शिक्षा मनोविज्ञान भी एक करियर…

शिक्षा मनोविज्ञान भी एक करियर…

 

शिक्षा मनोविज्ञान एक विकासशील अनुशासन (विज्ञान) है। इसके अध्ययन का क्षेत्र मानव व्यवहार का वह पक्ष है जो औपचारिक, अनौपचारिक एवं आनुषंगिक परिस्थितियों में शिक्षण एवं अधिगम की व्यवस्था से संबंधित है। इसका लक्ष्य इन प्रसंगों में शिक्षक अधिगमकर्ता तथा अधिगम परिस्थिति से आबद्ध चरओं का वर्णन, उसकी व्याख्या, भविष्य कथन एवं नियंत्रण करना है। शिक्षा मनोविज्ञान की विषय वस्तु में अधिगम, व्यक्तित्व, मानव वृद्धि एवं विकास तथा मापन एवं मूल्यांकन से लेकर शिक्षण का मनोविज्ञान एवं अनेकानेक शैक्षिक संदर्भ शामिल हैं।

 

शिक्षा मनोविज्ञान की विषय वस्तु में सामान्यतः अधिगम प्रक्रिया का अध्ययन किया जाता था। इसमें मूल प्रवृत्ति आदत निर्माण, कल्पना, स्मृति, साहचर्य एवं चिंतन पर विशेष बल दिया जाता था। विद्यालय में पढ़ाए जाने वाले विषयों का मनोवैज्ञानिक दृष्टि से विश्लेषण करना, असामान्य बालकों तथा मंदन की समस्या के संदर्भ में व्यक्तिगत भिन्नता के तत्वों पर जोर देना तथा प्रयोग एवं अनुसंधान की शुद्धता के लिए मापन के विज्ञान को अत्यावश्यक माना जाता था।

 

शिक्षा मनोविज्ञान का संबंध अधिगम के मानवीय तत्व से है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें मनोवैज्ञानिक प्रयोगशालाओं के अंतर्गत किए गए अध्ययनों से विकसित संप्रत्ययों का शिक्षा में अनुप्रयोग किया जाता है। साथ ही इसमें ऐसे संप्रत्ययों की शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोज्यता की जांच करने तथा शिक्षकों की रुचि वाले महत्वपूर्ण शीर्षकों का परिशोधन किया जाता है। यह शिक्षण एवं अधिगम-प्रक्रिया के बहुशाखीय रूपों का अध्ययन करता है।

 

शिक्षा का अर्थ अनौपचारिक रूप से संपन्न तथा स्कूल की चारदीवारी के भीतर आयोजित क्रियाओं से ही नहीं है। इसका दायरा अनौपचारिक एवं प्रासंगिक ढंग से उपलब्ध करायी जाने वाली व्यवस्थाओं यथाप्रसार केंद्रों, जनसंपर्क साधनों, आकाशवाणी, दूरदर्शन एवं एडुसेट के कार्यक्रमों, पत्राचार एवं दूरवर्ती शिक्षा के पाठ्यक्रमों ओपन स्कूल तथा ओपन विश्वविद्यालयों तक विस्तृत है।

 

शिक्षा मनोविज्ञान की परिधि परम्परागत ढंग से दी जाने वाली औपचारिक शिक्षा से ही न जुड़कर पूरी शिक्षण-अधिगम की परिस्थिति से आबद्ध है। बिट्राक ने इसी परिप्रेक्ष्य को अपनाते हुए यह बताया है कि शिक्षा मनोविज्ञान के बारे में विचार करते समय हमें एक व्यापक एवं उदार दृष्टिकोण सामने रखना चाहिए। इसके अंतर्गत शैक्षिक परिपार्श्व में मानव व्यवहार के वैज्ञानक अध्ययन पर बल देना उचित है। एक वैज्ञानिक के नाते हमें शिक्षा के अंतर्गत घटित व्यवहार का वर्णन, अवबोध, भविष्य कथन एवं नियंत्रण करने की कोशिश करनी चाहिए।

 

शिक्षा मनोविज्ञान में प्रयुक्त अध्ययन विधियों को दो वर्गों में बांटा जा सकता है। प्रथम, दूरवर्ती विधियां जिनमें समय, स्थान एवं पर्यावरण की दृष्टि से दूरस्थ परिस्थितियों के संबंध में सामान्यीकरण किए जाते हैं। इनमें प्रमुख हैं प्रेक्षण, प्रयोग, परीक्षण सदृश प्रणाली, विभेदक विधि एवं कार्योत्तर विधि। दूरवर्ती विधियों के माध्यम से सार्वभौम सत्य या नियमों की स्थापना की जाती है। ये विधियां तथ्यों एवं परिस्थितिगत सत्यों की छानबीन करती हैं और उनसे हटकर उनकी प्रकृति के बारे में सामान्यीकरण प्रस्तुत करती हैं।

