मन में हो कुछ करने की चाह और हौसले की उड़ान तो क्या नहीं है संभव…

मन में हो कुछ करने की चाह और हौसले की उड़ान तो क्या नहीं है संभव…

परिवार के साथ आईपीएस बिस्मा काज़ी 👆

  ड्युटी चेक करती हुईं आईपीएस बिस्मा काज़ी 👆     

कश्मीर के श्रीनगर की बिस्मा काज़ी, कभी थीं इंजीनियरिंग टाॅपर अब हैं आईपीएस…

दिल्ली में तैनात बिस्मा कहती हैं- अभी बहुत कुछ सीख रहीं हूं: भाई भी कर रहा है यूपीएसी की तैयारी…

लखनऊ/जम्मू। “जी हां 2017 तक बिस्मा काज़ी को श्रीनगर के बाहर कोई नहीं जानता था। उस साल यूपीएससी का रिजल्‍ट आया और उसके बाद से वह जम्‍मू और कश्‍मीर की पहचान बन गईं।” हम बात कर रहे हैं आईपीएस बिस्मा काज़ी की, जो साधारण से शहरी परिवेश में पली बढ़ी आम लड़कियों की तरह ही हैं कश्मीर की बिस्मा काज़ी। मगर, बाकियों से खास बनाती है उनकी कामयाब शख्सियत।बिस्मा काजी बचपन से स्कूल की टॉपर हैं, बीई इलेक्ट्रोनिक्स इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडलिस्ट। इसके साथ ही वे अपनी फीलिंग्स को खूबसूरत पेंटिंग्स के जरिए उकेर देती हैं। साल 2017 से पहले श्रीनगर में अपने घर, आस पड़ोस, संगी सहेलियों में बस यही उनकी पहचान थी। लेकिन, जून 2017 में यूपीएससी रिजल्ट में नाम आने पर गोल्ड मेडलिस्ट इंजीनियर बिस्मा काजी की पहचान ही बदल गई।
आज वही बिस्मा काजी बतौर आईपीएस देश की राजधानी दिल्ली में कमान संभाल चुकी हैं। एजीएमयूटी काडर से दिल्ली में कश्मीर की पहली लेडी आईपीएस हैं। नेशनल पुलिस अकाडमी हैदराबाद से ट्रेनिंग के बाद 25 सितंबर को पहली पोस्टिंग बतौर एसीपी सुभाष प्लेस तैनाती मिली। कामयाबी के इस ऊंचे मुकाम तक पहुंचना बिस्का काजी के लिए कितना चैंलेंजिंग रहा। कश्मीर के श्रीनगर की बिस्मा काजी के घर में पिता मोहम्मद शफी काजी, मां, छोटी बहन और एक छोटा भाई है। श्रीनगर में पिता की शॉप है। उनकी देखादेखी छोटा भाई भी यूपीएससी की तैयारी में जुटा है। बहन इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही है। 2014 में कश्मीर यूनिवर्सिटी से बीई गोल्ड मेडलिस्ट कंप्लीट किया। उनका कहना है कि मां पिता मेरे आदर्श हैं। हमारे घर में बेटा बेटी जैसा भेदभाव नहीं, पैरेंट्स ने हायर ऐजूकेशन को प्राथमिकता दी।
‘मां की सीख, पिता के जज्बे’ से मिली उड़ान…..
“एक दिन मां ने ही कहा कि इंजीनियर बनकर प्राइवेट सेक्टर में अच्छा पैकेज मिल सकता है, लेकिन पब्लिक की सेवा नहीं। इसके लिए यूपीएससी की तैयारी करो। मां की तरफ से मिला विचार जिंदगी बन गया। साल 2015 में पहली बार यूपीएससी के बारे में जानने के लिए अकेले दिल्ली आई। तब न मंजिल तयशुदा थी, न रास्ते मुकम्मल थे। खुद की क्षमता परखने के लिए सिविल सर्विसेज की तैयारियों के लिए जामिया में एक-एक ओरिएंटेड कोर्स अटेंड किया था, बेसिक नॉलेज मिली। वापस श्रीनगर लौटकर घर में रहकर अपने दमखम पर बिना कोचिंग लिए तैयारी शुरू की। उन दिनों श्रीनगर में शट डाउन था, न इंटरनेट, न हालात। कश्मीर यूनिवर्सिटी में जिस दिन एग्जाम था, बाहर शट-डाउन-रोड जाम। पेट्रोल पंप भी बंद थे, उस दिन पापा ने जैसे तैसे गाड़ी से एग्जाम सेंटर पहुंचाया। उन दिनों विपरीत हालातों को लांघते हुए प्री, मैन्स, इंटरव्यू क्रॉस किया।”
बिस्मा: लकी हूं कि मैं आईपीएस बनी. . . . .
“जून 2017 की एक शाम, इंटरनेट बंद था। हर खबर से बेखबर, उस रात खाने की तैयारी चल रही थी तभी दिल्ली जामिया से मेरी फ्रेंड का कॉल आया कि यूपीएससी रिजल्ट आ गया है, 115 वां रेंक है। मां पापा और हम सभी की आंखों में खुशी के आंसू थे। सोच लिया था आईएएस न सही, आईपीएस बनकर सेवा करुंगी। हैदराबाद नेशनल पुलिस अकादमी में ट्रेनिंग में भी बेहतर परफॉमेंस के लिए ट्रॉफी मिली। वहीं से सीनियर्स का सपोर्ट ऐसा मिला कि लगा ही नहीं कि मैं अपने परिवार से दूर हूं। आईपीएस पास आउट के बाद शाहदरा जिले के थानों में ट्रेनी रही। लकी हूं कि आईपीएस बनकर पहली पोस्टिंग नॉर्थ वेस्ट डिस्ट्रिक में अच्छे केस के तौर पर 8 साल की किडनैप बच्ची को परिवार से मिलवाया, बिस्मा कहती हैं कि अभी तो बहुत कुछ सीख रही हूं। (27 नवंबर 2020)

संवाददाता मरियम खान की विशेष रिपोर्ट…