*हजारों वर्षों से चली आ रही परंपरा पर कोरोना ने फेरा पानी*

*हजारों वर्षों से चली आ रही परंपरा पर कोरोना ने फेरा पानी*

*बदल गए बरसों पुराने रीति रिवाज*

*हमीरपुर/उत्तर प्रदेश* आज के दिन मुस्लिमों के त्योहार मोहर्रम के समय पर इमामबाड़ों में रहती थी हजारों लोगों की भीड़ लेकिन आज इमामबाड़े पड़े हैं,सूने आस्था पर भारी पड़ रहा है कोरोनावायरस
मामला जनपद हमीरपुर क्षेत्र का है जहां कोरोनावायरस की वजह से त्यौहार फीके पड़ रहे तो वहीं किसी भी धर्म के त्यौहार हो उनकी रौनक भी खत्म हो चुकी है, आपको बतादें कि मोहर्रम के महीने को मुस्लिम नई साल के रुप में मनाते हैं,और यहीं से मुस्लिमों का नया वर्ष भी शुरू होता है,आज ही के दिन मुस्लिमों के पैगंबर हजरत सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम के नवासे हजरत इमाम हसन और हजरत इमाम हुसैन अपने पूरे खेमे के साथ यजीद से जंग लड़ते हुए शहीद हो गए थे,उन्होंने आज के दिन दीन के खातिर अपनी पुरे काबीले सहित शहादत दी थी,यानी कि उनको यजीद ने क़र्बला के मैदान में जंग में शहीद कर दिया गया था,जिसको लेकर हजारों सालों से मुस्लिम यह त्योहार मोहर्रम के रुप में मनाते हैं जगह-जगह मुस्लिम इमामबाड़े में ताजिये तैयार किए जाते हैं और उनकी जियारत होती है,ताजियों को गश्त भी किया जाता है, मुस्लिम लोग बड़े-बड़े आग के आला लगाकर उसमें आस्था की डुबकी यानी कि अकीदत के साथ उतर कर आग को हवा में उछालते हैं, लेकिन कोरोना महामारी की वजह से जहां ईद बकराईद और अन्य त्यौहार नहीं मनाए गए, सरकार ने भीड़ इकट्ठा ना हो इस कारण इन त्योहारों पर पाबंदी लगाई थी, उसी तरह इस वर्ष मोहर्रम में ना तो ताजिए बनाए गए हैं और ना ही कहीं अलाव खेला गया आपको बता दें कि मुस्लिम लोग जगह-जगह पर अलाव भी खेलते थे जिसमें कई कुंटल लकड़ी डालकर आग जलाई जाती थी और उसमें लोग अपनी आस्था के साथ उतर जाते थे,लेकिन इस वर्ष ऐसा कुछ नहीं हुआ जिससे मुस्लिम समुदाय में मायूसी छाई हुई है, और इसकी वजह कोरोना महामारी है जिसने पूरी दुनिया में अपना आतंक मचा रखा है,और यह कोरोना महामारी अवस्था पर भी भारी पड़ रही है वहीं मंदिरों और मस्जिदों में कोरोनावायरस की महामारी दिखाई दे रही है मगर सड़कों व बाजारों में नहीं।

*पत्रकार कमर उददीन के साथ ज्योति वर्मा की रिपोर्ट*