सशस्त्र बलों को वीरता पदक प्रदान करने वाले तंत्र को ‘मनमाना’ घोषित करने के अनुरोध के साथ अर्जी दायर
नई दिल्ली, 05 सितंबर। दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर करके अनुरोध किया गया है कि सशस्त्र बल कर्मियों को वीरता पदक देने की मौजूदा व्यवस्था को कथित अपारदर्शी चयन प्रक्रिया के कारण मनमाना और निष्पक्षता के सिद्धांतों के खिलाफ घोषित किया जाए।
याचिका पर अगले सप्ताह सुनवाई होने की संभावना है। इसमें आरोप लगाया गया है कि ऐसे उदाहरण हैं, जहां उच्च मान्यता के योग्य वीरता के कृत्यों को व्यवस्था द्वारा नजरअंदाज कर दिया गया है।
इसमें कहा गया है कि किसी निर्णय की समीक्षा किये जाने के लिए एक तंत्र नहीं होने के कारण ‘‘सशस्त्र बलों के योग्य कर्मियों के साथ अन्याय के गंभीर मामले सामने आए हैं।’’
याचिका एक सेवानिवृत्त रक्षा कर्मी द्वारा दायर की गई है। इसमें कहा गया है कि वीरता पुरस्कार आमतौर पर शांति या युद्ध के दौरान सशस्त्र बलों के कर्मियों द्वारा किए गए वीरता के विशिष्ट कार्यों के लिए दिए जाते हैं।
इसमें कहा गया है कि इन सभी वीरता पदकों को भारत के राष्ट्रपति के कार्यालय द्वारा समय-समय पर जारी विभिन्न अधिसूचनाओं के माध्यम से विनियमित किया जाता है जिसमें इसके रूप, चयन मानदंड और पुरस्कार विजेताओं को दिए जाने वाले लाभ तय होते हैं।
इसमें अनुरोध किया गया है कि कामकाज में अस्पष्टता के आधार पर मौजूदा व्यवस्था को मनमाना और असंवैधानिक घोषित किया जाए।
याचिका में कहा गया है, ‘‘वर्तमान तंत्र जो सशस्त्र बलों के कर्मियों द्वारा वीरता पदक के पुरस्कार के लिए व्यक्तिगत रूप से बहादुरी के प्रत्येक कार्य पर विचार करता है, उसका कामकाज अपरिभाषित और अपारदर्शी है।’
याचिका में कहा गया है, ‘‘गलत निर्णय की समीक्षा के लिए कोई तंत्र नहीं होने से सशस्त्र बलों के योग्य कर्मियों के साथ अन्याय के गंभीर मामले सामने आए हैं।’’