अदालत सेवाकाल में कर्मचारियों की मौत, हत्या के मामले में मुआवजे के लिए अधिकरण को सूचित करने के तरीकों पर कर रहा है विचार
कोच्चि, 14 सितंबर। केरल उच्च न्यायालय इस बात की जांच कर रहा है कि नौकरी के दौरान आकस्मिक मृत्यु या चोट या यहां तक कि हत्या के हर मामले कर्मचारी मुआवजा अधिनियम के तहत आयुक्तों और औद्योगिक न्यायाधिकरणों के संज्ञान में कैसे लाये जा सकते हैं ताकि वे पीड़ित परिवारों को आर्थिक राहत प्रदान करने के लिए अपनी शक्तियों का प्रयोग कर सकें।
न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति जियाद रहमान एए की पीठ ने रात के पहरेदारों की दुर्दशा को ध्यान में रखते हुए इस मुद्दे पर एक याचिका पर सुनवाई शुरू की, जिन्हें आमतौर पर उनके काम के लिए खराब व्यवस्था मिलती है और इसके लिए उन्हें बहुत ही कम वेतन मिलता है। याचिका में कहा गया है कि यदि उनकी नौकरी के दौरान मृत्यु हो जाती है, तो आरोपी को दोषी ठहराये जाने पर ही मृतक चौकीदार के परिवार को कुछ मुआवजा मिलता है।
अदालत ने कहा कि ऐसे “दुर्बल” व्यक्ति, जो अक्सर रात में केवल मच्छर भगाने की अगरबत्ती के सहारे दुकानों और एटीएम की रखवाली करते देखे जाते हैं, जबकि मालिक अपने भव्य घरों में सोते हैं। अदालत ने कहा, जब इस तरह के रात के चौकीदार को काम पर मार दिया जाता है और आपराधिक मामला खत्म कर दिया जाता है, तो मारे गए व्यक्ति के परिवार के पास मुआवजा पाने का कोई सार्थक साधन नहीं बच जाता है, जिन्हें अक्सर बेसहारा छोड़ दिया जाता है।”
पीठ ने कहा कि कि ऐसी परिस्थितियों से कर्मचारी की “आकस्मिक मृत्यु” के लिए कर्मचारी मुआवजा अधिनियम 1923 के तहत मुआवजे के लिए वैध कार्यवाही शुरू होंगी। अदालत ने यह भी कहा कि राज्य के विभिन्न औद्योगिक न्यायाधिकरणों में इस अधिनियम के तहत नियुक्त आयुक्तों के पास कार्यवाही शुरू करने या “ऐसी आकस्मिक मृत्यु” होने की सूचना प्राप्त करने के लिए प्रशासनिक तंत्र नहीं है।
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