प्राकृतिक आपदा जोखिमों से बचाव के लिए भारत को राष्ट्रीय आपदा पूल बनाने की आवश्यकता: रिपोर्ट…
मुंबई, 26 नवंबर। प्राकृतिक आपदाओं की घटनाएं और गंभीरता बढ़ने के साथ, एक रिपोर्ट में भारत में एक राष्ट्रीय आपदा पूल बनाने का आग्रह किया गया है, क्योंकि भारत दुनिया में सबसे अधिक आपदा-संभावित देशों में से एक है।
भारत वर्ष 1900 से अब तक आई प्राकृतिक आपदाओं की संख्या के मामले में अमेरिका और चीन के बाद तीसरे स्थान पर है। भारत में वर्ष 1900 से अब तक 756 प्राकृतिक आपदाएँ आई हैं जैसे भूस्खलन, तूफान, चक्रवात, भूकंप, बाढ़, सूखा आदि। 1900-2000 के दौरान 402 आपदाएँ और 2001-2021 के दौरान 354 आपदाएँ आईं।
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने शुक्रवार को एक रिपोर्ट में कहा कि 2001 से अब तक कुल 100 करोड़ लोग प्रभावित हुए हैं और इन आपदाओं के कारण लगभग 83,000 लोगों की जान चली गई। अगर नुकसान को मौजूदा कीमतों के आधार पर देखें, तो नुकसान 13 लाख करोड़ रुपये या सकल घरेलू उत्पाद का छह प्रतिशत हो जाता है।
1991 और 2021 के बीच, देश में कुल नुकसान का केवल आठ प्रतिशत ही कवर किया गया, इसलिए, इस अवधि के दौरान लगभग 92 प्रतिशत सुरक्षा अंतर है।
एसबीआई समूह के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने रिपोर्ट में कहा है कि सुरक्षा अंतर को खत्म करने के लिए प्रारंभिक हस्तक्षेप की आवश्यकता है। प्राकृतिक आपदा जोखिमों से बचाव के लिए एक राष्ट्रीय आपदा पूल बनाकर सार्वजनिक-निजी समाधान एकमात्र रास्ता है।
रिपोर्ट में उन्होंने कहा कि 2020 की बाढ़ से कुल आर्थिक नुकसान 7.5 अरब डॉलर या 52,500 करोड़ रुपये था, लेकिन बीमा केवल 11 प्रतिशत था।
उन्होंने कहा कि अगर सरकार ने इसका बीमा किया होता, तो 60,000 करोड़ रुपये के बीमा राशि का प्रीमियम सिर्फ 13,000-15,000 करोड़ रुपये होता।
प्राकृतिक आपदाओं के कारण मानवीय क्षति के अलावा भारी आर्थिक नुकसान होता है।
उन्होंने कहा, ”1900 के बाद से, हमें 144 अरब डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ है। बाढ़ से सबसे अधिक 86.8 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है और उसके बाद तूफान से 44.7 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है। यदि इन नुकसानों को मौजूदा कीमतों के साथ समायोजित किया जाता है नुकसान लगभग 87 अरब अमरीकी डालर या 13 लाख करोड़ रुपये का है।”
रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके अलावा, नुकसान की रिपोर्टिंग में बहुत बड़ा अंतर है। देश की केवल 193 घटनाओं के नुकसान के आंकड़े उपलब्ध हैं और मौजूदा आकलन पद्धति में भी कई समस्याएं हैं।
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…