भारत में कोविड-19 के कारण जीवन प्रत्याशा में दो साल की कमी : अध्ययन
मुंबई, 23 अक्टूबर। लोगों की जिंदगियों पर विभिन्न स्तरों पर असर डालने वाली कोरोना वायरस महामारी ने किसी व्यक्ति के जीने की औसत अवधि यानी जीवन प्रत्याशा तकरीबन दो साल तक कम कर दी है। मुंबई के अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (आईआईपीएस) के वैज्ञानिकों के सांख्यिकीय विश्लेषण में यह पता चली है। इस विश्लेषणात्मक रिपोर्ट में महामारी के कारण पुरुषों और महिलाओं दोनों में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा में कमी का उल्लेख किया गया है। यह रिपोर्ट हाल में पत्रिका ‘बीएमसी पब्लिक हेल्थ’ में प्रकाशित हुई। आईआईपीएस के प्रोफेसर सूर्यकांत यादव ने यह रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट में कहा गया है,
”2019 में पुरुषों के लिए जीवन प्रत्याशा 69.5 वर्ष और महिलाओं के लिए 72 वर्ष थी जो 2020 में कम होकर क्रमश: 67.5 वर्ष और 69.8 वर्ष हो गयी है।” अगर शिशु के जन्म के समय मृत्यु की प्रवृत्ति भविष्य में
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स्थिर रहती है तो किसी नवजात के जीवित रहने की संभावना के औसत वर्ष के आधार पर जन्म के समय जीवन प्रत्याशा की गणना की जाती है। प्रोफेसर यादव के अध्ययन में ‘जीवनकाल की असमानता’ पर भी गौर किया गया और पाया गया कि कोविड-19 से 39-69 आयु वर्ग में सबसे अधिक पुरुषों की मौत हुई।
यादव ने कहा, ”2020 में सामान्य वर्षों के मुकाबले कोविड-19 से 35-79 आयु वर्ग में बहुत ज्यादा मौत हुईं और यह समूह जीवन प्रत्याशा में कमी के लिए अधिक जिम्मेदार है।” आईआईपीएस के निदेशक डॉ. के एस जेम्स ने कहा, ”हर बार जब हम किसी महामारी की चपेट में आते हैं तो जन्म के समय जीवन प्रत्याशा कम हो जाती है। उदाहरण के लिए अफ्रीकी देशों में एचआईवी-एड्स महामारी के बाद जीवन प्रत्याशा कम हो गयी थी। जब यह नियंत्रण में आती है तो जीवन प्रत्याशा में सुधार आता है।
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