करसोग घाटी में आनंद भोग…
हरे नीले भूरे मटमैले, बर्फ ओढे पहाडी स्थलों में गजब आकर्षण है कि आवारगी के मतवाले हर मौसम में वहां पहुंचे रहते हैं। कुछ दिन-रात यहां बिता, नया उत्साह व चेहरों पर रौनक बटोरकर लौट, फिर से जुट जाते हैं पुरानी व्यस्त दिनचर्या में, जहां से वे आते हैं। यह विकास की माया है कि चंद गिने-चुने पर्यटक स्थलों पर हर बरस भीड जमा होती है मगर अनेक दिलकश जगहें बिना पर्यटकों के उदास रहती हैं क्योंकि वहां विकास की माया नहीं है। आमतौर पर पर्यटकों को कुल्लू, मनाली, शिमला, चैल, धर्मशाला का ही पता है। हालांकि प्रकृति ने हिमालयी आंगन में अनगिनत जगहें ऐसी रची हैं जहां दिलकश खूबसूरती का अंबार लगा है मगर सूचना व विकास के अभाव में पर्यटक वहां तक पहुंच नहीं पाते।
सुविधाओं के मामले में पर्यटक लकीर के फकीर हैं। उन्हें हर जगह हर तरह की सुविधाएं चाहिये। सही सोचा जाये तो कुदरत ने हमें अनेक अनमोल व अद्वितीय सुविधाएं दी हैं। इनके बिना हमारा काम नहीं चल सकता। दूसरे इन सुविधाओं का विकल्प भी नहीं है। इसलिये भौतिक आराम को थोडे समय के लिये भूलकर प्रकृति के आंगन में सहज जीवन के निर्मल आनंद का सौम्य उत्सव मनाना ही चाहिये। प्रकृति प्रांगण में मुफ्त उपलब्ध, अलौकिक आनंद का रसपान कराती आज तनाव, दबाव व घोर कंपीटीशन में खुद फंसे आदमी के लिये इन जरूरी सुविधाओं की लम्बी लिस्ट है। चप्पे चप्पे में फैली प्रदूषण मुक्त नयनाभिराम हरियाली, आंखों को ठण्डक की तरलता पहुंचाते नीले खुले आसमान में अठखेलियां करते मेघदूत, देवदार, कैल, चीड की नथुनों को सुगंधित कर देने वाली शीतल बयार, जडी-बूटियों के सानिध्य से बहकर आते अनगिनत मीठे जल स्रोत, बारिश के बाद निखरी अनगिनत शेड्स की खुशनुमा मादकता बिखेरती गुलाबी शामें, जंगली फूलों की अनूठी विरली गंध में माधुर्य घोलता पक्षियों की चहचाहट से भरपूर संगीतमय सुंदर पर्यावरण, सादगी व लोक संस्कृति को सम्प्रेषित करते पहाड के सीधे-सादे लोग।
यहां का सबकुछ सहज है। आइये, जीवन से बिजनेस, मोबाइल, अंधी प्रतियोगिता व चैनल टीवी को तिलांजलि देकर करसोग घाटी चलते हैं जहां प्रकृति की अनछुई उन्मुक्त सुन्दरता आपको कायल करने को आतुर है। कुदरत की बेटी करसोग जाने के लिये शिमला से 100 किलोमीटर का फासला है। मण्डी या सुन्दरनगर से भी जा सकते हैं। यहां से घीडी या फिर चैल चैक होकर रोहांडा पहुंचते हैं। यहां पहुंचते पहुंचते सेब, नाशपाती, चीड, कैल, देवदार व अन्य वृक्ष लुभाने लगते हैं। सडक पर ज्यादा वाहन नहीं मिलते इसलिये यात्रा का मजा बरकरार रहता है। प्रकृति अपना सबकुछ सीधे सीधे सम्प्रेषित करती है। यह हम पर निर्भर है कि कितना आत्मसात करते हैं। जेब में नोट से ज्यादा वक्त हो तो कई जगहों पर रुककर उन्मुक्त प्रकृति के अधीन निकट होने का ज्यादा लुत्फ ले सकते हैं।
रोहांडा से पहले झुंगी में फोरेस्ट रेस्ट हाउस है और रोहांडा में भी। रोहांडा से निकलते हुए प्राकृतिक दृश्य ऐसे होते जाते हैं मानो नयनाभिराम पोस्टर हों। लम्बे-लम्बे कद्दावर वृक्ष, सीढीनुमा खेतों के रंग-बिरंगे बिछौने, मनभावन नीले खुले आसमान के नीचे यहां से वहां तक फैली खूबसूरत पर्वत श्रंखलाएं-कैमरा यहां अपनी जिम्मेदारी खूब निभाता है। कितनी ही जगह गाडी रोककर हम पैदल चल पडते हैं। पहिये बुरे लगने लगते हैं। मन और शरीर चाहता है इन वादियों में उड जायें, कूद जायें हरियाली की गोद में। कम्प्यूटरी जीवन से अनभिज्ञ पहाडी बचपन देखकर लगता है यहां कुछ नहीं बदला। बच्चे, लिंगड (स्थानीय पौष्टिक स्वादिष्ट सब्जी) बेचते मिलते हैं।
