबा*……. *बदल गया है ज़माना मैं क्या करुँ बाबा*

*न घर है और न घराना मैं क्या करुँ बाबा*…….
*बदल गया है ज़माना मैं क्या करुँ बाबा*

*न घर है और न घराना मैं क्या करुँ बाबा*…….
*बदल गया है ज़माना मैं क्या करुँ बाबा*

*अन्जुमन ग़ुन्चा ए क़ासिमया ने शायर अनवार अब्बास का लिखा नौहा पढ़ कर किया मातम*

*घरों व अज़ाखानों में पाँचवीं मोहर्रम पर पुरुषों व महिलाओं की हुई मजलिस में पढ़े गए ग़मगीन मसायब*

*प्रयागराज।* माहे मोहर्रम की पाँचवीं को एक बार फिर से फर्शे अज़ा बिछा कर अज़ाखानों व इमामबाड़ों मे मजलिसें बरपा हुईं।अलग अलग मजलिसों में मुख्तलिफ ओलमाओं ने जंगे करबला की दास्ताँ सुनाई।दरियाबाद इमामबाड़े में मौलाना आमिरुर रिज़वी ने हज़रत इमाम हुसैन के असहाबो अक़रबा की शहादत का ग़मज़दा वाक़ेया सुनाया तो आँखों से अश्कों की धारा बहने लगी।इमामबाड़ा सफदर अली बेग में अशरे की पाँचवीं मजलिस मे ओलमा की तक़रीर के बाद शहर की ख्याती प्राप्त अन्जुमन ग़ुन्चा ए क़ासिमया के नौहाख्वान शादाब मसीह उज़्ज़माँ ने शायरे अहलेबैत अनवार अब्बास का लिखा ग़मगीन नौहा पढ़ा।मजलिस से पहले मिर्ज़ा बाबर व मिर्ज़ा इक़बाल हुसैन ने मर्सियाख्वानी में करबला के बहत्तर शहीदों पर ढ़ाए गए ज़ुल्म ओ सितम को मार्मिक अन्दाज़ मे पढ़ा तो अज़ादार ए मज़लूम की आँखे अश्कबार हो गईं।

*इमामबाड़ा मुस्तफा हुसैन रौशन बाग़ से नहीं उठेगा छै मोहर्रम का झूला व अलम का जुलूस*

रोशन बाग़ मन्सूर पार्क के पास से इमामबाड़ा मुस्तफा हुसैन से छठवीं मोहर्रम पर उठने वाला झूला अलम व ताबूत का जुलूस इस बार नहीं निकाला जाएगा। अन्जुमन ग़चन्चा ए क़ासिमया के प्रवक्ता सै०मो०अस्करी के मुताबिक़ शहर का पहला जुलूस जो इमाबाड़ा मुस्तफा हुसैन से निकाला जाता था वह इस वर्ष कोरोना महामारी और सरकारी की तरफ से जुलूस पर लगी रोक के कारण नहीं निकाला जाएगा।झूला अलम जुलूस के आयोजक खुशनूद रज़ा रिज़वी ने जुलूस न निकाले जाने की जानकारी सोशल मीडिया के माध्यम से अज़ादारों को दे दी।अस्करी ने बताया की पूर्व वर्षों में छठवीं पर उठने वाले जुलूस में दरियाबाद की मातमी अन्जुमन मुहाफिज़े अज़ा क़दीम के नौहाख्वान ग़ुलाम अब्बास नक़वी नौहा पढ़ते हुए जुलूस की अगुवाई करते थे और बुज़ुर्ग ज़ाकिरे अहलेबैत ज़ायर हुसैन साहब की तक़रीर होती थी जिसे कुछ वर्षों से रज़ा अब्बास ज़ैदी खिताब करते थे।जुलूस रौशन बाग़ से बख्शी बाज़ार मस्जिद क़ाज़ी साहब से होकर देर रात इमामबाड़ा फूटा दायरा पर समाप्त होता था।जुलूस में दो विशाल अलम के साथ हज़रत अली असग़र का झूला,ताबूत हज़रत अली अकबर की शबीह ज़ियारत को निकाली जाती थी जो इस वर्ष इमामबाड़े में सजा कर रख दी गई है।

*पत्रकार इरफान खान की रिपोर्ट*