श्री गणेश जी के आठ अवतार की कहानी हैं उनके आठ नाम…
प्रथम पूज्यनीय श्री गणेश जी की खूबियों की चर्चा करें तो समय कम पड़ जाएगा लेकिन उनका बखान अधूरा रह जाएगा। यूँ तो विद्या, बुद्धि, और शांति के देवता श्री गणेश जी को उनके भक्त विविध नामों से जानते हैं जिनमें वक्रतुण्ड, एकदंत, महोदर, गजानन, लम्बोदर, विकट, विघ्नराज और धूम्रवर्ण, यह आठ नाम सर्वोपरी हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह प्रभु श्री गणेश जी के सिर्फ नाम नहीं बल्कि उनके आठ अवतार हैं। और इन अवतारों के बारे में हमें बता रहे हैं ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री जी।
वह कहते हैं, ”अगर यह कहें तो शायद गलत नहीं होगा कि श्री गणेश जी का प्रत्येक अवतार देवताओं की कमजोरियों का परिणाम था. अपने वक्रतुण्ड अवतार में गणेशजी ने स्वर्ग के राजा इंद्र के उन्माद से जन्मे मत्सरासुर से उस समय मुकाबला किया, जब उसने दैत्यगुरु शुक्राचार्य के बताए मंत्र से भगवान शिव से भयहीन होने का वरदान प्राप्त कर लिया था। इसका परिणाम यह हुआ कि स्वयं इंद्र भी उससे युद्ध में उसी तरह पराजित हुए। इसी तरह एक बार तारकासुर से दुखी देवताओं ने कामदेव के सहयोग से भगवान शिव की समाधि भंग करने के लिए माता पार्वती को खूबसूरत युवा भीलनी का रूप धारण कर समाधि स्थल पर भेजा। समाधि टूटी, लेकिन शिव जी को लुभाने वाली भीलनी एक झलक दिखाकर गायब हो गई। तब भगवान शिव के मोह से मोहासुर राक्षस पैदा हुआ। तब महोदर रूप में श्री गणेश जी ने मोहासुर को अपनी शरण में लिया।
भगवान गजानन का अवतार गणेश जी ने लोभासुर नामक राक्षस का वध करने के लिए लिया था. हुआ यूँ कि भगवान शिव के परम मित्र कुबेर अपने मित्र से मिलने कैलाश पर्वत जा पहुंचे। वहाँ पहुँचते ही उनकी दृष्टि माँ पार्वती पर पड़ी और वह उनकी सुंदरता को एकटक निहारने लगे। इससे माँ पार्वती, कुबेर पर कुपित हो गईं और कुबेर भयभीत हो उठे। कुबेर के लोभ से लोभासुर नामक राक्षस का जन्म हुआ और इसी लोभासुर का नाश करने के लिए श्री गणेश जी ने भगवान गजानन का अवतार लिया और उससे युद्ध कर उसका नाश किया। अपने लंबोदर अवतार में श्री गणेश जी ने क्रोधासुर नामक राक्षस का मुकाबला किया था। कहते हैं भगवान शिव के क्रोध से इस राक्षस का जन्म हुआ था। इसी तरह भगवान विष्णु से कामासुर राक्षस उत्पन्न हुआ था, जिसे ख़त्म करने के लिए श्री गणेश जी ने विकट अवतार लेकर कामासुर राक्षस को अपनी शरण में लिया।
विघ्नराज अवतार में श्री गणेश जी को ममतासुर से युद्ध करना पड़ा, जो माता पार्वती के हंसने से उस समय पैदा हुआ था, जब वह शिवजी से ज़िद किए बैठी थीं। धूम्रवर्ण के रूप में श्री गणेश जी ने अहंतासुर राक्षस का मान मर्दन किया। कहते हैं, एक बार ब्रह्मा जी ने कुछ समय के लिए सूर्य भगवान को अपने सारे अधिकार सौंप दिए। इससे उनमें अहंकार पैदा हो गया और इसी से अहंतासुर नामक राक्षस का जन्म हुआ, जिसे चूरकर श्री गणेश जी ने अपनी शरण में लिया।”
ज्योतिष सेवा केन्द्र
ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री
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हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…