नूंह में साइबर ठगों पर छापों में देशभर में 100 करोड़ की ठगी का खुलासा…

नूंह में साइबर ठगों पर छापों में देशभर में 100 करोड़ की ठगी का खुलासा…

गुरुग्राम, । जामताड़ा बने नूंह के गांवों में विशेष अभियान के दौरान दबोचे गए साइबर ठगों ने पूछताछ के बाद चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में इन ठगों का नेटवर्क फैला हुआ था। कोई भी राज्या ऐसा नहीं बचा था, जहां के निवासियों को इन साइबर ठगों ने निशाना न बनाया हो। पूछताछ और उनकी निशानदेही पर की गई जांच के बाद नूंह पुलिस का दावा है कि यह साइबर ठग देशभर में करीब 100 करोड़ की ठगी को अंजाम दे चुके हैं। इस प्रकरण में नूंह में कुल 16 मामले दर्ज किए गए। देशभर में पहले से ही इन ठगों पर 1346 एफआईआर विभिन्न थानों में दर्ज हैं।

बुधवार को प्रेसवार्ता में नूंह के पुलिस कप्तान वरुण सिंगला ने बताया कि जिले में साइबर जालसाज के ठिकानों पर की गई रेड के बाद जांच में अब तक देशभर में लगभग 100 करोड़ रुपये की साइबर ठगी का खुलासा हुआ है। यह महाठग फर्जी सिम, आधार कार्ड आदि द्वारा देशभर के लोगों से ठगी करते और फर्जी बनाए बैंक खातों में राशि डलवा देते थे जिससे पुलिस इन तक आसानी से पहुंच नहीं पाती थी। जालसाज द्वारा हरियाणा से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और यूपी से लेकर अंडमान निकोबार तक लोगों को निशाना बनाया जा चुका है। इनके पकड़े जाने से देशभर में साइबर ठगी के लगभग 28000 अब तक सामने आ चुके हैं।

साइबर एक्सपर्ट की 40 टीमों ने की ठगों से पूछताछ
साइबर ठगों को रिमांड पर लिए जाने के बाद हरियाणा के डीजीपी प्रशांत कुमार अग्रवाल ने इन साइबर अपराधियों से पूछताछ के लिए पूरे प्रदेश से 40 साइबर विशेषज्ञों की एक टीम तैयार की थी। इस प्रकार साइबर विशेषज्ञों की मदद से पकड़े गए साइबर अपराधियों से निरंतर पूछताछ की गई और साइबर धोखाधड़ी द्वारा अपनाई जा रही कार्यप्रणाली के साथ-साथ फर्जी सिम और बैंक खातों के स्रोतों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की गई। छापे के दौरान जब्त किए गए मोबाइल फोन और सिम कार्ड की भी तकनीकी रूप से जांच की गई और टीएसपी व आईएसपी, बैंक, एनपीसीआई, यूपीआई, यूआईडीएआई, डीओटी, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक, व्हाट्सएप, ओएलएक्स आदि से संबंधित जानकारी भी मांगी गई।

भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र से भी ली मदद
प्रदेश की साइबर एक्सपर्ट टीम ने इस केस की गहराई तक जाने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय के भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र की भी सहायता ली। टीम द्वारा साइबर ठगों के उपयोग किए जाने वाले फर्जी बैंक खातों, सिम, मोबाइल फोन आदि को देशभर में प्राप्त साइबर अपराध की शिकायतों से जोड़ने का अनुरोध भारतीय साइबर अपराध समन्वय से किया गया था। इस विश्लेषण के दौरान यह बात सामने आई है कि साइबर ठगों ने अब तक देशभर के 35 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से करीब 28000 लोगों से 100 करोड़ रुपये से अधिक की ठगी को अंजाम दिया है। पकड़े गए इन साइबर जालसाजों के खिलाफ देशभर में पहले से ही 1346 एफआईआर दर्ज होनी पाई गईं।

यह है मामला
बीती 27 व 28 अप्रैल की मध्यरात्रि को 5000 पुलिसकर्मियों की 102 टीमों ने नूंह जिले के 14 गांवों में एक साथ छापेमारी की थी। इस दौरान करीब 125 संदिग्ध हैकर्स को हिरासत में लिया। इनमें से 66 आरोपियों की पहचान कर उन्हें गिरफ्तार किया गया। सभी को अदालत में पेश कर 7 से 11 दिन की रिमांड पर लिया गया। गिरफ्तारी के बाद पूरे मामले का पर्दाफाश करने के लिए जांच में निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के 219 खातों और 140 यूपीआई खातों के बारे में भी जानकारी सामने आई, जिनका इस्तेमाल साइबर धोखाधड़ी करने के लिए किया जा रहा था।

ये बैंक खाते मुख्य रूप से ऑनलाइन सक्रिय पाए गए और नौकरी देने के बहाने लोगों को धोखा देकर और फिर आधार कार्ड, पैन कार्ड, मोबाइल नंबर और ऑनलाइन केवाईसी करवाकर ठगी की जा रही थी। इसके अलावा, टेलीकॉम कंपनियों के हरियाणा, पश्चिम बंगाल, असम, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा, मध्य प्रदेश, दिल्ली, तमिलनाडु, पंजाब, नॉर्थ ईस्ट, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक सर्किल से एक्टिवेट 347 सिम कार्ड का भी पता चला है। इनका उपयोग ये ठग साइबर क्राइम के लिए कर रहे थे। जांच के दौरान फर्जी सिम और बैंक खातों का स्रोत मुख्य रूप से राजस्थान के भरतपुर जिले से जुड़ा पाया गया है।

समूह बनाकर करते थे ठगी का कारोबार
नूंह जिले में दर्ज 16 मामलों में पकड़े गए साइबर अपराधियों के सह अभियुक्त के रूप में काम करने वाले 250 वांछित साइबर अपराधियों की भी पहचान की गई है। इनमें से 20 राजस्थान के, 19 उत्तर प्रदेश और 211 हरियाणा के हैं। साइबर अपराधियों (जो 18-35 वर्ष की आयु वर्ग में हैं) ने खुलासा किया कि वे आमतौर पर 3-4 व्यक्तियों के समूह में काम करते थे। नकली बैंक खाते, नकली सिम कार्ड, मोबाइल फोन, नकद निकासी/वितरण और सोशल मीडिया वेबसाइटों पर विज्ञापन पोस्ट करने जैसी तकनीकी सेवाओं को एक गांव में केवल कुछ लोगों द्वारा ही किया जाता था। इसकी एवज में वह पांच प्रतिशत से 50 प्रतिशत तक कमीशन शुल्क लेते थे। साइबर अपराधी नकद निकासी के लिए मुख्य रूप से कॉमन सर्विस सेंटर का इस्तेमाल करते थे, जबकि कुछ अन्य इसके लिए विभिन्न गांवों में स्थापित एटीएम का इस्तेमाल करते थे।

हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…