13 साल की उम्र में फलक रख रही रोजा…

13 साल की उम्र में फलक रख रही रोजा…

इटावा/उत्तर प्रदेश-: जसवंतनगर फलक नाज जिसकी उम्र 13 वर्ष है। कहती है कि इस्लाम में रोजा रखना फर्ज माना गया है, और रमजान माह में शैतानों को जंजीरों में जकड़ने के बाद जन्नत का दरवाजा खोल दिया जाता है। वह पिछले वर्षो की तरह इस वर्ष भी रोजे रखकर अम्मी के साथ नमाजें अदा करती आ रही है।
बरकत का महीना रमजान में इंसान ईमानदारी से कोई भी नेक दुआ सच्चे मन से करता है तो वह विफल नहीं जाती। रमजान बरकत, रहमत, मगफिरत का महीना है, जो नसीब वालो को ही नसीब होता है। इसलिए वे रोजा रखकर अल्लाह की इबादत कर मुल्क में हिन्दू-मुस्लिम भाईचारा कायम रहने की दुआ करती हैं। ताकि हम सभी लोग मुल्क मे हंसी-खुशी से रहें। फलक ने कहा इस बार वह रोजा रखकर कोरोना जैसी महामारी से निजात पाने के लिए रो-रोकर नमाजों के बाद दुआएं पढ़ती है, और उन्होंने यह अहद किया है कि जब तक वतन से इस महामारी से निजात नही मिलेगी वह ईद की कोई खुशी हम इजहार नहीं करेंगे, क्योंकि एक तरफ खुशी है तो दूसरी तरफ करोना जैसे महामारी। इस महामारी से निजात पाने का एक ही तरीका है। हम सब मिलकर इस माह-ए- रमजान में रोजा रखें और ज्यादा से ज्यादा अल्लाह के सामने गिड़गिड़ाते कर दुआ करें। कोरोना की जंग जीतने के लिए रोजा रखकर घरों में ही इबादत करे और इफ्तार करने के दौरान इस देश की खुशहाली लाने को कोरोना महामारी से निजात दिलाने के लिए दुआ करे। इस माह में खास इबादत रोजा रखना व तरावीह पढ़ना है। उन्होंने कहा कि रोजे रखना का सवाब खुदा अल्लाह देते हैं। एक नेकी के बदले 70 गुना सवाब मिलता है।

पत्रकार नितेश प्रताप सिंह की रिपोर्ट…