शिवपाल को राज्यसभा में भेज, पुत्र को जसवंत नगर से उतार सकती हैं भाजपा…

शिवपाल को राज्यसभा में भेज, पुत्र को जसवंत नगर से उतार सकती हैं भाजपा…

लखनऊ, 01 अप्रैल। प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) के संस्थापक शिवपाल यादव के अगले कदम पर पूरे प्रदेश की निगाहें टिकी हैं। समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अपने भतीजे अखिलेश यादव से नाराज चल रहे शिवपाल के भारतीय जनता पार्टी के संग जाने की अटकलें हैं। बुधवार शाम मुख्यमंत्री योगी से मुलाकात के बाद शिवपाल का पाला बदलना तय माना जा रहा है। सपा मुखिया अखिलेश यादव से नाराज चल रहे शिवपाल गुरुवार को लखनऊ में अपने राजनीतिक दल के नेताओं से मिले हैं। शिवपाल ने अपने समर्थकों से कहा है कि बड़ी लड़ाई के लिए तैयार रहें। सूत्रों की मानें तो इसे देखते हुए शिवपाल और अखिलेश का गठबंधन टूटना निश्चित माना जा रहा है।

बताया जा रहा है कि पिछले दिनों दिल्ली में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से भी शिवपाल की मुलाकात हो चुकी है। प्रसपा प्रमुख और जसवंतनगर के विधायक शिवपाल ने भतीजे अखिलेश से नाराजगी के बीच बुधवार की रात मुख्यमंत्री योगी से मिलने उनके सरकारी आवास पहुंचकर सभी को चौंका दिया। दोनों के बीच करीब 20 मिनट बातचीत हुई। शिवपाल के निकलने के तुरंत बाद वहां भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष व कैबिनेट मंत्री स्वतंत्र देव सिंह पहुंचे। तेजी से बदले इस घटनाक्रम के बाद प्रदेश में सियासी हलचल तेज हो गई है।

अभी यह साफ नहीं हुआ है, कि वह भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने वाले हैं, या अपनी पार्टी को एनडीए का हिस्सा बनाएंगे। सूत्रों का कहना है कि अधिक संभावना बीजेपी में शामिल होने की है। भाजपा उन्हें राज्यसभा सदस्य बनाने का प्रस्ताव दे रही है। वहीं जसवंतनगर की खाली होने वाली सीट पर शिवपाल के बेटे आदित्य यादव को चुनाव लड़ाया जाएगा। शिवपाल विधानसभा चुनाव में बेटे के लिए टिकट चाहते थे, लेकिन अखिलेश ने मना कर दिया। वह बेटे के भविष्य को लेकर भी चिंतित हैं। भाजपा के फार्मूले के तहत उनकी यह चिंता दूर होगी।

अखिलेश की ओर से आजमगढ़ की सीट खाली होने के बाद इस पर छह महीने के भीतर उपचुनाव होना है। चर्चा यह भी है कि शिवपाल को भाजपा इस सीट से भी उतार सकती है। यह सीट सपा के लिए सुरक्षित मानी जाती है। लेकिन सपा कार्यकर्ताओं के बीच अच्छी पकड़ रखने वाले शिवपाल के सीट से उतारे जाने से भाजपा को परिणाम हक में आने की उम्मीद है। भाजपा हर हाल में लोकसभा उपचुनाव में जीत दर्ज करना चाहेगी, जिससे 2024 से पहले एक और सकारात्मक संदेश दे सके। शिवपाल का मुख्यमंत्री योगी से अचानक मिलना अपने आप में प्रदेश की राजनीति में बड़े उलटफेर के संकेत दे रहा है।

सवाल है कि शिवपाल यादव का अगला कदम आखिर क्या होगा? क्या वह बहू अपर्णा की तर्ज पर भाजपा की शरण में नहीं जाएंगे? वैसे पिछले लोकसभा चुनाव से पहले उनके भाजपा में जाने की पूरी बिसात बिछ चुकी थीं लेकिन बाद में शिवपाल खुद ही पीछे हट गए। वजह साफ है, बड़े भाई मुलायम सिंह यादव के हाथ से सपा की बागडोर जाने के बाद शिवपाल का राजनीतिक घर ही पराया हो गया। राजनीतिक मजबूरियों के चलते विधानसभा चुनाव में अखिलेश के साथ आए लेकिन पहले वाला सम्मान न मिलने की कसक उनके दिल में हर मौके पर दिखी। मुलायम के सपा मुखिया रहते शिवपाल हमेशा नंबर दो की हैसियत में रहे। उनका सम्मान होता रहा। मगर, सपा की कमान अखिलेश के हाथ में आने के बाद सम्मान न मिलने की वजह से यह दूरियां बढ़ती गईं।

अखिलेश यादव के करीबी सूत्रों ने कहा कि चाचा और भतीजे के बीच 24 मार्च को आखिरी बार मुलाकात हुई थी। शिवपाल यादव ने एक बड़ी संगठनात्मक भूमिका के लिए कहा था, लेकिन अखिलेश यादव ने सुझाव दिया था कि शिवपाल सपा के समर्थन से अपनी राजनीतिक पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का विस्तार करें।” शिवपाल यादव ने 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले अपनी खुद की राजनीतिक पार्टी बनाई, फिर भी कहा जाता है कि सपा के भीतर उनका काफी दबदबा है। छह बार के विधायक रहे शिवपाल ने इटावा की जसवंत नगर सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन ऐसी अटकलें हैं कि अगर वह भाजपा का साथ देना चाहते हैं तो वह सपा से कम से कम पांच विधायकों को अलग कर सकते हैं। अब 2024 के आम चुनावों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, शिवपाल यादव द्वारा भाजपा की ओर किसी भी झुकाव को अखिलेश यादव के खिलाफ देखा जा सकता है। अखिलेश यादव ने 2024 के आम चुनाव से पहले राज्य पर ध्यान केंद्रित करने के लिए ही अपनी संसदीय सीट छोड़ दी है।

गौरतलब है कि पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश ने इस बार खुद को भाजपा के एकमात्र विपक्ष के रूप में स्थापित करने में कामयाबी हासिल की है। समाजवादी पार्टी को चुनाव से पहले उस समय काफी झटका लगा था, जब अखिलेश यादव की भाभी अपर्णा यादव – उनके भाई प्रतीक यादव की पत्नी – ने सपा छोड़ दी थी और भाजपा में शामिल हो गई थी। राज्य भाजपा ने इस मुद्दे को यह दावा करते हुए भुनाने की कोशिश की थी कि मुलायम सिंह यादव अपने दिल से समाजवादी पार्टी के साथ नहीं हैं और उनका आशीर्वाद उनकी बहू की पार्टी के साथ है।

हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…