*किसी वादी को अपनी पसंद की पीठ के लिए न्यायालय पर*

*किसी वादी को अपनी पसंद की पीठ के लिए न्यायालय पर*

*दबाव डालने की अनुमति नहीं दी जा सकती*

*नई दिल्ली।* उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि किसी वादी को अपनी पसंद की पीठ में मामले की सुनवाई के लिए न्यायालय पर दबाव डालने की अनुमति नहीं दी जा सकती है और महज इसलिए कि पहले का आदेश पक्ष में नहीं आ सका था, इसलिए किसी न्यायाधीश को सुनवाई से हटने के लिए अनुरोध करने का आधार नहीं बनाया जा सकता है। शीर्ष न्यायालय ने पिछले साल सितंबर में जारी किये गये अपने एक आदेश को वापस लेने की मांग करने वाली अर्जी को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। आदेश में कहा गया था कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक रिट याचिका कर्नाटक उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश के जुलाई 2018 के फैसले की आलोचना करने के लिए स्वीकार नहीं की जा सकती है। उच्च न्यायालय ने यह फैसला घरेलू हिंसा अधिनियम,2005 के तहत कार्यवाही से उपजे एक विषय में सुनाया था। पिछले साल सितंबर के आदेश को वापस लेने की मांग करने वाली एक अर्जी पर सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने अर्जी देने वाली महिला से कहा कि उनकी इसी तरह की राहत का अनुरोध करने वाली उनकी पहली याचिका न्यायालय द्वारा खारिज की जा चुकी है। पीठ ने जब याचिकाकर्ता ने कहा कि इसी तरह की राहत का अनुरोध करने वाली उनकी दूसरी याचिका स्वीकार नहीं की जा सकती, तब याचिकाकर्ता ने अपनी अर्जी की सुनवाई से न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ से अलग हो जाने का अनुरोध किया। गौरतलब है कि न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ उस दो न्यायाधीशों की पीठ में शामिल थे, जिसने पिछले साल तीन सिंबर को आदेश जारी किया था। पीठ ने कहा, ‘‘हममें से एक न्यायाधीश को सुनवाई से हटाने के लिए हम कोई वैध और सही आधार नहीं देख पा रहे हैं। महज इसलिए कि पहले का आदेश वादी के पक्ष में नहीं रहा था, न्यायाधीश को सुनवाई से खुद को अलग करने का आधार नहीं हो सकता। किसी वादी को अपनी पसंद की पीठ पाने के लिए न्यायालय पर दबाव बनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। इसलिए, यह अनुरोध खारिज किया जाता है।