फिलहाल विकास को भूल जाए आम आदमी…
-राकेश अचल-
देश में आम आदमी के पास दो ही अधिकार है। पहला कि अपना अमूल्य वोट सस्ते में दे और दूसरा बीती ताहि बिसार दे, क्योंकि यदि वोट नहीं देगा तो भी मारा जाएगा और यदि बीती को बिसारेगा नहीं तो भी चैन से नहीं जी पायेगा। हाल के पांच राज्यों के चुनावों के बाद केवल पांच राज्यों का आम आदमी ही नहीं बल्कि पूरे देश का आम आदमी विकास की बात भूल जाये तो बेहतर है, क्योंकि पूरा देश आम चुनावों की तैयारियों में भिड़ गया है। अब आम आदमी फर्स्ट नहीं, बल्कि चुनाव फर्स्ट हो गया है।
केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा तो वैसे भी पूरे 365 चुनावी मोड़ में रहती है। विकास तो जब-तब उसकी प्राथमिकता में जगह बना पाता है। भाजपा का नारा ही सबका साथ, सबका विकास है इसलिए उसे दूसरे दलों से कहीं ज्यादा मेहनत करना पड़ती है। भाजपा के सामने किसी भी चुनाव में नेता का संकट नहीं ह। पिछले एक दशक से स्थानीय निकाय के चुनाव से लेकर संसद तक का चुनाव एकमेव नेता के नाम पर लड़ा, जीता और हारा जाता है। भाजपा की तारीफ़ करना पड़ेगी की उसने जीत का सेहरा तो अपने नेता के सर पर बाँधा किन्तु हार का ठीकरा कभी नेता के सिर पर नहीं फोड़ा। किसी दूसरे राजनीतिक दल में अपने नेता के प्रति ऐसी घनघोर आस्था मैंने हाल के दिनों में नहीं देखी।
भाजपा मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के चुनावों से फारिग होने के तुरंत बाद आम चुनावों की तैयारियों में जुट गयी, जबकि विपक्ष अभी तक सीटों के बंटवारे की समस्या से ही जूझ रहा है जबकि उसे भाजपा से जूझना चाहिए था। भाजपा के नेता एक तरफ ईसाइयों और सिखों को मनाने के अभियान में जुटे हैं तो दूसरी तरफ कुछ नेता ओडिशा, बंगाल और तमिलनाडु की तरफ अभियान पर निकल गए हैं। भाजपा के नेताओं के पांव में चक्कर और मुंह में घी-शक़्कर शुरू से है। यही भाजपा की सतत कामयाबी का राज भी है। भाजपा इन तीनों राज्यों से कम से कम 31 लोकसभा सीटें हासिल करना चाहती है।
भाजपा अपने आप में ईवीएम है। भाजपा का हर कार्यकर्ता और नेता इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन कीही भांति वोट निगलने और उगलने के अभ्यास में लगा रहता है। उसे भारत के बिखरने या जोड़ने की ज्यादा फ़िक्र नहीं है। भारत को जोड़ने का जिम्मा भाजपा ने कांग्रेस को दे दिया है। भारत जोड़ने की कोशिश कांग्रेस करती है और भारत जुड़ जाता है भाजपा के साथ। यानि कांग्रेस का हर कदम उलटा पड़ रहा है। कांग्रेस को कोई टोटका करना चाहिए इस उलटबांसी के लिए। विपक्ष को शायद नहीं मालूम की भारत जोड़ने के लिए पहले विपक्ष को फेविकॉल के मजबूत जोड़ की तरह आपस में जुड़ना पडेगा।
आपको ध्यान में रखना चाहिए कि भाजपा अपने लक्ष्यों के प्रति बहुत स्पष्ट है। भाजपा नेहरू जी से इत्तफाक नहीं रखती तो नहीं रखती। इसके लिए उसे कोई पश्चाताप भी नहीं है। भाजपा ने पहले नेहरू से मुकाबला किया, नहीं कर पायी। फिर इंदिरा गांधी से मुकाबला किया, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। लगातार नाकामियों के बावजूद भाजपा ने नेहरू-गांधी से लड़ना नहीं छोड़ा। अब भाजपा राजीव गाँधी से लड़ने के लिए आगामी लोकसभा में 400 के पार जाना चाहती है। कांग्रेस में राहुल गांधी के पिताश्री राजीव गांधी ये लक्ष्य हासिल कर पाए थे। उन्हें ये हासिल एक बलिदान के बाद हुआ था, किन्तु भाजपा बिना किसी बलिदान के ये लक्ष्य हासिल करना चाहती है।
भाजपा अपने अनुभवों से सीखती है। भाजपा हाईकमान ने देख और अनुभव कर लिया है कि ध्वनिमत से संसद चलने में कामयाबी मिलने के बावजूद नागपुर के एजेंडे पर द्रुत गति से और निर्णायक काम नहीं हो पा रहा है। इसके लिए कम से कम 400 सीटें हासिल करना ही होंगी। भाजपा के सामने लक्ष्य बड़ा है तो तैयारी भी बड़ी है, जबकि कांग्रेस का ऐसा कोई बड़ा लक्ष्य नहीं है। कांग्रेस का लक्ष्य जैसे भी हो भाजपा को सत्ता से हटाने का है। भाजपा अकेले कांग्रेस से हट नहीं रही, इसलिए कांग्रेस विपक्ष के अनेक दलों के सहयोग की जरूरत पड़ रही है। गठबंधन कांग्रेस के लिए जरूरी भी है और मजबूरी भी, जबकि भाजपा के लिए गठबंधन न जरूरी है और न मजबूरी भी। फिर भी भाजपा की दरियादिली देखिये कि भाजपा ने भी कुछ दलों के साथ गठबंधन किया है। एक लिहाज से कहें तो भाजपा के सबका साथ, सबका विकास के नारे पर अमल कांग्रेस कर रही है।
भाजपा और उसकी मातृसंस्था आरएसएस को अब तक अफवाहें फ़ैलाने वाला और ध्रुवीकरण करने वाला माना जाता है किन्तु मेरी अपनी मान्यता है कि भाजपा अब चुनाव प्रबंधन में महारत हासिल कर चुका राजनीतिक दल है। देश के ही नहीं विदेश के भी राजनीतिक दलों से चुनाव लड़ने का व्यावहारिक प्रशिक्षण लेना चाहिए। ज्ञान और प्रशिक्षण जहाँ से भी मिले, ले लेना चाहि। याद कीजिये की राम ने भी ज्ञान प्राप्ति के लिए महा पंडित रावण के पास भेजने में कोई संकोच नहीं किया था। राजनीति में संकोच और नैतकता के लिए अब कोई जगह नहीं है, होना भी नहीं चाहिए।
भाजपा को पता है कि एक बार चुनाव जीत लिया तो विकास करने के लिए तो पूरे पांच साल पड़े ही हैं। चुनाव जीतने कि लिए भाजपा ने जरूरी धनसंग्रह भी कर रखा है। कांग्रेस कि पास ऐसी कोई तैयारी नहीं है। हालाँकि कांग्रेस और इंडिया गठबंधन कह रहा है कि उसी अपनी तैयारी है। होना भी चाहिए। इंडिया गठबंधन नागपुर संचालित सत्ता को चुनौती देने कि लिए नागपुर से ही अपने साझा अभियान का श्रीगणेश करने जा रहा है। ये अच्छी बात है। प्रतिद्वंदी को उसके पाले में ही जाकर चुनौती देना चाहिए। भाजपा की चुनावी तैयारियों को देखकर कम से कम मै तो अभिभूत हूँ। आपका मुझे पता नहीं।
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…