रास्ते में चैकी नामक जगह पर पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस है। यहां से आगे पांगणा नामक आकर्षक जगह है, जहां कुदरत और रस घोलती है, आंखों को आराम मिलता है मन को चैन। यहां भी पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस है। स्थानीय लोगों की जीवन शैली अति भौतिकता का मोह छोडने, कम सुविधाओं में जीने, सादगी की ओर प्रेरित करती है। चाहें तो पांगणा से तीन किलोमीटर पीछे कैंची मोड से बरखोट होते हुए करसोग जा सकते हैं या फिर पांगणा से दो किलोमीटर आगे लाजवाब चिंडी पहुंच सकते हैं। यहां पीडब्ल्यूडी का बढिया रेस्ट हाउस व हिमाचल पर्यटन निगम का सुन्दर होटल ममलेश्वर है। चिंडी उन विरले स्थानों में से एक है जहां चीड, कैल व देवदार के वृक्ष एक साथ हैं। यह जगह सृष्टि ने अनूठी ख्वाबगाह की तरह बसाई है। यहां पहुंचकर यात्रा की थकान रफूचक्कर हो जाती है। चिंडी से बरखोट होते हुए तेरह किलोमीटर दूर सिनारली के फोरेस्ट रेस्ट हाउस में भी रुक सकते हैं। करसोग यहां से मात्र तीन किलोमीटर है।
कुदरत के गहन सानिध्य में जाना हो तो 1830 मीटर (6010 फीट) पर स्थित करसोग से 25 किलोमीटर दूर माहुनाग पहुंचकर वहां स्थित फारेस्ट रेस्ट हाउस में ठहरकर असीम उन्मुक्त अविस्मरणीय लम्हों को अपने अनुभवों के खजाने में जमा कर सकते हैं। इस अहसास को अधिक निजी बनाना हो तो कोटली व टांडा के फारेस्ट रेस्ट हाउस में ठहरा जा सकता है। यह स्थल करसोग से 22 व 30 किलोमीटर के फासले पर हैं। समस्त करसोग घाटी स्वादिष्ट सेब, नाशपाती, लिंगड, राजमा, मक्की, उडद आदि के लिये प्रसिद्ध है। वन्य जीवन प्रेमी पर्यटकों के लिये भी यहां कम आकर्षण नहीं और ट्रेकिंग के चहेते कितने ही रूट पकड सकते हैं।
इस क्षेत्र में स्थित प्राचीन मन्दिरों में पारम्परिक भवन निर्माण, लोक संस्कृति व आस्था के सशक्त दर्शन होते हैं। करसोग जैसे अनछुए क्षेत्रों में जाकर, जहां विशेषकर आने वाली पीढी को उनकी किताबों में वर्णित प्राकृतिक सुन्दरता के साक्षात दर्शन होते हैं, कुछ समय इकट्ठे रहकर, कम होते जा रहे आपसी स्नेह व प्रेम में बेहद जरूरी बढोतरी की जा सकती है। शरीर नव ऊर्जा ग्रहण करता है। ऐसी जगहों पर एकाग्रता व आत्मिक शक्ति का उदय होता है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि व्यक्ति को स्वचिंतन करते हुए अपने आप से कई बार मिलने का विरला अवसर मिलता है। जागरुक पर्यावरण प्रेमी हमेशा खबरदार करते रहते हैं उन क्षेत्रों के बारे में जहां कम विकास व प्रचार के अभाव में प्रकृति को नोचा नहीं गया। बात सही भी है हमें ऐसी जगह समझदार पर्यटक चाहिये जो आनन्द तो उठायें मगर कूडा न फेंके, ऐतिहासिक स्थलों को नुकसान न पहुंचाये, प्रकृति को बरकरार रखे। कम प्रसिद्ध पर्यटक स्थलों पर जाकर एक सीधा फायदा होता है खर्च कम होना। इस बहाने नई जगह घुमक्कडी भी हो जाती है और मित्र परिचितों को प्रेरित करने के लिये नये अनुभव हमें प्राप्त होते हैं।
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…