“मैं” से मुक्त कराते हैं सच्चे गुरु- आचार्य वृजकिशोर शास्त्री जी किशोरी श्याम मन्दिर गोवर्धन…

“मैं” से मुक्त कराते हैं सच्चे गुरु- आचार्य वृजकिशोर शास्त्री जी किशोरी श्याम मन्दिर गोवर्धन…

सद्गुरु व्यक्ति को परमात्मा तक पहुँचने का मार्ग दिखाते है। लेकिन यह मार्ग उन्ही को दिखाई दे सकता है,जिनका ह्रदय कलुषरहित हो,जो अनासक्त हो। जो सद्गुरु से मिलने के बाद भी अपने “मैं” को साथ रखते है,वे अपने परमात्मा के बीच एक दीवार बना लेते हैं सद्गुरु की महिमा में यह कहा जाता है कि उनके एक दर्शन मात्र से व्यक्ति में सारे आध्यात्मिक गुण जग जाते हैं। हालाँकि ये ऐसे व्यक्ति में जगते है जिसका मन शुद्ध दोषरहित हो। उस व्यक्ति का मन कितना सुन्दर होगा,जो मात्र सद्गुरु के दर्शन श्री गुरु की प्रज्ञा गुरु की आभा तथा गुरु का वैराग्य प्राप्त कर लेता हो यह सभी गुण सजगता पूर्वक खोज तक पहुंच जाते हैं जिसका चित्त शुद्ध होता है ऐसा व्यक्ति सद्गुरु से मिलते समय अपने चित और हृदय के किवाड़ पूर्णतया खोलकर रखता है अज्ञान अहंकार ईर्ष्या कि जो इतनी मोटी दीवार है अपने निर्मित कर रखी है इनको हटा दे सद्गुरु और अपने मन मैं स्वय ही दीवार निर्मित करने की बजह से आप सद्गुरु मिलने के बावजूद बी भटकते रहते हो सद्गुरु मिलने के बाद भी अपना मन बेचैन और और अशांत रहता है इसका केवल इतना ही अर्थ है कि अपने अभी सद्गुरु के साथ अंतरिक संबंध स्थापित ही नहीं किया है सद्गुरु का अर्थ है ज्ञान और विवेक जिसके पास विवेक है उसका मन करें भी संसार से आसकत नहीं हो सकता उसका मन हर तरह की इच्छाओं और घृणाओं से मुक्त रहता है वह लोगों में पक्षपात नहीं करता आप अगर पक्षपात करते हैं तो इसका अर्थ है कि आपने आध्यात्मिक गुणों का प्रकाश कैसे हो सकता है आपके संसार का आरंभ आप से ही होता है मैं हूं इस अज्ञान के साथ ही संसार का आरंभ होता है संसार में में, की दृष्टि के अंतर्गत और कुछ नहीं है दिन के 24 घंटे में आप कितनी बार और मेरा कहते हो जिस क्षण व्यक्ति इस में से मुक्त होता है वही क्षण मोक्ष का क्षण होता है एक सद्गुरु ही जीवन में आई इस मैं और मेरे की समस्या का समाधान देते है कई बार जीवन में ऐसी समस्या उत्पन्न होती है जब आपका मन तनाव से भ्रमित हो जाता है और कोई हल नहीं मिल पाता परिस्थितियों में सद्गुरु ही तनावग्रस्त चित को सहारा देते हैं जिसका चित सद्गुरु से जुड़ा है वही मुसीबत में सद्गुरु तक पहुंच पाता है जो कभी सद्गुरु से जुड़ा ही नहीं वह विपत्ति के समय केवल रोता रहता है जिससे सहारा मिले सके उन सद्गुरु को पुकारना उसे आता ही नहीं यह कैसी विचित्र माया है की आदमी ऐसी परिस्थितियों के चंगुल में फंस जाता है और उसे अपने गुरु के अंतरिक मदद लेने का ख्याल ही नहीं आता जिसने अपना जीवन ईश्वर को समरप्रित कर दिया हो केवल वही अपने आप को सहारा देकर प्रभु की शरण में ला सकता है जब हमारा चित संसार रूपी बन में भ्रमित हो जाता है तब सद्गुरु ही हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं जब बुद्धि भ्रमित हो जाती हैं तब सद्गुरु ही हमें रहा दिखा सकते हैं सद्गुरु ही हमारे कल्याण की चिंता करते हैं जो हमारा हाथ थामकर तूफानी सागर में प्रेम पूर्वक हमारी पत बार संभालते हैं गुरु के दिखाए मार्ग पर निश्चय पूर्वक चलते जाओ तो वह शुभ घड़ी आपकी जीवन में भी अवश्य आएगी जब आपने वास्तविक स्वरूप को प्राप्त होंगे घर बनाना पैसा कमाना यही केवल आपके जीवन का लक्ष्य नहीं है मानव जीवन प्राप्त होने के बावजूद अगर आप अपना जितने में समर्थ नहीं हो पाते तो आप मनुष्य कहलाने लायक नहीं है सुमन का मालिक बनने का कला प्राप्त करना यह कार्य केवल साधुओं तक ही सीमित नहीं है यह तो संपूर्ण मानव जाति का लक्ष्य होना चाहिए सभी समस्याओं की जड़ आपका मन अनियंत्रित मन से बड़ा शत्रु और कोई नहीं यदि संबुद्ध गुरु मिलने के बावजूद आप ईर्ष्या क्रोध और छल से अज्ञानी बने रहते हैं तो यह महान दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है जब आप अपने चित के द्वार ही बंद करके बैठ जाओगी तो गुरु क्या कर सकता है गुरु तो उन शिष्यो से मिलने को तरसता हे जो अपनी साधना बिना किसी रूकावट के करते हैं गुरु को कुछ कहने की भी आवश्यकता नहीं पढ़नी चाहिए शिष्य तो वही जो गुरु के निर्देश संकेत उनके भाव समझने में सक्षम हो

पत्रकार अमित गोस्वामी की रिपोर्ट…