दिल दिमाग को तन्दुरुस्त करता है रोजा…
अल्लाह तबारक व तआला कुरआन शरीफ के पारा नम्बर दो सूरह बकर की आयत नम्बर 182-183 में इर्शाद फरमाता है कि ऐ ईमान वालो! तुम पर रोजे फर्ज किए गए जैसे कि अगली उम्मत पर फर्ज किए गए थे ताकि तुम मुत्तकी और परहेजगार बन सको। आसमानी किताब कुरआन पाक की इस आयत के तर्जुमे से अगर सबक हासिल करें और देखें तो आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने भी इस बात से कतई इन्कार नहीं किया कि सेहत और तन्दुरुस्ती के लिए भी तकवा व परहेजगारी बहुत ही जरुरी है। हमें सेहतमन्द और तन्दुरुस्त रहने के लिए समय पर खाना-पीना, सोना और मेहनत करना जरुरी है जिसे एक रोजादार बखूबी अन्जाम देकर बीमारियों से बचता है। समय पर खाने-पीने से रोजादार का हाजमा दुरुस्त रहता है। इसलिए रोजादार को कब्ज, बदहजमी और गैस जैसी हाजमे संबंधी बीमारियां नहीं होती हैं।
आधुनिक रोजा चिकित्सा विज्ञान के जन्मदाता अमेरिकन विद्वान डाॅक्टर डयूई ने टाइफाइड के एक रोगी को जबरदस्ती दूध पिलाना शुरु किया लेकिन मरीज दूध पीते ही उल्टी कर देता था। तरह-तरह की दवाओं से रोगी का हाजमे का निजाम ठीक करने की कोशिश की गई लेकिन सारी कोशिशें नाकाम रहीं। थक-हार कर डाॅक्टर ने मरीज को खिलाना-पिलाना बन्द करवा दिया जैसा कि रोजा के दौरान होता है। इस तरीके को अपनाने से मरीज धीरे-धीरे सेहतमन्द और तन्दुरुस्त हो गया। फिजिकल कल्चर में डाॅक्टर एनीरिले हैल ने लिखा है कि फेफड़ों की टीबी के लिए मरीज को बीस-पच्चीस दीन रोजे रखवाकर जांच की जाए तो टीबी के बैक्टीरिया (जीवाणु) पूरी तरह खत्म हो जाते हैं। रोजाना ज्यादा खाने से पाचन क्रिया के अंगों को अधिक मेहनत करनी पड़ती है, जबकि रोजे के दौरान इन्हें आराम मिलता है जिससे पेप्टिक अल्सर जैसे रोग ठीक हो जाते हैं।
रोजे की हालत में नजला, जुकाम, टांन्सिलाइटीज, दमा, बवासीर, एग्जीमा और ड़ाइबीटीज जैसे खतरनाक रोगों में करिश्माई फायदा पहुचता है। तम्बाकू युक्त पान, बीड़ी, सिगरेट वगैरह सेहत के लिए नुकसान देह है क्योंकि तम्बाकू में निकोटिन नामक नशीला पदार्थ होता है जो दिमाग और शरीर पर बुरा असर ड़ालता है जिससे दिल की बीमारियां, अल्सर और कैंसर जैसे खतरनाक रोग पैदा होने की आशंका बनी रहती है। रोजा रखकर इन्हें आसानी से छोड़ा जा सकता है। इन बातों से जाहिर होता है कि रोजे ना सिर्फ आखिरत की कमाई है बल्कि मौजूदा जिन्दगी में भी ये बेशुमार मर्जों का इलाज है। रमजान के रोजे के बेशुमार फायदों में से एक बहुत बड़ा फायदा यह भी है कि इससे दिल साफ होता है और अल्लाह से करीबी हासिल होती है। गरीबों पर रहम आता है।
