*बांदा में बरखा रानी रूठी, किसानों के मुरझाये चेहरे*

*बांदा में बरखा रानी रूठी, किसानों के मुरझाये चेहरे*

*सावन-भादौं में नहीं इठलाई बरखा रानी, गम के छाये बादल*

*जून में रिकार्ड बनाने के बाद जुलाई अगस्त में औसत से भी पीछे रही वर्षा*

*बांदा/उत्तर प्रदेश* जिले में बरखा रानी ने जम कर अपने मौसम में बरसने की बजाय धोखा दे दिया।किसान इस भरोसा में था की बरखा रानी जमकर बरसेगी और किसानी सवर-सजकर लहलहा जायेगी। लेकिन अषाढ़ में रिकार्ड बनाने के बाद जुलाई अर्थात सावन और अगस्त भादौं में बारिश न के बराबर रही। जिससे किसानों की आशायें मुरझाने लगीं है!
जनपद का मुख्य व्यवसाय कृषि आधारित है। यहां दो फसली खेती होती है जिसकी शुरुआत किसान जून में खरीफ से करते हैं। मानसूनी सीजन में मुख्य रूप से धान, ज्वार, मूंग, उर्द, तिल, अरहर जैसी फसलें बोतें हैं। इस साल जनपद में सवा लाख हेक्टेयर से अधिक का क्षेत्रफल खरीफ फसलों की बुआई के लिए रखा गया । जिसमें सर्वाधिक 48 हजार हेक्टयर रकबा धान का है। यहां खरीफ में अधिकांशतः किसान धान की पैदावार करते हैं। इस साल अषाढ़ (जून) में बारिश ने कई सालों के रिकार्ड तोड़ दिए थे। जून माह की सामान्य औसत वर्षा 73.30 मिमी. है लेकिन कृषि विभाग द्वारा 226.2 मिमी. बरिश रिकार्ड की गयी है। आंकड़ों के लिहाज से देखें तो अकेले अषाढ़ में ही तीन गुना ज्यादा बारिश हो गयी थी। जिससे अन्नदाता मानसून के आगाज से बेहद खुश दिखे और खरीफ की तैयारियां भी समय से शुरू हो गयीं। असाढ़ में किसानों को ऐसा मौका सालों बाद मिला था। लेकिन अगले ही महीने सावन (जुलाई) , भादों (अगस्त) धोखा दे गया । किसानों की शुरुआती तैयारियां भी धरी रह गयीं क्योंकि समय-समय पर पानी न मिलने के चलते खेतों में नमी की कमी आ गयी और इससे धान की रोपाई व बुआई पर असर पड़ा है।
बताते चलें कि अतर्रा, नरैनी, बिसण्डा, बबेरू, महुआ धान उत्पादक क्षेत्र हैं यहां सिंचाई का मुख्य साधन केन से निकली नहरें हैं लेकिन ज्यादातर इलाकों में खेतों तक नहर का पानी ही नहीं पहुंच पाया और रोपाई पर असर पड़ा है। किसानों की मानें तो अभी भी 50 फीसदी से ज्यादा का रकबा बिना पानी के सूखा पड़ा हुआ है जिससे रोपाई नही हो पाई और नर्सरी अलग खराब होने लगी है। जुलाई की बात करें तो यह महीना वर्षा का विशेष महीना है और इसकी समान्य औसत वर्षा 300 मिमी. है लेकिन कृषि विभाग द्वारा जिले में 106.8 मिमी. बारिश रिकार्ड की गयी है जो कि सामान्य औसत से आधे से भी कम है। यही हाल अगस्त का रहा।पिछले महीने पर्याप्त बारिस न होने का असर यहां खेती पर पड़ा है।
रिमझिम फुहारों के लिए मशहूर सावन तो सूखा बीत ही गया।भादों भी खेतों को नहीं भर पाया। इस महीनो में लोगों को तेज धूप व उमस का सामना करना पड़ा। अब सितंबर शुरू हो गया है। यह महीना भी बारिश का प्रमुख महीना है। इसकी सामान्य औसत वर्षा भी 300 मिमी. से अधिक है। किसानों का कहना है कि इस महीने यदि पर्याप्त बारिस हो जाएगी तो काफी काम संवर जाएगा। यदि यह महीना भी बारिस में दगा दे गया तो निश्चित ही खरीफ फसलों को नुकसान पहुंचेगा।जिला कृषि अधिकारी डा. प्रमोद कुमार का कहना है कि धान और अन्य खरीफ की फसलों का अच्छादन पूरा हो चुका है। जून की तुलना जुलाई और अगस्त में अपेक्षाकृत बारिश कम हुई है।

*पत्रकार शरद मिश्रा की रिपोर्ट*