पांच माह बाद भी कैंसर के इलाज के लिए पत्रकार को नहीं मिली कोई सरकारी मदद…
पत्रकार रवि शंकर वर्मा: कब मदद मिलेगी सरकार ? 👆
खुद अपनी पीठ थपथपाने वाले राज्यमंत्री के जिले में राहत कोष से मदद के लिए पत्रकार खा रहा धक्के…
राज्य मंत्री गिरीश चंद्र: मंत्री जी कब होगा पूरा वादा ?
कहने को तो पत्रकार भी हैं कोरोना वारियर्स, पर मदद के नाम पर मिलती है केवल आश्वासन की घुट्टी…
लखनऊ/जौनपुर। कहने के लिए लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ…सबकी खबर सबको दे…पर सबसे निरीह प्राणी भी…गुंडा मारे, पुलिस मारे, नेता धौंसियाए और मदद मांगों तो मिले आश्वासन की घुट्टी…जी हां हम क़लमकार (पत्रकार) की ही बात कर रहे हैं, जिसे तोप समझा जाता है। जौनपुर के एक वरिष्ठ पत्रकार पिछले काफी समय से मुंह के कैंसर से जूझ रहे हैं। मुंबई तक जाकर जांच करा आए हैं पर आर्थिक तंगी के चलते अभी तक आॅपरेशन नहीं हो सका है। प्रदेश सरकार के राज्यमंत्री गिरीश चंद यादव द्वारा लोगों के ईलाज के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष से दी गई सरकारी सहायता की जो सूची हाल में जारी की गई है उसमें शाहगंज के जुझारू/कर्मठशील पत्रकार रवि शंकर वर्मा का नाम नदारद है, इसके चलते जिले के पत्रकार काफी निराश हैं और उनमें सरकार व राज्य मंत्री के प्रति काफी आक्रोश है।
पत्रकारों का कहना है कि यदि मदद नहीं दिलानी था और प्रयास नहीं करना था ? तो राज्य मंत्री 5 माह से लगातार आश्वासन क्यों देते चले आ रहे थे।पत्रकारों का काम लोगों को जमाने भर का हाल सुनाना है लेकिन इस दौर में उनका पुरसाहाल लेने वाला शायद ही कोई है। हालात तब और अजीब हो जाते हैं, जब पत्रकार समाज के प्रति पूरी ईमानदारी से संकल्पित हो लेकिन सक्षम व्यक्तियों की नजर में उसकी कोई कद्र ही न हो, जौनपुर जिले में तो ऐसा ही हो रहा है। यहां के सदर विधायक/प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री गिरीश चंद्र गैर जनपद तक के लोगों को मुख्यमंत्री के विवेकाधीन कोष से सहायता दिलवा देंते हैं लेकिन अपने ही जिले के परेशान पत्रकार को तमाम सिफारिशों के बाद भी नजरअंदाज कर देते हैं। नतीजा…सरकारी मदद के लिए पत्रकार दर-दर की ठोकर खा रहा है। राज्यमंत्री गिरीश चंद्र यादव की संस्तुति पर मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से दो दर्जन गम्भीर रूप से बीमार लोगों को आर्थिक मदद मिली है, इसमें जौनपुर के अलावा वाराणसी के निवासी लाभार्थी भी शामिल हैं। राज्यमंत्री इसके लिए खुद की पीठ थपथपाते हैं और सबका साथ, सबका विकास के नारे की दुहाई देते हैं लेकिन यह भी सच है कि उनके ही जनपद के एक पत्रकार जो कि मुंह के कैंसर से जूझ रहे हैं, उनको तमाम जतन और सिफारिशों के बावजूद राहत पाने के लायक नहीं समझा जा रहा है।
जौनपुर जिले के वरिष्ठ पत्रकारों ने रवि शंकर वर्मा को मदद दिलवाने के लिए मुहिम शुरू की थी, जिसके लिए वे राज्यमंत्री से मिले थे और मंत्री महोदय ने मुख्यमंत्री के विवेकाधीन कोष से मदद दिलाने का आश्वासन भी दिया था। उन्होने पत्रकारों को यह भी बताया था कि फाइल मुख्यमंत्री तक पहुंचा दी गई है लेकिन.. उसके बाद से सब “वादा तेरा वादा” ही बनकर रह गया। इस बीच लॉकडाउन का बहाना भी बनाया गया। अब जब खबर आई कि दो दर्जन लोगों को सरकारी मदद मिली है और उसमें उक्त पत्रकार का नाम शामिल न होने से जाहिर हो गया है कि हालात से परेशान पत्रकार को सिर्फ कोरा आश्वासन ही दिया गया था। ये भी साफ हो गया है कि सरकार और शासन- प्रशासन सिर्फ बरगलाने के लिए पत्रकारों को कोरोना योद्धा बताते हैं, जब उनकी सहायता की बात आती है तो कन्नी काट लेते हैं। तुर्रा ये भी कि आत्ममुग्ध होकर सबको साथ लेकर चलने की बात करते हैं और ठीक उसी समय लोकतंत्र का चौथा खंभा कहे जाने वाली पत्रकार बिरादरी को नजरअंदाज़ करने का सिलसिला हमेशा की तरह से जारी है।
“हिंद वतन समाचार” की रिपोर्ट, , ,