भूखे को देखकर दिल में हमदर्दी पैदा होती है। भूख में उनकी हिमायत नसीब होती है। दुनिया में कई लोग हैं जिन्हें खाना मयस्सर नहीं होता। वे भूखे रहते हैं। रोजेदार भी रमजान में भूखा रह कर उनका साथ देता है। वर्षों पुरानी बात है। उस जमाने के एक बहुत बड़े बुजुर्ग, महान सूफी सन्त हजरत बशर हाफी रहमतुल्लाह अलैह को एक आदमी ने देखा कि सर्दी से हजरत कंपकपा रहें हैं जबकि उनके गर्म कपड़े सामने ही रखे हुए थे। उस आदमी ने पूछा क्यों ऐ बशर! यह क्या बात है कि गर्म कपड़े होते हुए भी आप सर्दी की तकलीफ उठा रहें हैं। इस पर हजरत बशर हाफी ने फरमाया कि फकीर बहुत हैं और मेरे लिए सबकी देख-भाल नामुम्किन है इसलिए मैं भी सर्दी की तकलीफ उठाने में उनका साथ दे रहा हूं। रोजा में आदमी भूखा रहता है।
हजरत इमाम गजाली रहमतुल्लाह अलैह ने भूख के दस फायदे बताए हैं…
पहला फायदा: दिल की सफाई होती है। पेट भर कर खाने से तबियत में सुस्ती आती है और दिल का नूर जाता रहता है। ज्यादा खाने से बुखारात यानी गैस दिमाग को घेरते हैं। जिसका असर दिल पर भी पड़ता है। वली-ए-कामिल हजरत शिबली रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं कि मैं अल्लाह के लिए जिस दिन भूखा रहा मैंने अपने अन्दर इबरत व नसीहत का एक दरवाजा खुला पाया।
दूसरा फायदा: दिल का नरम होना है जिससे जिक्र वगैरह का असर दिल पर होता है। कई बार बहुत मेहनत व तवज्जोह से जिक्र करने पर भी दिल उससे लज्जत हासिल नहीं करता है और ना ही उससे प्रभावित होता है मगर जिस समय दिल नरम होता है तो जिक्र में भी लज्जत आती है। हजरत अबू सुलेमान दारानी रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं कि मुझे इबादत में तब मजा आता है जब मेरा पेट भूख की वजह से कमर को लग जाए।
तीसरा फयदा: यह है कि इससे आजिजी व इन्केसारी पैदा होती है और अकड और घमण्ड जाता रहता है।
चोथा फायदा: यह है कि मुसिबतजदों व फाकाजदों से इबादत में गफलत पैदा नहीं होती है। पेट भरे आदमी को बिल्कुल अन्दाजा नहीं होता है कि भूखों और मोहताजों पर क्या गुजर रही हैं।
पांचवा फायदा: जो असल व अहम है गुनाहों से बचना। पेट भरना कई बुराइयों की जड़ है और भूखा रहना हर किस्म की बुराइयों से बचाव है जैसा कि सरकश घोड़े को भूखा रखकर काबू में रखा जा सकता है और जब वह खूब खाता-पीता रहता है तो सरकश हो जाता है। इन्द्रीय वासनाओं का भी यही हाल है।
छटा फायदा: यह है कि कम खाने से नींद कम आती है। ज्यादा जागने की दौलत नसीब होती है।
सातवां फायदा: इबादत पर सहूलत पैदा होती है कि पेट भर खाने से अक्सर काहिली व सुस्ती पैदा होती है जो इबादत को रोकने वाली होती है और खुद खाने ही में बहुत सा समय बर्बाद हो जाता है।
आठवां फायदा: कम खाने से सेहत बनी रहती है क्योंकि बहुत से रोग ज्यादा खाने से ही पैदा होते हैं। इसकी वजह से रगों में अनावश्यक चर्बी पैदा हो जाती है जिससे कई तरह की बीमारियां पैदा हो जाती हैं।
नवां फायदा: खर्चों की कमी है जो आदमी कम खाने का आदी होगा उसका खर्च भी कम होगा और ज्यादा खाने में खर्च भी बढ़ेंगे।
दसवां फायदा: कुर्बानी, हमदर्दी और सदकात की ज्यादती का सबब है। कम खाने से जितना खाना बचेगा वह यतीम, मिस्कीन, गरीब व फकीर वगैरह पर सदका होकर कयामत में उसके लिए साया करेगा।
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट ….