श्री रामनवमी पर एवं महानवमी पर पढ़िए श्रीराम की अदभुत कहानी…
श्री राम का कौशल पराक्रम का संदेश…
श्री राम समाज राष्ट्र के सोए भाग्य को जगाने वाले एक मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम है…
मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम भारत की आत्मा है राम भारतीय संस्कृति का भव्य दिव्य मंदिर के ना केवल चमकते शिकार है अपितु वे वास्तव में उनके आधार भी है इसीलिए राम का जीवन उनके समय से लेकर आज तक प्रसांगिक उनका जीवन प्रकाश स्तंभ की तरह है जो अंधेरे में हमारा मार्ग प्रशस्त करता है संसार का एक ऐसा कोई प्रश्न नहीं है जिसका व्यवहारिक आदर्श उत्तर राम ने अपने आचरण से नहीं दिया हो उनके जीवन में एक सारा जग समाया हुआ है श्री राम जय राम सिय राम मय सब जग जानी करहू प्रमाण जोरि जुग पानी राष्ट्रीय समाज जीवन की दिशा क्या होनी चाहिए यह राम कथा में राम के जीवन से अनुभूत की जा सकती है वह ऐसे नर श्रेष्ठ या अवतार है जिन्हें वाणी से नहीं अपितु आश्रम से जीवन दर्शन को प्रस्तुत किया इसीलिए वह सीधे लोक से जोड़ते हैं और साधारण होकर भी अपने साधारण जीवन से समूचे लोक का नेतृत्व करते हैं। राम भारतीय संस्कृति के ऐसे नायक हैं जिन्हें समाज के सुख-दुख और उनकी रचना को नजदीकी से देखा साझा अयोध्या के राजकुमार राजा से कहीं अधिक बड़ी भूमिका में राम हमें एक ऐसे जन नायक के रूप में दिखाई पड़े हैं जिन्होंने उत्तर से दक्षिण तक दृष्टि राजाओं के आतंक से भयाक्रांत भारतीय समाज के साहस को जगाया और उन्होंने एकजुट किया अन्याय के विरुद्ध प्रतिकार और पराक्रम का बल दिया राष्ट्र के सोए हुए भाग्य को जगाने का काम लोकनायक करते वही प्रभु राम ने किया
शक्तिशाली राज्य अयोध्या के महाराज दशरथ के वीर पुत्र और भावी सम्राट होने के मात्र से राम जनता के नायक नहीं हो जाते
वह अपने व्यक्तित्व को इस प्रकार करते हैं कि जनता उन्हें स्वाभाविक तौर पर अपना नायक मानते हैं जनमानस में राम के प्रति कितना समर्पण था उनके प्रति कितनी आस्था भक्ति थी व्यापक स्तर पर उनका पहला प्रकृति करण तब होता है जब राम अयोध्या का भव्य महल छोड़कर वन की ओर निकलते हैं अयोध्या के समस्त मार्ग अवरुद्ध हो गए हैं राम को रोकने के लिए जनसैलाब उमड़ आया है रथ के आगे लोग लेट गए हैं राम उनसे दूर जाए सउदिया का कोई भी जन या शिकार करने को तैयार नहीं है अयोध्या में अंतराल छा गया यह स्नेह और भक्ति राम ने अपने आश्रम से कमाई थी अयोध्या का महल देखकर भरत अपने भाई को वापस लाने के लिए चित्रकूट में पहुंचते हैं राम से लौट कर चलने के लिए मनुहार करते हैं कर बुद्धि प्रार्थना करते हैं किंतु राम को मर्यादा की स्थापना करनी है वह भरत को मना कर देते हैं परंतु अयोध्या का किया जो दशरथ के बाद राम की है राम की अयोध्या को नेतृत्व दे सकते हैं क्योंकि अयोध्या की जनता सिर्फ रामराज्य चाहती है राम के विरह की अग्नि अभी ठंडी भी कहां हुई थी ? —- ऐसे में भरत स्वप्न में भी अयोध्या के सिंहासन पर बैठने की सोच नहीं सकते हैं भाई राम के प्रति भी भरत के मन में जो श्रद्धा है वह भी इनकी अनुमति नहीं देती भले ही माता कैकेयी भरत को राजा के रूप में सिंहासन पर बैठे देखना चाहती थी यदि किसी दबाव में भरत या करते तो जनमानस उनके विरुद्ध हो सकता था अयोध्या को सिर्फ राम संभाल सकते थे इसीलिए भरत ने राम की चरण पादुका एली और अयोध्या लौट आए महल को छोड़कर राम जब वन पहुंचते हैं तब उन्हें ज्ञात होता है कि समाज किन कठिनाइयों से गुजर रहा है हालांकि गुरु वशिष्ठ उन्हें पहले भी समाज की समस्याओं से साक्षात्कार करा चुके हैं समाज को सतीश समीप से देखने के बाद राम उसे संगठित और जागृत करना चाहते थे इसीलिए भी संभव है कि राम अयोध्या वासियों और अपने पीली भाई भरत के प्रार्थना को स्वीकार कर देते हैं वह साधारण जीवन जीकर समाज के सामने अनेक प्रकार के उदाहरण प्रस्तुत करना चाहते थे वह चाहते तो वन में किसी एक जगह सुंदर और साधन संपन्न कुटिया बनाकर रह सकते थे लेकिन उन्होंने वन गमन को राष्ट्र निर्माण के एक अवसर में बदल दिया अपना हित छोड़ा कष्ट सहन किए सरलता को छोड़ा कठिनता को चुना आराम का त्याग किया परिश्रम को चुना वनवास के दौरान श्री राम ने व्यापक जनसंपर्क किया
वनवासियों को अपने साथ जोड़ा उन्होंने अपना बनाया सामान्य व्यक्तित्व जिस संघर्ष भरे जीवन को जी रहा था उसी को राम ने भी अपनाया इसीलिए 1 ग्राम में रहने वाले सब लोगों के साथ उनका आत्मीय और विश्वास का संबंध जुड़ता है वनवास खत्म होने में केवल छह सात महान ही बचे थे तब माता जानकी का अपहरण रावण ने कर लिया राम ने ऐसे कठिन समय में भी अयोध्या मिथिला या फिर अन्य किसी मित्र राज्य से सहायता नहीं ली वहां समाज को संदेश देना चाहते थे कि समाज की एकजुटता से बिना साधन के भी रावण जी से अत्यधिक शक्तिशाली आताताई को भी परास्त किया जा सकता है संगठन में ही वास्तविक शक्ति है अत्याचारी और अन्याय ताकतों का सामना करने के लिए राज्य की सशस्त्र सेना ही आवश्यक नहीं है
हम अपनी शक्ति को एकत्र कर भी दुष्टों को धूल चटा सकते हैं
यदि राम ने सेना बुलाकर रावण का अंत किया होता तो तब जनमानस में संगठन में शक्ति है का भाव कभी नहीं आ पाता तब शायद समाज में पराक्रम का भाव नहीं जाग पाता तब शायद सामान्य समाज अपने सांसों कौशल को हत्यार नहीं बना पाता
राम जय राम जय जय राम
“हिंद वतन समाचार” की रिपोर्ट…