*भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने में*

*भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने में*

*महिला क्रांतिकारियों की बड़ी भूमिका : संयुक्ता भाटिया*

*लखनऊ, 15 अगस्त।* 75वां स्वतंत्रता दिवस पर लखनऊ की महापौर संयुक्ता भाटिया ने नगर निगम मुख्यालय तथा अमीनाबाद स्थित झण्डेवाले पार्क में सौ फीट ऊंचे खम्भे पर देश की आन-बान-शान तिरंगा ध्वज को फहराया।

इस मौके पर महापौर संयुक्ता भाटिया ने कहा कि भारत माता को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने में महिला क्रांतिकारियों की बड़ी भूमिका रही है। अपनी वीरता, बुद्धिमत्ता और रणनीति की बदौलत इन वीरांगनाओं ने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे। क्रूर अंग्रेज अफसरों का खात्मा करने में, उन पर गोलियां दागने में उनके हाथ कभी नहीं कांपे। अंग्रेज अफसरों को गोली मारने के बाद वे घटनास्थल से भागी नहीं बल्कि भगत सिंह,बटुकेश्वर दत्त और राजगुरु की तरह मौके पर ही दृढ़ता के साथ अड़ी रहीं। तमाम यातनाएं भी सहीं लेकिन कभी भी अपने संगठन और साथियों का नाम जुबान तक नहीं आने दिया।

कहा कि देश के विभिन्न हिस्सों में महिलाओं ने आजादी की लड़ाई लड़ी, लेकिन झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को इन सभी क्रांतिकारी वीरांगनाओं का आदर्श माना जाता है। यही वजह है कि भारत में जब भी महिला सशक्तीकरण की चर्चा होती है तो सर्वप्रथम जो चेहरा उभर कर सामने आता है, वह महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई का ही होता है।

उन्होंने कहा कि रानी लक्ष्मीबाई उन सभी महिलाओं के लिए आदर्श हैं, जो खुद को बहादुर मानती हैं। उनका नाम उन महिलाओं को भी संबल देता है जो यह सोचती हैं कि महिला अबला होती है, कुछ कर नहीं सकती।

कहा कि बेगम हजरत महल ने अवध के लोगों और ताल्लुकेदारों की मदद से अंग्रेजों के खिलाफ न केवल बगावत का परचम लहराया बल्कि मटियाबुर्ज में नजरबंद वाजिद अली शाह को छुड़ाने के लिए लार्ड कैनिंग के सुरक्षा दस्ते में भी सेंध लगा दी थी। कस्तूरबा गांधी ने जहां पर्दे के पीछे रहकर योगदान दिया, वहीं सरोजिनी नायडू ने न केवल खिलाफत आंदोलन की बागडोर संभाली बल्कि अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने में भी अहम भूमिका निभाई।

महापौर ने कहा कि उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में हुए चौरी-चौरा कांड के अभियुक्तों की पत्नियों की यातना भी किसी से छिपी नहीं है। उन्हें या तो अपना घर परिवार छोड़कर मायके में शरण लेनी पड़ी या फिर जंगलों में छिपकर जीवन बिताना पड़ा। अंग्रेजों के डर से अपनों ने भी उन्हें शरण देने से इनकार कर दिया था। इसलिए कहा जा सकता है कि आजादी की जंग में जितनी भूमिका पुरुषों की है, उतनी ही इस देश की माताओं और बहन-बेटियों की भी है। इस मौके पर रजनीश गुप्ता, विन्ध्वासिनी कुमार, रमेश तूफानी समेत कई व्यापारी और अधिकारी उपस्थित रहे।

*संवाददाता मतीन अहमद की रिपोर्ट*