श्रीलंका के मुख्य विपक्षी दल ने नयी सरकार को सशर्त समर्थन देने का फैसला किया…
कोलंबो, 16 मई। श्रीलंका के मुख्य विपक्षी दल समागी जन बलवेगया (एसजेबी) ने सोमवार को कहा कि वह देश के गंभीर आर्थिक और राजनीतिक संकट से निपटने में मदद करने के लिए प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के नेतृत्व वाली अंतरिम सर्वदलीय सरकार को सशर्त समर्थन देगी।
यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) के नेता विक्रमसिंघे को बृहस्पतिवार को देश का 26वां प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया था। इससे पहले अपने समर्थकों द्वारा सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों पर हमले के बाद भड़की हिंसा के मद्देनजर प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने सोमवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था और तभी से देश में कोई सरकार नहीं थी। महिंदा राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के बड़े भाई हैं।
एसजेबी ने एक बयान में कहा, “एक जिम्मेदार राजनीतिक दल के रूप में, समागी जन बलवेगया का मानना है कि देश को मौजूदा संकट से बचाना अत्यंत महत्वपूर्ण है।”
उसने कहा, “उसी के अनुरूप, बिना कोई पोर्टफोलियो लिए और देश की भलाई की सोचते हुए एसजेबी ने आज अपनी संसदीय समूह चर्चा में आर्थिक सुधार के प्रयासों में वर्तमान सरकार का पूरा समर्थन करने का निर्णय लिया।”
समर्थन के लिये हालांकि कुछ शर्तें भी हैं।
उसने कहा, “अगर सरकारी समूह एसजेबी से पाला बदलने वालों को समायोजित करने की कोशिश करते हैं या एसजेबी सांसदों को पार्टी के सिद्धांतों के खिलाफ गतिविधियों के लिए अपने साथ जोड़ते हैं, तो संसदीय समूह ने बिना शर्त इस समर्थन को वापस लेने का फैसला किया है।”
एसजेबी ने पूर्व में सर्वदलीय अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री के तौर पर विक्रमसिंघे का समर्थन करने से इनकार करते हुए कहा था कि उनके पास कोई जनादेश नहीं है क्योंकि वह 225 सदस्यीय संसद में अपनी पार्टी के एकमात्र प्रतिनिधि हैं।
पिछले हफ्ते अपनी नियुक्ति के बाद विक्रमसिंघे ने एसजेबी नेता सजित प्रेमदासा को पत्र लिखकर समर्थन का आग्रह किया था।
विक्रमसिंघ ने लिखा, “हम सभी अच्छी तरह से जानते हैं कि श्रीलंका एक बड़े आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक संकट का सामना कर रहा है। इसमें कोई संशय कि हर दिन तीव्र हो रहे इस संकट को समाप्त करने और एक स्थिर अर्थव्यवस्था की स्थापना के लिए हम सभी को एकजुट होना चाहिए। हम सभी की अगली पीढ़ी के भविष्य को सुरक्षित करने की ऐतिहासिक जिम्मेदारी है, यह देखते हुए कि इस समय में किए गए हमारे काम इस देश का आगे का रास्ता तय करेंगे।”
एसजेबी के सशर्त समर्थन के बावजूद, विक्रमसिंघे ने सोमवार को कहा कि राष्ट्रपति की शक्तियों पर अंकुश लगाने के लिए संविधान में 21वें संशोधन पर अटॉर्नी जनरल के विभाग के साथ चर्चा की जाएगी ताकि इसे मंजूरी के लिए कैबिनेट में प्रस्तुत किया जा सके।
21वें संशोधन के 20ए को निष्प्रभावी करने की उम्मीद है, जिसने 19वें संशोधन को समाप्त करने के बाद राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को निरंकुश शक्तियां प्रदान की थीं। 19वें संशोधन ने संसद को राष्ट्रपति पर शक्तिशाली बना दिया था।
विक्रमसिंघे ने ट्वीट किया था, “21वां संशोधन : इस पर कल (सोमवार) अटॉर्नी जनरल के विभाग के साथ चर्चा की जाएगी और फिर अनुमोदन के लिए मंत्रिमंडल के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।”
इसबीच विक्रमसिंघे ने रविवार को विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक (एडीबी) के प्रतिनिधियों के साथ देश के मौजूदा आर्थिक संकट को लेकर चर्चा की। उन्होंने कहा कि दोनों वित्तीय संस्थानों ने दवा, भोजन और उर्वरक जैसी आवश्यक वस्तुओं की खरीद में सहायता करने का वादा किया है।
गौरतलब है कि श्रीलंका 1948 में आजादी के बाद से अपने सबसे बुरे आर्थिक संकट से गुजर रहा है।
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…