 

प्रेक्षण विधिः

प्रेक्षण विधि का अनुप्रयोग दूसरे व्यक्ति का प्राणी की बाह्य घटनाओं को देखने के लिए किया जाता है। प्रेक्षण की प्रक्रिया में चार बातें होती हैं। अवधान, संवेदना, प्रत्यक्षीकरण तथा संकल्पना। एक सफल एवं प्रभावी प्रेक्षण के लिए अवधान का होना अत्यावश्यक है। अवधान में एक सतर्कता की दशा होती है। संवेदना से तात्पर्य है आंतरिक या बाह्य पर्यावरण का व्यक्ति की इंद्रियों या उपयुक्त इंद्रिय विस्तारक उपकरणों के माध्यम से अभिज्ञता। प्रत्यक्षीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें इंदियों द्वारा किए गए बोध को पूर्वानुभवों से जोड़ा जाता है जिससे संवेदना अर्थयुक्त बन जाती है। संकल्पना को मानसिक क्रिया का वह गुण माना जाता है जिसमें व्यक्ति काल्पनिक संप्रत्ययों के निर्माण द्वारा प्रत्यक्षीकरण में निहित बाधाओं को दूर करता है। यह यथार्थ के कुछ पक्षों की बौद्धिक प्रस्तुति है।

 

प्रयोग विधिः

नियंत्रित प्रेक्षण को प्रयोग के नाम से पुकारा जाता है। प्रयोगात्मक विधि में अपेक्षाकृत अधिक कठोरता एवं नियंत्रण का समावेश होता है। इसके अंतर्गत चार महत्वपूर्ण संक्रियाएं होती हैं। प्रथम, नियंत्रण जिसमें प्रयोगकर्ता अपने अध्ययन के लिए चुने गए चर के अतिरिक्त चरों की गतिविधियों पर यथा संभव अंकुश लगा देती है। द्वितीय हेरफेर करना, जिसमें प्रयोगकर्ता एक चर में परिवर्तन लाकर दूसरे चर पर उसके प्रभाव का जायजा लेने की कोशिश करता है। तृतीय, प्रेक्षण करना, जिसमें एक चर का दूसरे चर पर प्रभाव देखा जाता है।

 

परीक्षण सदृश प्रणालीः

यह पूर्णतः प्रयोगात्मक न होकर अंशतः प्रयोगात्मक होती है। इन विधियों का अनुप्रयोग ऐसी परिस्थितियों के लिए लिया जाताहै जिन पर प्रयोगात्मक दृष्टि से पूर्ण नियंत्रण संभव नहीं है। शिक्षा की अनेक ऐसी परिस्थितियों के उदाहरण गिनाए जा सकते हैं जहां प्रयोग हेतु परिस्थितियों या व्यक्तियों में तब्दीली या नियंत्रण लाना कठिन होता है। परीक्षण सदृश प्रणाली में वास्तविक परिस्थितियों के माध्यम से अध्ययन किया जाता है।

 

विभेदक विधिः

यह सर्वविदित है कि मानव-व्यवहार पर पहलू से विविधता लिए रहत है। यही कारण है कि शिक्षा मनोविज्ञान में विभेदक विधि के अनुप्रयोग पर विशेष बल दिया जाता है। इस विधि में व्यक्तिगत भिन्नता को केंद्रवर्ती तथ्य के रूप में माना जाता है।

 

कार्योत्तर विधिः

इस विधि में अध्ययनकर्ता स्वाभाविक रूप में घटित चरों के प्रभाव का विश्लेषण करता है। कार्योत्तर विधि की मुख्यतः दो प्रणालियां आमतौर से लागू होती है। प्रथम, सह संबंध सूचक अध्ययन जिसमें प्रायः दो चरों के मध्य संबंध का। द्वितीय, निकष समूह अध्ययन जिसमें किसी पूर्व परिभाषित मानदंड के अनुसार दो या दो से अधिक समूहों का चुनाव किया जाता है और उनमें अध्ययन हेतु चुनी हुई विशेषताओं या दशाओं का तुलनात्मक विश्लेषण उनकी उपस्थिति या अनुपस्थिति के अनुसार होता है। दूसरा है, समीपस्थ विधियां जिनमें सामयिक रीति से निगमित सामान्यीकरण की वैधता का पता लगाना मुख्य उद्देश्य होता है।

हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…